आयुष्मान भारत: सरकारी अस्पतालों के बजाय मरीज़ों को निजी अस्पताल पर अधिक भरोसा

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी बताती है कि 2018 में शुरू हुई 'आयुष्मान भारत' योजना के तहत ख़र्च किए गए कुल धन का दो-तिहाई हिस्सा निजी अस्पतालों को गया है. 15 राज्यों में निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (54 फीसदी) से अधिक रहा है.

(फोटो साभार: ट्विटर/@AyushmanNHA)

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी बताती है कि 2018 में शुरू हुई ‘आयुष्मान भारत’ योजना के तहत ख़र्च किए गए कुल धन का दो-तिहाई हिस्सा निजी अस्पतालों को गया है. 15 राज्यों में निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (54 फीसदी) से अधिक रहा है.

(फोटो साभार: ट्विटर/@AyushmanNHA)

नई दिल्ली: केंद्र द्वारा 2018 में शुरू की गई प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) को छह साल हो गए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि हर साल इस योजना के तहत खर्च किए गए कुल धन का दो-तिहाई हिस्सा देश भर के निजी अस्पतालों में गया है.

अखबार द्वारा सूचना के अधिकार से प्राप्त किए गए आधिकारिक रिकॉर्ड और दस्तावेज की जांच से पता चलता है कि यह राशि 2.95 करोड़ मरीजों – जो कि दिसंबर 2023 तक कुल लाभार्थियों का 54 फीसदी है – के इलाज के बदले दी गई है.

इस योजना को केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से 60:40 (पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के मामले में 90:10) के अनुपात में वित्त पोषित किया जाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, सूचीबद्ध सभी अस्पतालों में सरकारी अस्पतालों की हिस्सेदारी 58 फीसदी है, जबकि शहरी क्षेत्रों के 60 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों के 52 फीसदी मरीज निजी अस्पतालों में भर्ती होते हैं. सरकारी डेटा के मुताबिक, निजी अस्पतालों में औसत चिकित्सा व्यय सरकारी अस्पतालों की तुलना में 6-8 गुना अधिक होता है.

2018 से योजना के तहत खर्च कुल 72,817 करोड़ रुपये में से 48,778 करोड़ रुपये – 67 फीसदी – निजी अस्पतालों को गए हैं.

दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुल मिलाकर देश भर के केवल 17 फीसदी आयुष्मान कार्ड हैं, लेकिन देश के कुल लाभार्थी मरीजों में उनका हिस्सा 53 फीसदी है. इससे दक्षिण भारत में योजना के व्यापक उपयोग का पता चलता है.

पांच वर्षों में इस योजना का लाभ उठाने वाले कुल 5.47 करोड़ रोगियों में से लगभग 60 प्रतिशत पांच राज्यों – कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ से थे. अखबार लिखता है कि इससे पता चलता है कि योजनाओं और फंडिंग को लेकर केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच विवादों के बावजूद आयुष्मान भारत योजना का प्रभाव केंद्र के सत्तारूढ़ दल द्वारा शासित राज्यों तक सीमित नहीं है.

बता दें कि दिल्ली, ओडिशा और पश्चिम बंगाल ने यह योजना लागू नहीं की है.

इस योजना के तहत सूचीबद्ध 27,000 माध्यमिक (दवाओं, स्त्री रोग समेत बुनियादी विशिष्टताओं वाले अस्पताल) और तृतीयक (न्यूरोसर्जरी, कार्डियोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स जैसे सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल) अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती होने पर प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज प्रदान किया जाता है. लाभार्थी परिवारों की पहचान 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) से की जाती है, जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में विशिष्ट अभाव और व्यावसायिक मानदंडों पर आधारित है.

अखबार के मुताबिक, लगभग 13.44 करोड़ परिवार (65 करोड़ लोग) इस योजना के संभावित लाभार्थी हैं. अब तक 32.40 करोड़ लोगों को आयुष्मान भारत कार्ड जारी किए जा चुके हैं.

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों और दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2018 और 2023 के बीच, 5.47 करोड़ मरीजों ने इस योजना के तहत इलाज कराया. जहां पहले तीन वर्षों में वार्षिक औसत लगभग 49 लाख मरीजों का था, वहीं बाद के तीन वर्षों में इसमें वृद्धि देखी गई और सालाना औसतन 1.33 करोड़ मरीज इस योजना के माध्यम से उपचार प्राप्त कर रहे थे.

रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि निजी अस्पतालों का रुख करने वाले मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. सूचीबद्ध हर 10 में से 6 अस्पताल सरकारी हैं, लेकिन जब भर्ती होने की बात आई तो 54 फीसदी मरीजों (कुल 5.47 करोड़ लाभार्थियों में से 2.95 करोड़) ने योजना के तहत इलाज के लिए निजी अस्पतालों का रुख किया. 15 राज्यों में निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (54 फीसदी) से अधिक हो गया.

रिपोर्ट के मुताबिक, 8 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में योजना के तहत इलाज कराने वाले कम से कम 70 फीसदी मरीजों ने निजी अस्पतालों का रुख किया – उत्तर प्रदेश (81%), हरियाणा (81.45%), गुजरात (78%), चंडीगढ़ (76%), महाराष्ट्र (77%), तमिलनाडु (74%), झारखंड और आंध्र प्रदेश (~70%).

आंकड़ों से पता चलता है कि निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले 2.95 करोड़ लाभार्थियों का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ पांच राज्यों में केंद्रित था: तमिलनाडु (71.95 लाख मरीज), आंध्र प्रदेश (35.78 लाख मरीज), उत्तर प्रदेश (25.57 लाख मरीज), गुजरात (23.04 लाख मरीज) और केरल (21.31 लाख मरीज). निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले 2.95 करोड़ लाभार्थियों में से लगभग 60 फीसदी इन्हीं पांच राज्यों से थे.

रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक इस राज्य में निजी अस्पतालों में जाने वाले मरीजों की संख्या के प्रतिशत में हर साल दो अंको की वृद्धि देखी गई. उदाहरण के लिए, 2018-19 में राज्य के 52,202 लाभार्थियों ने निजी अस्पतालों में इलाज कराया. अगले वर्ष यह संख्या बढ़कर 2.17 लाख लाभार्थियों तक पहुंच गई, जो 316% की वृद्धि थी. अगले चार वर्षों में, राज्य ने पिछले वर्षों की तुलना में लगातार दो अंकों की वृद्धि दर्ज की: क्रमशः 16%, 62%, 64% और 42%.

उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और मध्य प्रदेश में कुल सूचीबद्ध सरकारी अस्पतालों का लगभग 24 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन इन राज्यों में कुल रोगियों में से केवल 11 प्रतिशत ने ही सरकारी अस्पतालों में इलाज कराया.

इसके विपरीत, चार राज्य – केरल, जम्मू कश्मीर, पंजाब और झारखंड – जहां देश भर में कुल सूचीबद्ध सरकारी अस्पतालों का केवल 5 फीसदी है, वहां 22 फीसदी लोगों ने सरकारी अस्पताल में इलाज लिया.

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