देश के विश्वविद्यालय ख़ासकर केंद्रीय विश्वविद्यालय एक प्रकार से केंद्र सरकार के ‘विस्तारित कार्यालय’ में तब्दील कर दिए गए हैं. कोई भी अकादमिक विभाग बिना प्रशासन की ‘छन्नी’ से गुजरे किसी भी प्रकार का आयोजन नहीं कर सकता.
जेएनयू के नौजवानों ने छात्रसंघ चुनाव के नतीजों में दिखा दिया है कि सत्ता प्रतिष्ठान और हिंदुत्व के आक्रमण के बावजूद वह वैचारिक मज़बूती के साथ खड़ा हुआ है.
बीते महीने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने नए नियमों में कैंपस के किसी भी शैक्षणिक या प्रशासनिक भवन के पास धरना देने, विरोध प्रदर्शन और भूख हड़ताल पर 20,000 रुपये के जुर्माने, कैंपस से निष्कासन की बात कही थी. 23 दिसंबर को इसके विरोध में छात्रों ने परिसर में मशाल मार्च निकाला.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के चार प्रतिनिधियों और 12 छात्रावास अध्यक्षों को कुलपति के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन करने के मामले में जांच में शामिल होने के लिए नोटिस मिला है. जेएनयूएसयू अध्यक्ष ने कहा कि कम से कम पांच छात्रावासों में कई दिनों तक पानी की आपूर्ति बंद होने के कारण प्रदर्शन किया गया था.
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में बीते 6 जून की रात नशे में धुत कुछ कार सवार युवक कैंपस में घुस आए और दो छात्राओं के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें कार में खींचने का प्रयास किया. उनके द्वारा एक छात्र के साथ भी मारपीट की गई. घटना के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने रात 10 से सुबह 6 बजे के बीच बाहरी वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी है.
बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए ज़िम्मेदार पाया गया था. सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर इसके लिंक ब्लॉक करने का आदेश दिए जाने के बाद कई विश्वविद्यालयों में इसकी स्क्रीनिंग की जा रही है.
हिंदू सेना प्रमुख विष्णु गुप्ता ने बताया कि संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने भगवा जेएनयू के पोस्टर लगाए थे. वॉट्सऐप पर वायरल कथित वीडियो में गुप्ता को कहते सुना जा सकता है कि जेएनयू परिसर में 'भगवा का नियमित अपमान किया जा रहा है. हमारी चेतावनी है कि आप सुधर जाइए. हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे.'
आरोप है कि विश्वविद्यालय के कावेरी छात्रावास में रविवार को एबीवीपी के सदस्यों ने मेस में मांसाहार बनाने से रोकने के बाद हुई हिंसा में छह छात्र घायल हो गए. एबीवीपी ने दावा किया है कि वामपंथी छात्रों ने उनकी रामनवमी पूजा बाधित की. जेएनयू छात्रसंघ समेत कई छात्र संगठनों की शिकायत पर अज्ञात एबीवीपी सदस्यों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है.
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और भाकपा नेता कन्हैया कुमार के साथ गुजरात से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी भी कांग्रेस से जुड़ गए हैं. बताया गया है कि विधायक होने के कारण कुछ तकनीकी मुद्दों के मद्देनज़र वे कुछ समय बाद औपचारिक रूप से पार्टी की सदस्यता लेंगे.
बीते साल पांच जनवरी को जेएनयू में हुई हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस ने वॉट्सऐप और गूगल को पत्र लिखकर 33 छात्रों और दो वॉट्सऐप ग्रुप के सदस्यों द्वारा साझा किए गए संदेशों, तस्वीरों और वीडियो का विवरण मांगा था. गूगल ने एक संधि का हवाला दिया है, जिसके तहत जानकारी अदालत के आदेश के बाद मुहैया कराई जाती है.
2016 के जेएनयू राजद्रोह मामले में दिल्ली सरकार द्वारा पुलिस को आरोपियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे की मंज़ूरी देने के क़रीब साल भर बाद मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने आरोपपत्र का संज्ञान लिया है. कन्हैया कुमार के अलावा मामले में उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य पर देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है.
पांच जनवरी 2020 की शाम जेएनयू परिसर में लाठियों से लैस कुछ नक़ाबपोश लोगों ने छात्रों और शिक्षकों पर हमला किया था और परिसर में संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था. जेएनयू छात्रसंघ ने एबीवीपी के सदस्यों पर हिंसा का आरोप लगाया था, वहीं एबीवीपी ने लेफ्ट छात्र संगठनों द्वारा हमले की बात कही थी.
इस साल मार्च महीने में कोविड-19 के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान छात्र अपने गृहनगर वापस चले गए थे, लेकिन सितंबर से सभी छात्रों के चरणबद्ध तरीके से पुन: प्रवेश की मांग के बाद भी उन्हें कैंपस लौटने की अनुमति नहीं दी गई. ऐसे विद्यार्थी जो वापस आकर हॉस्टल में रहने लगे हैं, उन पर यह जुर्माना लगाया है.
पांच जनवरी को जेएनयू परिसर में नक़ाबपोशों द्वारा हुए हमले के घटनाक्रम और स्थानीय पुलिस की लापरवाही को लेकर गठित दिल्ली पुलिस की एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उस दिन कैंपस में माहौल ठीक नहीं था, लेकिन पुलिस के हस्तक्षेप के बाद स्थिति नियंत्रण में आ गई थी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि इस महामारी के बीच जब कोर्ट सीमित स्टाफ के साथ काम कर रही है तो इस तरह की याचिका दायर कर कोर्ट का बहुमूल्य समय नष्ट किया जा रहा है.