लंदन के वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेमोक्रेसी की प्रमुख निताशा कौल को कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु में आयोजित एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था. कौल का कहना है कि जब वह 23 फरवरी को बेंगलुरु हवाई अड्डे पहुंचीं, तो उन्हें ‘होल्डिंग सेल’ में 24 घंटे रखने के बाद बिना कारण बताए लंदन भेज दिया गया.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, फॉक्सकॉन और ऐप्पल सहित भारतीय उद्योग लॉबी समूहों और विदेशी कंपनियों के ‘बहुत सारे इनपुट’ के बाद कर्नाटक सरकार ने अपने श्रम क़ानून में संशोधन किया है. संशोधन करने से पहले किसी भी श्रमिक समूह या ट्रेड यूनियन से परामर्श किया गया था या नहीं, इसका कोई उल्लेख नहीं है.
कर्नाटक के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने बताया है कि हर दिन मीडिया में आ रहीं ख़बरों में हिजाब पर रोक के चलते घर वापस भेजी गईं छात्राओं की संख्या अलग-अलग बताई जा रही है. हमारा उद्देश्य यह देखना है कि क्या विद्यार्थी वास्तव में इस मुद्दे से प्रभावित हैं या पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं.
हाईकोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा जारी आदेश का कोई तार्किक आधार नहीं है. कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि उनके आदेश का ये मतलब नहीं कि स्कूल ऑनलाइन शिक्षा को अनिवार्य बना सकते हैं या फिर इसके लिए अतिरिक्त फीस वसूल सकते हैं.
भाजपा अध्यक्ष ने कहा, '2013 में जब संप्रग की सरकार केंद्र की सत्ता में थी तो उन्होंने लिंगायत और वीरशैवों को अल्पसंख्यक दर्जा देने वाला प्रस्ताव खारिज कर दिया था. उस वक्त सिद्दारमैया चुप क्यों थे? यह हिंदुओं को बांटने की कोशिश है.'
शब्द और विचार हर किस्म के कठमुल्लों को बहुत डराते हैं. विचारों से आतंकित लोगों ने अब शब्दों और विचारों के ख़िलाफ़ बंदूक उठा ली है.
वे हत्या के पक्ष में दलीलें देने लगे. वे हत्यारों को बधाइयां देने लगे. उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या को सिर्फ जायज़ नहीं ठहराया. वे हत्या के बाद ठंडी पड़ चुकी उस लाश को गालियां देने लगे. जैसे वे उस पर और गोलियां चलाना चाहते हों.
भाजपा विधायक डीएन जीवराज ने कहा कि गौरी लंकेश जिस तरह लिखती थीं, वो बर्दाश्त के बाहर था. गौरी मेरी बहन जैसी हैं लेकिन जिस तरह उन्होंने लिखा, वो स्वीकार नहीं किया जा सकता.'
हमने बचपन से सुना था कि किसी की मौत के बारे में बुरा मत बोलो क्योंकि मरा आदमी अपनी सफाई नहीं दे सकता. पर ये लोग तो जैसे मरने का इंतज़ार कर रहे थे. ये कहां पले-बढ़े हैं, ये कहां से आते हैं?
जनता को नहीं पता होता कि उसके साथ सत्ता क्या कर रही है. ऐसे मेें ख़तरा उनसे होता है जो जनता से उनकी भाषा में सत्ता का सच बताते हैं. इसलिए उन्हें ख़ामोश करने की कोशिश की जाती है.
देश के विभिन्न राज्यों के पत्रकार संगठनों समेत आम नागरिकों ने इस जघन्य हत्या की निंदा की. अमेरिकी दूतावास और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी चिंता जताई.