पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि केंद्र के पास अब भी जम्मू कश्मीर में एक संवाद प्रक्रिया शुरू करने का अवसर है जैसे पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने किया था और उनके पास सूबे की पहचान को अवैध रूप से और असंवैधानिक तरीके से छीनकर की गई ग़लती को सुधारने का एक मौक़ा है, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी.
गृह मंत्रालय में एक आरटीआई आवेदन दायर कर संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जुड़े सभी दस्तावेज़, पत्राचार, फाइल नोटिंग्स, रिकॉर्ड इत्यादि की प्रतियां मांगी गई थीं.
वीडियो: क्या कुछ व्यापारों पर सरकार एकाधिकार कर सकती है? क्या शराब का व्यापार, मूल अधिकार माना जा सकता है? क्या कोई व्यक्ति पटाखे बनाने की फैक्ट्री को मूल अधिकार के रूप में मांग कर सकता है? क्या शैक्षणिक संस्थान चलाने वाले व्यापार कर रहे है? इन सभी सवालों पर हमारा संविधान क्या कहता है समझा रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि सरकार कश्मीर में आतंकवादी हिंसा के चलते अपने घरों से पलायन कर गए कश्मीरी पंडितों की पैतृक संपत्ति को बहाल करने के प्रयास कर रही है तथा अभी तक नौ संपत्तियों को उनके उचित एवं वास्तविक स्वामियों को वापस कर दिया गया है.
कश्मीरी पत्रकार इरफ़ान अमीन मलिक ने जम्मू कश्मीर की फिल्म नीति के बारे में सात अगस्त की शाम को एक ट्वीट पोस्ट किया था. हालांकि ट्वीट पोस्ट करने के दो मिनट के भीतर ही उन्होंने उसे डिलीट कर दिया था, लेकिन जम्मू कश्मीर पुलिस ने आठ अगस्त को मलिक को दक्षिण कश्मीर के त्राल पुलिस स्टेशन बुलाया, जहां उनसे इस संबंध में पांच घंटे तक पूछताछ की गई.
पांच अगस्त, 2019 से पहले जब जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्ज़ा प्राप्त था तो राज्य विधानसभा को किसी नागरिक को परिभाषित करने का संवैधानिक अधिकार था. केवल वे परिभाषित नागरिक ही राज्य में नौकरियों के लिए आवेदन करने या अचल संपत्ति ख़रीदने के हक़दार होते थे.
वीडियो: भारत के सभी नागरिकों को अधिकार है, कि वे किसी भी भाग में आ-जा सकें और अपना घर बना सके या बस सके. इसी प्रकार से डिपोर्टेशन ऑर्डर जिसके द्वारा किसी भी व्यक्ति को देश निकाला दिया जा सकता है, उस पर भी संवैधानिक अंकुश है. इस वीडियो में अधिवक्ता अवनि बंसल ने पुलिस निगरानी पर सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग फैसलों द्वारा अनुच्छेद-19 (1) (डी) और 19 (1) (ई) को समझा रही हैं.
वीडियो: क्या भारत के नागरिक शांतिपूर्वक मिलकर बिना हथियारों के मीटिंग या धरना कर सकते है? यदि हां, तो सरकार किन आधारों पर इस अधिकार पर अंकुश लगा सकती है? इसी प्रकार क्या भारत के नागरिक यूनियन या संगठन बना सकते है? क्या सरकार इन संगठनों पर रोक लगा सकती है? इस पर भारत का संविधान क्या कहता है बता रहीं हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.
वीडियो: क्या सरकार हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा सकती है? क्या सरकार हमसे अपने भाषण का अधिकार, लिखने का अधिकार, छीन सकती है? इस वीडियो में सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल समझा रही हैं कि अनुच्छेद 19 2 में वो कौन से कारण हैं, जिसके आधार पर सरकार अभिव्यक्ति के अधिकार को सीमित कर सकती है.
वीडियो: हमारा संविधान की इस कड़ी में अधिवक्ता अवनि बंसल संविधान के अनुच्छेद 19 में शामिल प्रेस की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार के बारे में जानकारी दे रही हैं. असहमति का अधिकार भी अभिव्यक्ति के अधिकार का अभिन्न अंग है. इसलिए सभी नागरिकों को ये अधिकार है कि वो सरकार की नीतियों पर अपनी बात खुलकर कह सके और उसे लोगों तक पहुंचा सके.
मेघालय हाईकोर्ट ने कहा कि दुकानदारों, टैक्सी ड्राइवरों आदि को अपना व्यवसाय दोबारा शुरू करने के लिए टीका लगाने के लिए मजबूर करना इससे जुड़े भलाई के मूल उद्देश्य को प्रभावित करता है.
वीडियो: अनुच्छेद-19 (1) (ए) अभिव्यक्ति के अधिकार पर आधारित है. हमारा संविधान की इस कड़ी में सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल अलग-अलग फ़ैसलों की मदद से अभिव्यक्ति के अधिकार में सम्मिलित अधिकारों के बारे में बता रही हैं.
वीडियो: संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत जातिवाद के आधार पर होने वाली छुआछूत या अस्पृश्यता के भेदभाव को गैर-संविधानिक माना गया है. वहीं, अनुच्छेद 18 के तहत सभी प्रकार की उपाधि देने की व्यवस्था को ख़त्म कर दिया गया. इनके बारे में विस्तार से बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.
वीडियो: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में समानता की बात कहता है. इसके मुताबिक धर्म, जाति, लिंग आदि के नाम पर सरकारी नौकरियों में नियुक्ति और पदोन्नति में भेदभाव नहीं किया जा सकता. यदि सरकार को ये लगता है कि कुछ जाति या समुदाय के लोगों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, तो उनके लिए आरक्षण किया जा सकता है.
खेत में सिंचाई के लिए ट्यूबवेलों में बिजली आपूर्ति बहाल करने के लिए दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट की पीठ ने यह टिप्पणी की. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़िला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि क्षेत्र के ट्यूबवेलों का रखरखाव के साथ-साथ लगातार बिजली मुहैया कराई जानी चाहिए.