शिक्षा से संबंधित प्लेटफॉर्म अनएकेडेमी के एक शिक्षक एक वायरल वीडियो में आदिवासी समुदाय के लोगों को लेकर नस्लीय टिप्पणी करते नज़र आए. टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की एक छात्रा द्वारा इस वीडियो को ट्वीट करने पर इसकी चौतरफा आलोचना हुई, जिसके बाद इसे अनएकेडेमी के पेज से हटा दिया गया.
कोरोना वायरस महामारी के चलते केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों का विश्लेषण करें, तो स्पष्ट रूप से दिखता है कि आदिवासियों और वन निवासियों के अधिकारों और उनकी ज़रूरतों की अनदेखी की गई है.
लगभग 11.8 लाख आदिवासियों और वनवासियों को वन भूमि से बेदखल करने के मामले की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नौ राज्यों ने आदिवासियों के दावे ख़ारिज करते समय तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया है.
वन अधिकार क़ानून 2006 के तहत ख़ारिज दावा-पत्रों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को जंगल से बेदख़ल करने का आदेश दिया था, जिस पर बाद में रोक लगा दी गई. पर दावा-पत्र खारिज क्यों हुए? केंद्र सरकार ने अदालत से कहा कि दावा-पत्र सही से नहीं भरे गए, जबकि हक़ीक़त यह है कि सरकारों की मिलीभगत से इन्हें ख़ारिज किया गया है ताकि जंगलों में खनिज संपदा के दोहन के लिए लीज़ देने में किसी तरह की परेशानी
आदिवासियों की जंगल से बेदख़ली का जो सिलसिला आज़ादी के बाद से कभी विकास तो कभी पर्यावरण के नाम पर चला आ रहा है, क्या वह किसी तार्किक परिणति की तरफ बढ़ रहा है? हालांकि जैसे-जैसे आदिवासी तबाह हो रहे हैं, परेडों, संग्रहालयों, कला मेलों और शहरी उत्सवों में उनकी शोभा में वृद्धि हो रही है.
वीडियो: जंगल से आदिवासियों को बेदख़ल करने के मुद्दे के ख़िलाफ़ नई दिल्ली में विभिन्न आदिवासी संगठनों ने प्रदर्शन किया. उनकी मांग है कि वन अधिकार कानून-2006 को सख़्ती से लागू किया जाए. प्रदर्शनकारियों से संतोषी की बातचीत.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि अधिनियम के तहत वास्तव में दावों का खारिज होना आदिवासियों को बेदखल करने का आधार नहीं है. अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर दावे के खारिज होने के बाद किसी को बेदखल किया जाए.
16 राज्यों के करीब दस लाख आदिवासियों को उनका घर-गांव छोड़ने का शीर्ष अदालत का आदेश दिखाता है कि हमारी व्यवस्था एक बार फिर आदिवासियों के हितों की रक्षा करने और उन्हें यह भरोसा दिलाने में विफल रही है कि आज़ाद देश में उनके साथ अंग्रेजों के समय जैसा अन्याय नहीं होगा.
जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार 30 नवंबर, 2018 तक देश भर में 19.39 लाख दावों को खारिज कर दिया गया था. इस तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद करीब 20 लाख आदिवासी और वनवासियों को जंगल की ज़मीन से बेदखल किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से 16 राज्यों के आदिवासी प्रभावित होंगे.
आज भी जब हम बच्चों को जंगल की कहानी सुनाते हैं तो उसमें पेड़, पौधे, घास, जानवर, शेर, शिकार, नदी, सब होता है पर जो नहीं होता वो है मनुष्य. जिसने सदियों से जंगल को उर्वर बनाए रखा, सहेजकर रखा और दोनों के बीच ऐसा तादात्म्य बनाया कि हिंदुस्तान की संस्कृति में इसे प्राथमिक स्थान मिला.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि सरकारों के पास 75,000 करोड़ रुपये के विभिन्न फंडों के प्रयोग की कोई योजना भी है या नहीं? केंद्र ने कहा कि फंड सुरक्षित रखा हुआ है लेकिन प्रश्न है कि उसका प्रयोग कैसे किया जाए?