इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से कहा गया है कि अगर संभव हो तो गुजरात सरकार को 14 दिनों का पूर्ण लॉकडाउन लगाना चाहिए. अगर राज्य सरकार इसके पक्ष में नहीं है तो उसे लोगों को उनके घरों तक सीमित करने के लिए पाबंदी लगाने के बारे में सोचना चाहिए. गुजरात हाईकोर्ट ने डॉक्टरों से कोविड-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए सुझाव मांगें थे.
गुजरात के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने कहा कि गुजरात में कोरोना वायरस के रोज़ाना 9,000 से ज़्यादा मामले सामने आ रहे हैं. समय-समय पर नई सुविधाएं और बिस्तर बढ़ा रहे हैं, लेकिन ये मांग की तुलना में कम पड़ रहे हैं.
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोविड-19 की स्थिति और लोगों की समस्याओं पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दायर जनहित याचिका को सुनते हुए कहा कि राज्य सरकार ने जितनी चाहिए थी, उतनी सतर्कता नहीं बरती. अदालत ने राज्य सरकार के बेड की उपलब्धता, जांच सुविधा, ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन संबंधी दावों पर भी आशंका जताई है.
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोरोना वायरस की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दायर जनहित याचिका पर कहा कि लोग अब सोच रहे हैं कि वे भगवान की दया पर हैं. पीठ ने कहा कि लोगों में ‘विश्वास की कमी’ है. इससे पहले स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने कहा था कि प्रदेश ‘स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति’ की तरफ बढ़ रहा है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 में इस्तेमाल के लिए जून 2020 में रेमडेसिविर को मंज़ूरी दी थी. इसे केवल प्रिस्क्रिप्शन पर अस्पतालों और फार्मेसी द्वारा एक इंजेक्शन के रूप में बेचा जा सकता है. गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल ने इसे बिना किसी दाम के दो अस्पतालों और पार्टी कार्यालय में वितरित कराया.
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोरोना वायरस की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका की कार्यवाही शुरू की. कोरोना वायरस की स्थिति को लेकर हाईकोर्ट में दाख़िल इस तरह की यह दूसरी जनहित याचिका है. बीते साल हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है.
एक ही व्यक्ति में दोबारा कोरोना संक्रमण होने पर जहां स्वास्थ्य विशेषज्ञ गहरी चिंता जता रहे हैं, वहीं गुजरात सरकार यह दलील देकर पल्ला झाड़ रही है कि उनके द्वारा कराए गए एंटीबॉडी सर्वे में इन लोगों में एंटीबॉडी नहीं पाया गया था.