जहां मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना धर्म परिवर्तन के एक मुस्लिम पुरुष और हिंदू महिला के बीच शादी को अमान्य बताया है, वहीं दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि शादी के लिए धर्म बदलना ज़रूरी नहीं है और अलग धर्म में आस्था रखने वाले जोड़े विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी कर सकते हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के हिस्से के रूप में ये दिशानिर्देश जारी किए, जहां एक मुस्लिम व्यक्ति ने अक्टूबर 2022 में एक हिंदू महिला द्वारा उसके ख़िलाफ़ दायर बलात्कार की शिकायत को रद्द करने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी. हालांकि, अदालत ने एफ़आईआर रद्द करने से इनकार कर दिया.
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सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें धर्मांतरण रोधी क़ानून के तहत ज़िलाधिकारी को सूचित किए बिना शादी करने वाले अंतरधार्मिक जोड़ों पर मुक़दमा चलाने से रोकने वाले हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी.
महाराष्ट्र सरकार ने अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादी करने वाले दंपति और इस तरह के विवाह के बाद परिवार से अलग हुई महिलाओं व उनके परिवार के बारे में जानकारी जुटाने के लिए एक समिति बनाई है. एनसीपी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सरकार को लोगों के निजी जीवन की जासूसी करने का कोई हक़ नहीं है.
यह मामला दो अंतरधार्मिक विदेशी नागरिकों से जुड़ा है, जिन्होंने अपने इच्छित विवाह को विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत करवाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख़ किया है.
एक मुस्लिम महिला और उनके हिंदू साथी द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि वे एक दूसरे से प्रेम करते हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं. अदालत ने कहा कि दो वयस्कों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, भले ही वे किसी भी धर्म के हों. कोर्ट ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि याचिकाकर्ताओं को उनके परिवार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी तरह से परेशान न किया जाए.
घटना उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले में बीते 28 जुलाई को हुई. करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने जबरन धर्म परिवर्तन और लव जिहाद का मामला बताकर स्थानीय अदालत में एक अंतरधार्मिक विवाह रुकवाया था. इसके बाद युवती के पिता की शिकायत के बाद युवक के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया है. शुरुआत में युवती ने कहा था कि वह दलित समुदाय से है, बालिग है और अपनी मर्ज़ी से शादी कर रही है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि हम ये समझने में असमर्थ हैं कि जब क़ानून दो व्यक्तियों, चाहे वो समलैंगिक ही क्यों न हों, को साथ रहने की अनुमति देता है, तो फिर न तो कोई व्यक्ति, न ही परिवार और न ही सरकार को दो लोगों के संबंधों पर आपत्ति होनी चाहिए, जो अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं.
एक हिंदू महिला और मुस्लिम शख़्स ने हाईकोर्ट से राहत मांगी है कि वे गुरुग्राम डिस्ट्रिक्ट मैरिज अधिकारी को निर्देश दे कि उनकी शादी का नोटिस उनके घर न भेजा जाए. कोर्ट ने कहा कि मांगी गई कुछ सूचनाएं निजता का उल्लंघन करती हैं. इस प्रक्रिया में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में बदलते वक़्त की मानसिकता झलकनी चाहिए.