सरकारी अफ़सरान हों या मुंसिफ़, ख़ुद को सामाजिक नैतिकता का प्रहरी मान बैठते हैं

व्यक्ति कुछ मौलिक अधिकारों से संपन्न है. संविधान इन अधिकारों की निशानदेही कर राज्य को बताता है कि वह व्यक्ति के जीवन में कहां हस्तक्षेप नहीं कर सकता.

हमारा राजनीतिक वर्ग अंधविश्वास का सबसे बड़ा संरक्षक है

नेता कई तरह की गुप्त पूजा कराते हैं जिसका ख़र्च बीस-बीस लाख आता है. क्रिकेटर से लेकर सार्वजनिक जीवन का हर संभ्रांत प्रतीक अंधविश्वास का संरक्षक है, इसलिए सिरसा के डेरा समर्थकों को गंवारों की फौज न कहें.

जब सांप्रदायिक एजेंडा ‘सुशासन’ का मुखौटा पहनता है, तब गोरखपुर त्रासदी नियति बन जाती है

एक जीवंत लोकतंत्र में 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत किसी राजनेता का करिअर ख़त्म कर सकता था, लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता.

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