कश्मीर के भूगोल पर तो कब्ज़ा किया जा सकता है, पर कश्मीरियत का क्या होगा?

असुरक्षा का भाव समाज के सैन्यकरण की स्वीकृति का अनिवार्य तत्व होता है. सांप्रदायिक राजनीति उसके भीतर भी असुरक्षा बोध खड़ा करती है जिसके पक्ष में वह दिखना चाहती है और उसके भीतर भी, जिसे वह शत्रु के रूप में चित्रित करती है. कश्मीर में असुरक्षा की भावना का इस्तेमाल कश्मीरी हिंदुओं और कश्मीरी मुसलमानों दोनों के ख़िलाफ़ होता आ रहा है.

अगर तिरंगा फहराना ही देशभक्ति है तो संघ पंद्रह साल पहले ही देशभक्त हुआ है

क्या 2002 के पहले तिरंगा भारतीय राष्ट्र का राष्ट्रध्वज नहीं था या फिर आरएसएस खुद अपनी आज की कसौटी पर कहें तो देशभक्त नहीं था?

अगर यह हिंदू राष्ट्र नहीं है तो और क्या है?

उदारवादी बौद्धिक जमात के लिए भारत भले ही अब तक हिंदू राष्ट्र न बना हो, लेकिन गलियों में घूमनेवाले हिंदुत्ववादियों के लिए यह एक हिंदू राष्ट्र है. इसके लक्षण भले छिपे हुए हों, लेकिन इसके समर्थक और पीड़ित, दोनों ही बहुत ही स्पष्ट तरीके से इसका अनुभव कर सकते हैं.

समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले को लेकर किए अमित शाह के दावों में कितनी सच्चाई है?

गृहमंत्री अमित शाह का दावा है कि पिछली सरकार ने हिंदू धर्म को आतंकवाद से जोड़ने के लिए असली दोषियों को छोड़ दिया था, यदि ऐसा है तो एनआईए उन्हें पकड़ने की दिशा में कोई कदम क्यों नहीं उठा रही है?

विपक्ष को विनम्रता से स्वीकारना चाहिए कि वे राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर विकल्प देने में असमर्थ रहे हैं

लोकसभा चुनाव परिणाम यह बताते हैं कि तात्कालिक आर्थिक स्थितियां परिणामों को निर्धारित करनेवाला एकमात्र कारक नहीं होतीं, लोग अपने निर्णय उपलब्ध विकल्पों के आधार पर तय करते हैं.

क्या हिंदुत्ववादियों का भारतीय मुसलमानों को लेकर फैलाया गया झूठ हक़ीक़त में बदल सकता है

2014 के बाद से बिना किसी प्रमाण के देश के मुसलमानों को हिंदू-विरोधी और धार्मिक रूप से कट्टरपंथी बताया जा रहा है. लेकिन डर है कि अगले पांच सालों में उनमें से कुछ ऐसे चुनाव कर सकते हैं, जो उनके समुदाय के बारे में गढ़े गए झूठ को वास्तविकता में बदल देंगे.

‘बहुमत’ की खोज

पूर्व में बहुमत अंकगणित से हासिल होता था, जो सामाजिक समूहों को एक साथ जोड़कर होता था, यह बहुमत सिर्फ वैचारिक मंच पर ही नहीं, बल्कि सत्ता में सभी की भागीदारी का वादा करके हासिल होता था. 2014 में भाजपा ने ख़ुद को चुनावी अंकगणित से दूर कर लिया और ध्रुवीकरण की प्रक्रिया से राष्ट्रीय बहुमत हासिल किया.

जय श्रीराम का नारा राम की महिमा का उद्घोष नहीं, दबंगई का ऐलान है

लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि उनका राम अभियान धार्मिक नहीं था. वह राम के नाम की आड़ में एक मुसलमान घृणा से युक्त राजनीतिक हिंदू के निर्माण का अभियान था. जय श्रीराम इसी गिरोह का एक राजनीतिक नारा है. इस नारे का राम से और राम के प्रति श्रद्धा से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं. आप जब जय श्रीराम सुनें तो मान लें कि आपको जय आरएसएस कहने की और सुनने की आदत डाली जा रही है.

प्रज्ञा ठाकुर के माध्यम से भाजपा किसकी आकांक्षा का प्रतिनिधित्व कर रही है

क्या वाकई देश का हिंदू अब इस अवस्था को प्राप्त कर चुका है जहां उसके इंसानी और नागरिक बोध का प्रतिनिधित्व प्रज्ञा ठाकुर जैसों के रूप में होगा?

इस चुनाव में मुसलमानों के लिए क्या है?

आज भारतीय राजनीति एक ऐसे दौर में है जब कोई भी राजनीतिक पार्टी मुस्लिम समुदाय की बात नहीं करना चाहती. वे राजनीतिक रूप से अछूत बना दिए गए हैं. अब उनका इस्तेमाल बहुसंख्यक आबादी को वोट बैंक में तब्दील करने के लिए किया जा रहा है.

मालेगांव धमाके में एटीएस के पास प्रज्ञा के ख़िलाफ़ सबूत थे, टिकट दिया जाना गलत: रामदास अठावले

केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि लोगों को बचाने के लिए आतंकियों से लड़ते हुए करकरे शहीद हो गए थे. मैं करकरे को लेकर साध्वी के बयान से सहमत नहीं हूं. हम इसकी आलोचना करते हैं. यह फैसला करना अदालत का काम है कि क्या सही है और क्या गलत. अगर हमारी पार्टी की बात होती तो हम उन्हें नहीं खड़ा करते.

कांग्रेस का घोषणा-पत्र: चाय पर चर्चा से भली आय पर चर्चा

कांग्रेस का घोषणा-पत्र कम से कम इस अर्थ में बहुत सार्थक है कि तात्कालिक रूप से ही सही, देश के राजनीतिक विमर्श की दशा व दिशा बदलने के संकेत मिल रहे हैं.

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