मानवाधिकार दिवस: दो साल से सलाखों के पीछे क़ैद पत्रकार रूपेश, उच्च शिक्षा बनी सहारा

जुलाई 2022 से जेल में बंद रूपेश कुमार सिंह की जीवनसाथी उनके कारावास के अनुभव दर्ज कर रही हैं, साथ ही बता रही हैं कि बिहार की जेलों में क़ैदियों के साथ कितना अमानवीय बर्ताव होता है. लेकिन रूपेश की जिजीविषा बरक़रार है.

रचनाकार का समय: मैं ख़ुद को बचाने के लिए लिखता हूं

यह लेखक के लिए हताश करने वाला समय है, मुश्किल समय है. सच लिखना शायद इतना जोखिम भरा कभी नहीं था जितना अब है. सच को पहचानना भी लगातार मुश्किल होता गया है.

नए भारत की दीमक लगी शहतीरें… भारतीय गणराज्य के मौजूदा संकट को समझने का अनिवार्य पाठ है

पुस्तक समीक्षा: अर्थशास्त्री परकाला प्रभाकर की 'नए भारत की दीमक लगी शहतीरें: संकटग्रस्त गणराज्य पर आलेख' न केवल भारतीय लोकतंत्र के वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य का विश्लेषण करती है, बल्कि बताती है कि देश के लोकतांत्रिक भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कौन से क़दम ज़रूरी हैं.

कोविड में नौकरी गंवाने वाले 80% पत्रकारों को इस्तीफ़े के लिए मजबूर किया गया था: रिपोर्ट

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19 के दौरान मीडिया संगठनों द्वारा पत्रकारों की छंटनी को लेकर उसके द्वारा गठित समिति के समक्ष पेश हुए 80 फीसदी पत्रकारों ने बताया कि उन पर इस्तीफे या वीआरएस का दबाव था या उन्हें सीधे नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया.

छत्तीसगढ़: बस्तर के पत्रकारों की आंध्र प्रदेश में गिरफ़्तारी पर आक्रोश

बस्तर के चार पत्रकारों को ख़बर मिली थी कि कोंटा से आंध्र प्रदेश रेत तस्करी की हो रही है, जिसमें भाजपा नेता भी शामिल हैं. जब वे घटना स्थल पर पहुँचे, पुलिस ने मामला रफा-दफा करने की भरसक कोशिश की.

रूपेश कुमार सिंह: 731 दिन की क़ैद, शोषण और जेल व्यवस्था के ख़िलाफ़ संघर्ष

झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में 17 जुलाई 2022 को गिरफ़्तार किया गया था. इन दो सालों में उन्होंने चार जेलों में समय बिताया है. पढ़िए उनके संघर्ष की कथा...

ईनाडु के संस्थापक चेयरमेन और मीडिया दिग्गज रामोजी राव का 87 वर्ष की आयु में निधन

मीडिया दिग्गज और रामोजी समूह के चेयरमैन चेरुकुरी रामोजी राव का शनिवार सुबह हैदराबाद के एक अस्पताल में निधन हो गया. पत्रकारिता, साहित्य और शिक्षा में उनके योगदान के लिए 2016 में उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.

अगर विश्वविद्यालय सार्वजनिक तौर पर विचारों की अभिव्यक्ति रोके तो वह अपने उद्देश्य से विमुख है

सार्वजनिक हित और सत्ता में हमेशा तनाव रहता है. बल्कि कई बार सत्ता अपने हित को ही सार्वजनिक हित मानने के लिए बाध्य करती है. जनता को इस द्वंद्व के प्रति सजग रखना ज्ञान के क्षेत्र में काम करने वालों का काम है. उनका सार्वजनिक बोलना या लिखना उनके लिए नहीं जनता के हित के लिए ज़रूरी है.

निर्वासित किए जाने के ख़तरे के बीच फ्रांसीसी पत्रकार वेनेसा डॉनेक ने भारत छोड़ा

फ्रांसीसी पत्रकार वेनेसा डॉनेक 25 साल से भारत में थीं. वह चार फ्रांसीसी प्रकाशनों की दक्षिण एशियाई संवाददाता थीं. गृह मंत्रालय के नोटिस में उन पर लगाए गए आरोपों में भारत के बारे में ‘नकारात्मक धारणा’ बनाने वाली ‘दुर्भावनापूर्ण’ रिपोर्टिंग से लेकर अव्यवस्था भड़काना, प्रतिबंधित क्षेत्रों की यात्रा के लिए अनुमति न लेना और पड़ोसी देशों पर रिपोर्टिंग करना शामिल है.

‘आज़ाद पत्रकारिता पर भारत के इतिहास का सबसे बड़ा ख़तरा है’

वीडियो: द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी को बीते दिनों हरियाणा के दिवंगत पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के नाम पर शुरू हुए छत्रपति सम्मान- 2023 से सम्मानित किया गया था. इस अवसर पर उनके द्वारा दिया गया वक्तव्य.

पत्रकार संगठनों ने प्रस्तावित प्रसारण सेवा विधेयक को ‘सेंसरशिप का प्रवेश द्वार’ बताया

नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट्स फेडरेशन ने कहा है कि प्रसारण सेवा विधेयक टीवी चैनलों से लेकर सभी प्रकार के मीडिया जैसे फिल्म, ओटीटी, यूट्यूब, रेडियो सोशल मीडिया के साथ-साथ समाचार वेबसाइटों और पत्रकारों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने की दिशा में एक क़दम है.

‘1992 के अपराधी आज के राष्ट्रवादी हो चले हैं’

वीडियो: टीवी मीडिया में क़रीब दो दशकों तक काम करने वाले दयाशंकर मिश्र द्वारा कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर लिखी गई किताब के विमोचन समारोह में द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का वक्तव्य.

पत्रकारिता सभ्यता का दर्पण और खोजी पत्रकारिता इसका एक्स-रे है: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2008 में कुछ पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज मानहानि के मामले से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ईमानदार पत्रकारिता सुनिश्चित करने के लिए पत्रकारों को अदालतों के संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि वे हानिकारक परिणामों से डरे बिना समाचार प्रकाशित कर सकें.

क्यों एक पत्रकार को राहुल गांधी पर किताब लिखने के चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा?

वीडियो: टीवी मीडिया में क़रीब दो दशकों तक काम करने वाले दयाशंकर मिश्र का कहना है कि उनका कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी पर किताब लिखने का फैसला, जिस संस्थान वे वे काम करते थे, उन्हें पसंद नहीं आया, जिसके चलते उन्होंने नौकरी छोड़ दी. उनसे द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

‘महात्मा’ हरगोविंद: मुक्तिकामी लेखन और जागरूक करने वाली पत्रकारिता के पैरोकार

पुण्यतिथि विशेष: जनता को जागरूक करने वाली पत्रकारिता के लक्ष्य को लेकर 'महात्मा' हरगोविंद ने 1958 में सहकारिता का सफल प्रयोग करते हुए ‘जनमोर्चा’ का प्रकाशन शुरू किया. पांच लोगों के पंद्रह-पंद्रह रुपयों के योगदान से शुरू हुआ यह अख़बार आज भी व्यक्तिगत मालिकाने के बिना चल रहा है.

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