हज़ारों की तादाद में ऐसे नवयुवक तैयार हैं जो अब धर्म के नाम पर जान लेने और देने के लिए तत्पर हैं.
बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद के रक्तरंजित दौर की तरफ पच्चीस साल बाद फिर लौटते हुए हम नए सिरे से उस पुराने द्वंद्व से रूबरू होते हैं जो हर ऐसे सांप्रदायिक दावानल के बहाने उठता है.
मध्य प्रदेश के मंत्री ने कहा, अयोध्या जैसा आंदोलन दो बार और करना है. अभी तो अयोध्या मंदिर का हुआ. मथुरा एवं काशी के मंदिरों के लिए बाक़ी है.
अफ़राज़ुल हत्याकांड: ये तीन लोगों की कहानी है. भगवान, अल्लाह, गॉड, इलाही जिसको भी आप मानते हो, वो कहता है, साउंड, कैमरा, एक्शन और एक सीन शुरू होता है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी क़ानून शादी के बाद महिला के धर्म परिवर्तन की बात नहीं कहता है.
सिर्फ ये कहना कि ये किसी पार्टी विशेष की सरकार के कारण हुआ, समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों से बचना है. सरकार की ज़िम्मेदारी है पर यह समझना भी ज़रूरी है कि हम ख़ुद अपने घरों में क्या बात कर रहे हैं.
‘हम वहां राम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा करने गये थे, मस्जिद गिराने नहीं’, बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल रहे कारसेवकों ने बताया उनका अनुभव.
अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद वास्तविक मुद्दा नहीं हैं, क्योंकि जनता इस मुद्दे को लेकर शांतिपूर्ण रह रही है. वास्तविक मुद्दा सांप्रदायिकता का विकास और सांप्रदायिक संगठनों द्वारा सांप्रदायिक तनाव को हवा देना है.
यह वह अयोध्या नहीं है जिसको सार्वजनिक कल्पना में विहिप और भाजपा या दिल्ली के तथाकथित लिबरल्स व मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों ने स्थापित किया है. यह एक सामान्य शहर है.
देश के वामपंथी और समाजवादी बौद्धिकों ने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का पूरा दारोमदार मंडलवादी और आंबेडकरवादी आंदोलनों पर डाल दिया लेकिन इन आंदोलनों ने देश को इतने भ्रष्ट नेता दिए कि उनके पास धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का नैतिक बल ही नहीं बचा.
26 साल पहले आज ही के दिन स्वयं को रामभक्तों की सेना कहने वालों ने एक ऐसा जघन्य कृत्य किया था जिसके कारण पूरी दुनिया के सामने हिंदू धर्म का सिर हमेशा के लिए कुछ नीचे हो गया.
राम मंदिर था या नहीं, ये बहस अनंत काल तक चलाई जा सकती है, लेकिन मुद्दा इतिहास का नहीं बल्कि धर्म के नाम पर बरगलाने का है.
ग्राउंड रिपोर्ट: भाजपा शासन से उपजे मोहभंग के कारण तेज़ मिजाज़ पाटीदारों ने अब आर्थिक मोर्चे पर इसकी नाक़ामियों को सामने रखना शुरू कर दिया है.
विदेशी दुश्मनों को ज़रूरत से ज़्यादा निचोड़ लिया गया है. अब नये दुश्मन की ज़रूरत है. अब घर में तलाश की जा रही है. इसके लिए इतिहास को काम पर लगाया गया है.
बाराबंकी के इस भाजपा नेता के भाषण के समय योगी सरकार के दो कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान और रामापति शास्त्री भी मंच पर मौजूद थे.