वीडियो: विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग सात करोड़ लोग विभिन्न मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाती और इसलिए इनका निदान नहीं होता. हालांकि ये समस्याएं उनके जीवन को व्यापक तौर पर प्रभावित करती हैं. सवाल सेहत का की इस कड़ी में बात मानसिक स्वास्थ्य और उससे जुड़ी वर्जनाओं की.
नवंबर 2014 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले में लगा एक नसबंदी शिविर त्रासदी में तब्दील हो गया था, जब ऑपरेशन के बाद 13 महिलाओं की मौत हुई और कई अन्य स्त्रियां अस्पतालों में भर्ती रहीं. उस वक्त ढेरों सरकारी वादे किए गए थे, लेकिन आज उनका नामोनिशान नहीं दिखता.
अर्थ ग्लोबल पॉलिसी संगठन के एक सर्वे में सामने आया है कि जिन लोगों के पास कोई वाहन नहीं था, ऐसे 60% गरीब लोगों ने अस्पताल में इलाज का ख़र्च अपनी जेब से उठाया, जबकि दोपहिया और चार पहिया वाहन वालों के लिए यहां आंकड़ा क्रमश: 48% और 40% था.
वीडियो: केंद्रीय वित्त मंत्री ने इस वित्त वर्ष के बजट में आम आदमी को लाभ मिलने के कई दावे किए हैं. क्या सचमुच बजट आमजन के लिए फायदेमंद है? द वायर की संपादक सीमा चिश्ती और वरिष्ठ पत्रकार संजय के. झा के साथ चर्चा कर रही हैं मीनाक्षी तिवारी.
लांसेट के अध्ययन में पाया गया है कि सार्वजनिक से निजी में बदले जाने के बाद अस्पतालों के मुनाफ़े में बढ़ोतरी होती है, मुख्य रूप से यह वृद्धि अस्पताल के कर्मचारियों की संख्या में कटौती करके तथा चुनिंदा तरीके से मरीज़ों को भर्ती करने से होती है.
सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी बताती है कि 2018 में शुरू हुई 'आयुष्मान भारत' योजना के तहत ख़र्च किए गए कुल धन का दो-तिहाई हिस्सा निजी अस्पतालों को गया है. 15 राज्यों में निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (54 फीसदी) से अधिक रहा है.
वीडियो: बीते सालों में भारतीय दवाओं की गुणवत्ता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठे हैं. देश में भी दूषित या मिलावटी दवा के चलते मौत की घटनाएं देखी गई हैं. ऐसे में सरकार दवाओं के विनियमन और इनकी मानक गुणवत्ता बनाए रखने के लिए क्या करती है? कैसे काम करता है भारत का ड्रग रेगुलेशन सिस्टम?
वीडियो: देश में स्वास्थ्य तक पहुंच एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन जो चीज़ इसे सुनिश्चित करती हैं, वह स्वास्थ्य देखभाल को विनियमित करने वाले विभिन्न अधिकार और कानून हैं. ‘सवाल सेहत का’ की इस कड़ी में ऐसे ही क़ानूनों के बारे में जानकारी दी गई है, जो या तो अस्तित्व में नहीं हैं या अगर मौजूद हैं, तो उन्हें ठीक से लागू नहीं किया जाता है.
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) के ऑडिट में अनियमितताओं को चिह्नित किया है. रिपोर्ट के अनुसार, इसके तहत 3,446 मरीज़ों के इलाज के लिए 6.97 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जिन्हें डेटाबेस में पहले ही मृत घोषित कर दिया गया था.
वीडियो: राजस्थान सरकार हाल ही में 'स्वास्थ्य का अधिकार' विधेयक लेकर आई है जिसके तहत राज्य के लोग इमरजेंसी में प्राइवेट अस्पताल में भी निशुल्क इलाज करवा पाएंगे. हालांकि, राज्य के प्राइवेट अस्पताल के चिकित्सक इसका विरोध कर रहे हैं.
बीते 13 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में दावा किया कि उनके शासनकाल में एम्स जैसी संस्थाओं की संख्या पहले के मुकाबले तीन गुना बढ़ी है. हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय के डेटा के अनुसार, 2014 में उनकी सरकार आने के बाद से विभिन्न राज्यों में शुरू हुए एम्स में से एक भी पूरी तरह काम नहीं कर रहा है.
सांसदों को मिलने वाली स्थानीय विकास निधि योजना में हुए हाल के बदलावों में उन्हीं को नज़रअंदाज़ किया गया है जिनके लिए यह मुख्य रूप से बनाई गई है- हाशिये पर पड़े ग़रीब वर्ग. साथ ही योजना के कामकाज को केंद्रीकृत करने का प्रयास भी किया गया है.
केंद्र सरकार के बजट में सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व शिक्षा को न केवल दरकिनार किया गया है बल्कि मनरेगा सरीखी कई ज़रूरी योजनाओं के आवंटन में भारी कटौती की गई है. ऐसे में झारखंड जैसा राज्य जो कुपोषण, ग़रीबी व ग्रामीण बेरोज़गारी से जूझ रहा है, वहां आने वाले राज्य बजट के पहले पिछले बजटों में की गई घोषणाओं के आकलन की ज़रूरत है.
दिल्ली के एक एनजीओ की 'रैप्ड इन सीक्रेसी' नाम की यह रिपोर्ट भारतीय बाजार में व्यापक तौर पर बिकने वाले दस तरह के सैनिटरी पैड पर किए गए टेस्ट पर आधारित है.
दिल्ली के एम्स द्वारा जारी एक ज्ञापन में निर्देश दिया गया है कि किसी भी समारोह के लिए 'गणमान्य व्यक्तियों' को आमंत्रित करने के लिए संस्थान के अध्यक्ष- जो स्वास्थ्य मंत्री हैं, से मंज़ूरी लेनी होगी. बताया गया है कि पहले ऐसी अनुमति केवल वीवीआईपी के आने पर या किसी बड़े समारोह के लिए ली जाती थी.