इस घुप्प अंधेरे में नागरिकों के विवेक को संबोधित करने वाले लोग कहां हैं?

इस समय संविधान की सबसे बड़ी सेवा सत्ताधीशों के स्वार्थी मंसूबों की पूर्ति के उपकरण बनने से इनकार करना है. समझना है कि संविधान के मूल्यों को बचाने की लड़ाई सिर्फ न्यायालयों में या उनकी शक्ति से नहीं लड़ी जाती. नागरिकों के विवेक और उसकी शक्ति से भी लड़ी जाती है.

विचारधाराएं साहित्य से नहीं उपजतीं, फिर भी साहित्य को अपना उपनिवेश बनाने की चेष्टा करती हैं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: धर्म का छद्म करती विचारधारा ‘हिंदुत्व’ कहलाती है. उसके प्रभाव में भारतीय समाज जितना सांप्रदायिक धर्मांध और हिंसक आज है उतना पहले कभी नहीं हुआ.

संविधान दिवस: अगर देश आरएसएस के मुताबिक़ चलता रहा तो हमारा संवैधानिक ढांचा क्या रहेगा?

आंबेडकर का कहना था कि हिंदू राज इस देश के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी क्योंकि हिंदू राष्ट्र का सपना आज़ादी, बराबरी और भाईचारे के ख़िलाफ़ है, और यह लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.

हिंदुत्व की राजनीति ने हिंदू धार्मिक उत्सवों पर असर डाला है

90 के दशक से ही राजनीति द्वारा धर्म के संगठित और सुनियोजित उपयोग की जो प्रक्रिया आरंभ हुई 2014 के बाद उसमें और तेज़ी आई. पिछले कुछ वर्षों में तो छोटे स्थानीय धार्मिक मेलों में राष्ट्रवाद की घुसपैठ शुरू हुई है.

भारत की नई राजनीतिक संस्कृति में ज्ञान के बजाय अज्ञान का महिमामंडन हो रहा है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पहले के निज़ामों में कमोबेश संस्कृति की स्वतंत्रता और गरिमा का एहतराम और आदर दोनो ही थे: वर्तमान निज़ाम ने संस्कृति को राजनीति की दासी और अधिक से अधिक उसे सत्ता के महिमामंडन और शोभा की चीज़ बना दिया है.

विधानसभा उपचुनाव से पहले ठाकुरवाद के आरोपों से घिरी योगी आदित्यनाथ सरकार

उत्तर प्रदेश विधानसभा के उपचुनावों के दौरान भाजपा को उस मुद्दे पर चुनौती मिल रही है, जहां वह ख़ुद को अजेय समझती थी- हिंदू एकता.

इतिहास जस्टिस चंद्रचूड़ को कैसे याद करेगा, यह उन्होंने ख़ुद तय कर दिया है

भारत के इतिहास में यह दर्ज किया जाएगा कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता की इमारत जब गिराई जा रही थी, हमारे कई न्यायाधीशों ने उसकी नींव खोदने का काम किया. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का नाम सुर्ख़ियों में होगा.

स्वतंत्रता आंदोलन से दूर रहने वाला आरएसएस आज विउपनिवेशीकरण का दावा कैसे कर सकता है?

पिछले वर्षों में अदालतें अपने निर्णयों के संदर्भ बिंदु संविधान की जगह धार्मिक ग्रंथों, धर्मशास्त्रों को बना रही हैं. इस तरह हिंदुओं की सार्वजनिक कल्पना को बदला जा रहा है.

धीरेंद्र झा ने गोलवलकर की जीवनी के ज़रिये भारतीय फ़ासिज़्म की जीवनी लिखी है

धीरेंद्र के. झा की 'गोलवलकर: द मिथ बिहाइंड द मैन, द मैन बिहाइंड द मशीन' साफ़ करती है कि सावरकर के साथ एमएस गोलवलकर को भारतीय फ़ासिज़्म का जनक कहा जा सकता है. इसे पढ़कर हम यह सोचने को बाध्य होते हैं कि क्यों फ़ासिज़्म के इस रूप के प्रति भारत के हिंदुओं में सहिष्णुता है.

आम चुनाव के बाद अयोध्या में भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिंदू परिषद क्या कर रहे हैं?

रफ़ीक़ शादानी ने कभी लिखा था कि ‘का कहिकै चंदा मंगिहैं, जनता से छल-बल का करि हैं, जब राम कै मंदिर बनि जाए, तब जोसी सिंघल का करिहैं?’ शादानी के 'जोसी सिंघल का करिहैं' वाले सवाल से अयोध्या के भाजपा व विहिप कार्यकर्ता भी दो चार हैं.

हिंदुओं को लगातार डराकर उनके बड़े हिस्से का सामाजिक विवेक छीन लिया गया है

जिस भी समाज में धर्मभीरुता बढ़ जाती है, उससे अपने धर्म के उदात्त मूल्यों की हिफाजत संभव नहीं हो पाती. पहले वह बर्बरता, बीमारी व असामाजिकता के सन्निपातों, फिर अनेक असली-नकली असुरक्षाओं से पीड़ित होने लग जाता है.

यूपी: क्या विधानसभा उपचुनाव योगी सरकार व विपक्ष दोनों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गए हैं

लोकसभा चुनाव में हार को अति आत्मविश्वास का नतीजा बताने वाले योगी आदित्यनाथ उपचुनावों में भाजपा को वांछित जीत दिला देंगे तो माना जाएगा कि उनकी लोकप्रियता का लिटमस टेस्ट हो गया. वहीं, विपक्षी गठबंधन को साबित करना है कि आम चुनाव में उसकी बढ़त तुक्का नहीं थी.

मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा और हिंसा भारत में महामारी की तरह फैल गई है

मुसलमानों पर हिंसा करने वाले हिंदू कम हो सकते हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि हिंदुओं में बहुलांश को मुसलमानों पर हिंसा से फ़र्क नहीं पड़ता.

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के एलएलबी कोर्स में पढ़ाई जाएगी मनुस्मृति: रिपोर्ट

दिल्ली स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय को भारतीय न्यायशास्त्र पर केंद्रित एलएलबी कार्यक्रम शुरू करने की अनुमति मिली है, जिसके पाठ्यक्रम में मनुस्मृति के चुनिंदा हिस्से को पढ़ाया जाएगा.

क्या फांसी तक गोडसे का आरएसएस से जुड़ाव था?

पुस्तक समीक्षा: धीरेन्द्र के. झा की ‘गांधी का हत्यारा गोड़से' किताब से आरएसएस के उस दुरंगेपन की पहचान अब बहुत आसान हो गई है जिसके तहत कभी वह नाथूराम से पल्ला छुड़ाता है और कभी उसका ‘यशगान’ करने वालों को अपना नया 'आइकाॅन' बना लेता है.

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