बेंगलुरु-चेन्नई शताब्दी एक्सप्रेस में शुक्रवार को अंग्रेजी अख़बार ‘द आर्यावर्त एक्सप्रेस’ बांटा गया, जिसके मुख्य पृष्ठ पर इस्लामी शासन और औरंगज़ेब के संबंध में लेख छपे थे. जबकि आईआरसीटीसी का कहना है कि इस ट्रेन में डेक्कन हेराल्ड और एक कन्नड़ अख़बार बांटे जाने का निर्देश दिया गया है. एक यात्री ने जब ट्विटर पर इसके ख़िलाफ़ आपत्ति जताई तो रेलवे प्रबंधन ने सफाई पेश करते हुए जांच की बात कही है.
वीडियो: भारत भर में छात्र विभिन्न भर्ती परीक्षाओं के रिज़ल्ट और कई भर्ती परीक्षाओं की तारीखों के ऐलान करने का इंतज़ार कर रहे हैं. इसके ख़िलाफ़ तमाम युवाओं ने एक ऑनलाइन विरोध अभियान शुरू किया है. द वायर ने ऐसे कुछ युवाओं से बातचीत की.
द वायर द्वारा भारतीय रेल के 18 ज़ोन में दायर आरटीआई आवेदनों के तहत पता चला है कि श्रमिक ट्रेनों से यात्रा करने वाले कम से कम 80 प्रवासी मज़दूरों की मौत हुई है. केंद्र सरकार के रिकॉर्ड में ये जानकारी उपलब्ध होने के बावजूद उसने संसद में इसे सार्वजनिक करने से मना कर दिया.
रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि 12 सितंबर से शुरू हो रहीं 80 विशेष ट्रेनों के लिए रिज़र्वेशन 10 सितंबर से शुरू होगा. ये ट्रेनें पहले से ही चल रहीं 230 विशेष ट्रेनों के अलावा होंगी.
सुप्रीम कोर्ट ने 28 मई को दिए एक आदेश में कहा था कि ट्रेन या बस से यात्रा करने वाले किसी भी प्रवासी मज़दूर से किराया नहीं लिया जाएगा. आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार शीर्ष अदालत के निर्देशों के बावजूद रेलवे द्वारा श्रमिक ट्रेनों के यात्रियों से किराया लिया गया है.
इससे पहले रेलवे ने लॉकडाउन के दौरान सभी ट्रेन सेवाओं को 12 अगस्त तक निलंबित कर दिया था. यात्री ट्रेन सेवा के बंद होने से इस वित्त वर्ष में रेलवे ने 40 हज़ार करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया है.
रेलवे बोर्ड ने एक आदेश में कहा कि औपनिवेशिक काल से चले आ रहे खलासी पदों की समीक्षा के बाद निर्णय लिया गया है कि अब इनकी भर्ती नहीं होगी. साथ ही एक जुलाई 2020 से इन पदों पर की गई नियुक्तियों की भी समीक्षा की जाएगी.
एक आरटीआई आवेदन के जवाब में मिले आंकड़ों के अनुसार 29 जून तक 4,615 ट्रेनें चलीं और रेलवे ने इनसे 428 करोड़ रुपये कमाए. इसके साथ ही जुलाई में 13 ट्रेनें चलाने से रेलवे को एक करोड़ रुपये की आमदनी हुई.
लॉकडाउन के दौरान मज़दूरों को उनके घर ले जा रहीं श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में हुई मुसाफ़िरों की मौतों की आलोचना के बाद रेलवे ने अधिकतर मामलों में मृतकों की पुरानी बीमारियों और उनकी शारीरिक अवस्था को ज़िम्मेदार ठहराया था.
बीते 26 मई को झांसी से गोरखपुर जा रही एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार आज़मगढ़ के 45 वर्षीय प्रवासी श्रमिक रामभवन मुंबई से अपने परिवार सहित घर लौट रहे थे, जब रास्ते में अचानक उनकी तबियत ख़राब होने लगी. परिजनों का कहना है कि समय पर उचित मेडिकल सहायता न मिलने के कारण उन्होंने कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर दम तोड़ दिया.
रेलवे सुरक्षा बल के आंकड़ों के मुताबिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में करीब 80 लोगों की मौत 9 मई से 27 मई के बीच हुई है. इनमें चार वर्ष से लेकर 85 वर्ष तक के यात्री शामिल थे.
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को न सिर्फ़ खाने-पीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि रेलवे द्वारा रूट बदलने के कारण कई दिनों की देरी से वे अपने गंतव्य तक पहुंच पा रहे हैं. इस दौरान भूख-प्यास और भीषण गर्मी के कारण मासूम बच्चों समेत कई लोग दम तोड़ चुके हैं.
आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या किसी चीज़ का कोई तर्क बचा है? क्या यह इसलिए है कि सरकार निश्चिंत है कि उसके फैसलों की तर्कहीनता की हिमाकत पर उसकी जनता मर मिटने को तैयार बैठी है?
यात्रियों को एयरपोर्ट में प्रवेश करने से पहले थर्मल जांच से गुजरना अनिवार्य होगा और उन्हें अपने सामान को सैनिटाइज करना होगा. सरकार ने 25 मई से चरणबद्ध तरीके से देश में विमान सेवाएं शुरू करने की घोषणा की है.
कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के बीच देश में 25 मार्च से सभी व्यावसायिक यात्री उड़ानें निलंबित हैं.