जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने उत्तराखंड सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों में जरूरी ‘तत्परता और तेजी’ नहीं होने का आरोप लगाया है. इस बीच शीर्ष अदालत भू-धंसाव को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि चूंकि राज्य का हाईकोर्ट इससे जुड़े विस्तृत मामलों की सुनवाई कर रहा है, इसलिए सैद्धांतिक रूप से उसे ही इस मामले पर सुनवाई करनी चाहिए.
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती का कहना है कि सरकार एनटीपीसी को क्लीनचिट दे रही है, जिससे स्थानीय निवासियों में गुस्सा है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वर्तमान स्थिति को प्राकृतिक आपदा क़रार दिया है. यह प्राकृतिक आपदा नहीं है. समिति ने कहा है कि वह इसके विरोध में गणतंत्र दिवस के अवसर पर विरोध प्रदर्शन करेगी.
जोशीमठ से क़रीब पांच किलोमीटर दूर स्थित सेलंग गांव के लोगों को कहना है कि पिछले कुछ महीनों से खेतों और कई घरों में दरारें दिखाई दे रही हैं. ग्रामीण इसके लिए एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनके अनुसार, गांव के नीचे एनटीपीसी की नौ सुरंगें बनी हैं, जिससे गांव की नींव को नुकसान पहुंचा है.
चिपको आंदोलन संबद्ध रहे रेमन मैग्सेसे, पद्म भूषण और गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणवादी चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि जोशीमठ में गुप्त ख़तरों की चेतावनी दो दशक पहले राज्य सरकार को दी गई थी. एक के बाद एक अध्ययन तब तक मदद नहीं करेगा, जब तक कि सरकारें सुझावों पर कार्रवाई शुरू नहीं करतीं.
भूस्खलन और जोशीमठ शहर के डूबने के कारणों की जांच के लिए गठित एक समिति ने 7 मई, 1976 को अपनी रिपोर्ट में भारी निर्माण कार्य, ढलानों पर कृषि और पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव दिए थे. अब स्थानीयों ने मौजूदा स्थिति के लिए बिजली और सड़क परियोजनाओं को ज़िम्मेदार ठहराया है.
एक अधिकारी ने बताया कि जोशीमठ की लगभग 610 इमारतों में बड़ी दरारें आ गई हैं, जिससे वे रहने लायक नहीं रह गई हैं. प्रभावित इमारतों की संख्या बढ़ सकती है. स्थानीय लोग इमारतों की ख़तरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं.
उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में एनटीपीसी जैसी बड़ी निर्माण परियोजनाओं के कारण इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के ख़िलाफ़ भारी आक्रोश है. लोगों का आरोप है कि नवंबर 2021 में ही ज़मीन धंसने को लेकर प्रशासन को आगाह किया गया था, लेकिन इसके समाधान के लिए सरकार द्वारा एक साल से अधिक समय तक कोई क़दम नहीं उठाया गया.