चित्रकथा: जम्मू कश्मीर में बीते तीन हफ़्तों का सूरत-ए-हाल बयां करतीं तस्वीरें

बीते पांच अगस्त को केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के निर्णय लिया गया था.

जम्मू कश्मीर के लोगों को राष्ट्रवाद की भावना से जोड़ना अगला कदम: इंद्रेश कुमार

आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि एक अलग तरह का इस्लाम है, जो रमज़ान और ईद तक का सम्मान नहीं करता. यह सिर्फ हिंसा फैलाता है. पुलवामा हमले से यह पूरी तरह साफ हो गया. कश्मीरी मुसलमानों को इस तरह के इस्लामिक विचारों से दूर रहना चाहिए.

कश्मीर के भूगोल पर तो कब्ज़ा किया जा सकता है, पर कश्मीरियत का क्या होगा?

असुरक्षा का भाव समाज के सैन्यकरण की स्वीकृति का अनिवार्य तत्व होता है. सांप्रदायिक राजनीति उसके भीतर भी असुरक्षा बोध खड़ा करती है जिसके पक्ष में वह दिखना चाहती है और उसके भीतर भी, जिसे वह शत्रु के रूप में चित्रित करती है. कश्मीर में असुरक्षा की भावना का इस्तेमाल कश्मीरी हिंदुओं और कश्मीरी मुसलमानों दोनों के ख़िलाफ़ होता आ रहा है.

तीन तलाक़ क़ानून पर सवाल उठाने वाले कभी मुस्लिम महिलाओं की तकलीफ को नहीं समझ पाए

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद तीन तलाक़ हो रहे थे, इसलिए जब तक समाज और ग़लत काम कर रहे मर्दों के दिमाग में क़ानून का डर नहीं आएगा, तब तक तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ चल रही मुहिम का कोई नतीजा नहीं निकलेगा.

मुस्लिम औरतों को धर्म के पिंजरे में सुरक्षित रहने की गारंटी कौन दे रहा है?

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इस्लामिक यूथ फेडरेशन ने एक तस्वीर जारी की है, जिसमें औरतों को इस्लाम के पिंजरे में क़ैद पंछी की शक्ल दी गई. बताया गया कि ये पिंजरा ही वो महफ़ूज़ जगह है, जहां औरतें न सिर्फ़ नेकियां कमा सकती हैं बल्कि तमाम 'ज़हरीली' विचारधाराओं से बची रह सकती हैं.

जामिया एक विश्वविद्यालय है, इस्लाम के प्रचार का केंद्र नहीं

नई दिल्ली के जामि​या मिलिया इस्लामिया में विरोध के बाद एक फैशन शो के रद्द हो जाने से ये सवाल उठता है कि क्यों जामिया का प्रशासन कार्यक्रम के सुरक्षित होने देने की गारंटी न कर सका?

तीन तलाक़: मुस्लिम नहीं, पत्नियों को छोड़ देने वाले सभी पतियों को अपराध के दायरे में लाना चाहिए

पिछली जनगणना के अनुसार देश में 20 लाख से ज़्यादा महिलाएं अपने पति से अलग रहती हैं, जिन्हें छोड़ा गया है. ऐसा क़ानून आना चाहिए जिससे न केवल मुस्लिम बल्कि इस तरह पत्नियों को छोड़ देने वाले सभी पतियों को सज़ा मिल सके.

छोड़ी गई औरतों की संख्या तीन तलाक़ पीड़िताओं से ज़्यादा, मोदी उनके लिए भी बोलें

पतियों द्वारा एक़तरफा तरीके से छोड़ी गई हर औरत की ज़िंदगी दयनीय है. पिछली जनगणना के अनुसार भारत में कुल 23 लाख परित्यक्त औरतें हैं, जो तलाक़शुदा औरतों की संख्या के दोगुने से ज़्यादा है.

‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है’ टिप्पणी पर फिर से विचार करने की ज़रूरत: जस्टिस नज़ीर

1994 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है’ को पुनर्विचार के लिए पांच सदस्यीय पीठ को भेजे जाने के ख़िलाफ़ निर्णय देने वाली तीन सदस्यीय पीठ में शामिल जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर ने बहुमत से अलग राय दी. उन्होंने कहा, ‘इस फैसले को संबंधित धर्म के विश्वास, सिद्धांत और आस्था की रोशनी में जांचा जाना चाहिए.’

हमें वाजपेयी के बिना ‘मुखौटे’ वाले असली चेहरे को नहीं भूलना चाहिए

1984 के राजीव गांधी और 1993 के नरसिम्हा राव की तरह वाजपेयी इतिहास में एक ऐसे प्रधानमंत्री के तौर पर भी याद किए जाएंगे, जिन्होंने पाठ तो सहिष्णुता का पढ़ाया, मगर बेगुनाह नागरिकों के क़त्लेआम की तरफ़ से आंखें मूंद लीं.

हलाला और बहुविवाह मामले में जल्द सुनवाई पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हलाला और बहु विवाह के मामले में जल्द जवाब दाख़िल करने का निर्देश दिया है. मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक समीना बेगम की ओर से पेश अधिवक्ता शेखर और अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि उनकी मुवक्किल को धमकी दी जा रही है.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय: जो धार्मिक पाठ ही नहीं है, उसको लेकर हंगामा है क्यों बरपा…

एएमयू को एक लड़की की गुस्ताख़ी पसंद नहीं आई, इसलिए एक ऐसा नारा जो इस्लामिक भी नहीं है उस पर हायतौबा मची है. ये देखना भी कम दिलचस्प नहीं है कि यूनिवर्सिटी किसी ज़िम्मेदार शैक्षणिक संस्थान की तरह व्यवहार करने की बजाय फ़तवे की किताब खोलकर बैठ गई है.

क्यों राजनीति ने उर्दू को मुसलमान बना दिया है?

आम जनमानस में उर्दू मुसलमानों की भाषा बना दी गई है, शायद यही वजह है कि रमज़ान की मुबारकबाद देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने उर्दू को चुना. सच यह है कि जम्मू कश्मीर, पश्चिम बंगाल, केरल जैसे कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में उर्दू नहीं बोली जाती.

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