भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ 2019 में अनुच्छेद 370 में प्रावधानों में संशोधन कर जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने दोहराया कि जम्मू कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा ‘अस्थायी’ है.
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को ख़त्म कर जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कम से कम 23 याचिकाएं दाख़िल की गई है. बीते 10 जुलाई को एक नया हलफ़नामा दाख़िल कर सरकार ने अपने फैसले का बचाव किया है.
महबूबा मुफ़्ती लिखती हैं, 'जम्मू कश्मीर के लोगों ने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के साझा मूल्यों पर जिस देश से जुड़ने का फैसला किया, उसने हमें निराश कर दिया है. अब, केवल न्यायपालिका ही है जो हमारे साथ हुई ग़लतियों और नाइंसाफ़ी को सुधार सकती है.'
अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने और सूबे को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के मोदी सरकार के निर्णय के ख़िलाफ़ बीस से अधिक याचिकाएं अदालत में लंबित हैं. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की पीठ इन्हें अगले हफ्ते सुनेगी.
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि एक शादी में पट्टन जाना चाहती थीं, इसलिए उन्हें नज़रबंद किया गया. उन्होंने जोड़ा कि यदि पूर्व मुख्यमंत्री के मौलिक अधिकारों को इतनी आसानी से निलंबित किया जा सकता है, तो आम लोगों की पीड़ा के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता. पुलिस के उनके दावे का खंडन पर उन्होंने कहा कि पुलिस झूठ बोल रही है.
कश्मीरी प्रवासी कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के बाद पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश आज ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां पर लोगों के पास न तो कोई अधिकार है और न ही उनकी शिकायतों को उठाने के लिए कोई मंच.
केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था और इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया था. केंद्र के इस फैसले और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं उसी समय से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि जम्मू कश्मीर सरकार ने ऐसे लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए पिछले साल एक पोर्टल की शुरुआत की है, जो अत्याचार के कारण घाटी छोड़ने के लिए विवश हुए और जिनकी संपत्ति जबरन ले ली गई. केंद्र सरकार ऐसे लोगों की संपत्ति वापस लौटाने के लिए पूरी तरह से प्रयासरत है.
जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के रंगरेथ इलाके में बीते 13 दिसंबर को हुई गोलीबारी में दो आतंकी मारे गए थे. इसके विरोध में महिलाओं ने प्रदर्शन किया था. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्या की जा रही है और इन हत्याओं को लेकर जारी आधिकारिक बयानों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू होने के समय दूसरे राज्यों के लोग वहां ज़मीन या अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते थे. संसद में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि इस अनुच्छेद के निरस्त होने के बाद से सूबे के बाहर के व्यक्तियों ने कुल सात भूखंड खरीदे, जो जम्मू क्षेत्र में आते हैं.
अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त कर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था. विभिन्न राजनीतिक दल, ख़ासकर जम्मू एवं कश्मीर के राजनीतिक दल अक्सर केंद्र से राज्य का दर्जा देने और चुनाव कराए जाने की मांग करते रहे हैं.
इससे पहले जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से आतंकी हमलों में मरने वाले नागरिकों की संख्या बढ़ने की बात सामने आई थी. केंद्र ने बताया था कि मई 2014 से पांच अगस्त 2019 के बीच हुए आतंकी हमलों में 177 नागरिक मारे गए थे. उसके बाद नवंबर 2021 तक 27 महीनों में 87 नागरिकों की मौत हुई. इनमें से 40 से अधिक की मृत्यु इसी साल हुई है.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने केंद्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि जहां भारत सरकार अफ़ग़ानिस्तान में लोगों के अधिकारों के लिए चिंता व्यक्त कर रही है, वहीं कश्मीरियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है.
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि केंद्र के पास अब भी जम्मू कश्मीर में एक संवाद प्रक्रिया शुरू करने का अवसर है जैसे पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने किया था और उनके पास सूबे की पहचान को अवैध रूप से और असंवैधानिक तरीके से छीनकर की गई ग़लती को सुधारने का एक मौक़ा है, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी.
गृह मंत्रालय में एक आरटीआई आवेदन दायर कर संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जुड़े सभी दस्तावेज़, पत्राचार, फाइल नोटिंग्स, रिकॉर्ड इत्यादि की प्रतियां मांगी गई थीं.