प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति में विपक्षी सदस्य कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर कहा है कि केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के चयन के मामले में सभी लोकतांत्रिक मानदंडों, रीति-रिवाजों और प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ा दी गई हैं.
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को हीरालाल सामरिया को मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) के रूप में पदोन्नत किया. सूचना आयुक्त के रूप में उनका कार्यकाल 7 नवंबर को समाप्त हो रहा था. केंद्रीय सूचना आयोग में एक सीआईसी और 10 सूचना आयुक्त नियुक्त होने चाहिए. हालांकि वर्तमान में 8 सूचना आयुक्तों के पद ख़ाली हैं.
पिछले 18 महीनों में गुजरात सूचना आयोग ने दस लोगों को जीवनभर आरटीआई आवेदन दायर करने से बैन करते हुए कहा कि वे 'सरकारी अधिकारियों को परेशान करने के लिए आरटीआई अधिनियम का इस्तेमाल' करते हैं. आयोग ने एक शख़्स पर आरटीआई के तहत सूचना मांगने पर पांच हज़ार रुपये जुर्माना भी लगाया है.
पूर्व पत्रकार उदय महुरकर की बिना आवेदन किए ही केंद्रीय सूचना आयोग में नियुक्ति हुई थी. उन्होंने मोदी मॉडल पर किताबें भी लिखी हैं. उनकी नियुक्ति को लेकर भी विवाद हुआ था. हाल के दिनों में महुरकर ने अपने कुछ ट्वीट्स में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की नीतियों के प्रति समर्थन जताया है.
विशेष रिपोर्ट: पिछले साल नवंबर महीने में मुख्य सूचना आयुक्त और तीन सूचना आयुक्तों की नियुक्ति हुई थी. इससे जुड़े दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद सर्च कमेटी ने बिना स्पष्ट प्रक्रिया और मानक के नामों को शॉर्टलिस्ट किया था. प्रधानमंत्री पर दो किताब लिख चुके पत्रकार को बिना आवेदन के सूचना आयुक्त बना दिया गया.
सूचना का अधिकार क़ानून के 15 साल पूरे होने के मौके पर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर में कम से कम 3.33 करोड़ आवेदन दायर हुए. सूचना आयोग समय पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर रहे. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद देश भर के सूचना आयोगों में 38 पद ख़ाली हैं, जो इस क़ानून के लिए बड़ा झटका है.
साल 2014 के बाद से ये चौथा मौका है जब फिर से मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली हुआ है लेकिन अभी तक किसी की नियुक्ति नहीं हुई है. आयोग में कुल पांच पद खाली हैं जिसमें से चार पद नवंबर 2018 से खाली पड़े हुए हैं.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दावा किया कि आरटीआई का इस्तेमाल लोग ब्लैकमेलिंग के लिए कर रहे हैं. हालांकि ख़ुद केंद्र सरकार ने पिछले साल लोकसभा में बताया था कि बड़े स्तर पर आरटीआई के दुरुपयोग का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि नियुक्तियां करना शुरू कर दें. साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह दो हफ्ते के भीतर उस खोज समिति के सदस्यों के नाम सरकारी वेबसाइट पर डालें, जिन्हें सीआईसी के सूचना आयुक्त चुनने की ज़िम्मेदारी दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 15 फरवरी 2019 के फैसले में कहा था कि पारदर्शिता बरतते हुए सूचना आयुक्तों की नियुक्ति समय पर की जानी चाहिए. हालांकि अभी भी केंद्र और राज्यों में सूचना आयुक्तों के कई पद खाली हैं.
सांसदों को लिखे एक पत्र में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने कहा, 'मैं संसद के प्रत्येक सदस्य से अनुरोध करता हूं कि वे आरटीआई को बचाएं और सरकार को सूचना आयोगों और इस मूल्यवान अधिकार को मारने की अनुमति न दें.'
पूर्व सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने कहा कि यह एक हास्यास्पद प्रस्ताव है, जिन अधिकारियों को सूचना आयुक्तों के निर्देशों का पालन करना होता है, उन्हें सीआईसी के ख़िलाफ़ शिकायतों की जांच करने वाला उच्च प्राधिकार बना दिया गया है. यह उस संस्था को खत्म करने का एक और षड्यंत्रकारी प्रयास है.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि केंद्र एवं राज्य के सूचना आयोगों में खाली पदों पर छह महीने के भीतर भर्तियां की जानी चाहिए. कोर्ट ने ये भी कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित हो और केंद्रीय सूचना आयुक्त का दर्जा केंद्रीय चुनाव आयुक्त के बराबर होना चाहिए.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बनाई गई कमेटी ने 14 नामों को शॉर्टलिस्ट किया था जिसमें से 13 नौकरशाह थे. जिस पर जस्टिस सीकरी ने कहा कि हम नियुक्तियों को दोष नहीं दे रहे हैं. लेकिन गैर-नौकरशाह नाम भी थे, पर उनमें से किसी को भी नियुक्त नहीं किया गया.