बोलने की आज़ादी तब है, जब बिना किसी डर के सरकार की आलोचना की जा सके: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश के ग्वालियर चंबल क्षेत्र के लहार निर्वाचन क्षेत्र में चुनावों पर संदेह व्यक्त करने वाले पत्रकार के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि लोकतंत्र का लक्ष्य बहुलवादी और सहिष्णु समाज बनाना है. इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए नागरिकों को स्वतंत्र रूप से बोलने में सक्षम होना चाहिए.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Allen Allen/Flickr CC BY 2.0)

मध्य प्रदेश के ग्वालियर चंबल क्षेत्र के लहार निर्वाचन क्षेत्र में चुनावों पर संदेह व्यक्त करने वाले पत्रकार के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि लोकतंत्र का लक्ष्य बहुलवादी और सहिष्णु समाज बनाना है. इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए नागरिकों को स्वतंत्र रूप से बोलने में सक्षम होना चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Allen Allen/Flickr CC BY 2.0)

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नो​ट किया कि ​‘स्वतंत्र भाषण (Free Speech) तब अस्तित्व में होता है, जब नागरिक प्रतिक्रिया के डर के बिना सरकार की आलोचना करने वाले विचार व्यक्त कर सकते हैं. इसके साथ ही अदालत ने उस पत्रकार के खिलाफ एफआईआर को रद्द कर दिया, जिसने विधानसभा चुनावों पर संदेह जताते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट किया था.

जस्टिस आनंद पाठक की एकल-न्यायाधीश पीठ ने ग्वालियर चंबल क्षेत्र के लहार निर्वाचन क्षेत्र में चुनावों पर संदेह व्यक्त करने वाले पत्रकार के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता की पोस्ट को अपमानजनक और सार्वजनिक शरारत मानते हुए उसके और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 505 (2) (सार्वजनिक शरारत पैदा करने वाले बयान) और 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.

याचिकाकर्ता पत्रकार मोनू उपाध्याय ने अपने वकील गौरव मिश्रा के जरिये हाईकोर्ट का रुख किया, जिन्होंने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त की थी और ‘चूंकि पोस्ट एक आईएएस अधिकारी से संबंधित था, इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ जल्दबाजी में एफआईआर दर्ज करा दी गई’.

एफआईआर को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, ‘एफआईआर अनुच्छेद 19 के तहत संविधान द्वारा गारंटीकृत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों के साथ टकराव है. याचिकाकर्ता का सोशल मीडिया पोस्ट केवल बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है और आईपीसी की धारा 505(2) और 188 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है.’

हाईकोर्ट ने कहा, ​‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संवैधानिक भावना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बनाए रखने वाले मुख्य स्तंभों में से एक है और इसलिए इसकी सुरक्षा आवश्यक है.​’

अदालत ने कहा, ​‘स्वतंत्र भाषण तब मौजूद होता है, जब नागरिक अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं, इसमें वे विचार शामिल हैं, जो सरकार के प्रति आलोचनात्मक हैं, वह भी प्रतिक्रिया के डर के बिना, जैसे कि जेल में डालना या हिंसा की धमकियां प्राप्त करना.’

अदालत के अनुसार, ​‘लोकतंत्र का लक्ष्य बहुलवादी और सहिष्णु समाज बनाना है. इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए नागरिकों को स्वतंत्र रूप से और खुलकर बोलने में सक्षम होना चाहिए कि वे कैसे शासित होना चाहते हैं.’

इसमें कहा गया है कि ​‘विचारों और उनका आदान-प्रदान केवल चुनाव के दिन एक बार होने वाली छुट्टी नहीं है, बल्कि एक सतत दोतरफा संचार है, जो सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान होता है​’.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की पोस्ट को ​‘समाज के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा देने या किसी सार्वजनिक शरारत पैदा करने के आरोपों से जोड़ा नहीं जा सकता​’.

आगे कहा गया, ​‘विधानसभा में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना, विशेष रूप से भिंड/चंबल क्षेत्र में हमेशा श्रेष्ठ विचार रहा है और अगर किसी के द्वारा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के संचालन के संबंध में संदेह उठाया जाता है, तो भी यह किसी भी तरह से आईपीसी की धारा 505(2) के तहत अपराध नहीं बनता है.​’

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