अगर संपादक मंत्री से कहकर किसी नियुक्ति में कोई बदलाव करवा सकते हैं, तो क्या इसके एवज में मंत्रियों को अख़बारों की संपादकीय नीति प्रभावित करने की क्षमता मिलती है?
पत्रकारों के लिए जस्टिस मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफ़ारिश और सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण से बातचीत.
वेबसाइट की सफलता के लिए जितना झूठ परोसेंगे, उतना हिट मिलेगा. जितना हिट मिलेगा, उतना विज्ञापन मिलेगा. झूठ का कारोबार आज सच के लिए चुनौती बन गया है.
न्यूज़ चैनल हर विषय पर दलीय प्रवक्ताओं की भीड़ क्यों इकट्ठा करना चाहते हैं? क्या वे राजनीतिक दलों, ख़ासकर सत्ताधारी दल को हर मुद्दे पर अपना फोरम मुहैया कर खुश रखने की कोशिश करते हैं?
परेश रावल ने कहा, 'अगर उन्हें सेना की जीप से बांधा जाता तो पथराव करने वाला कोई भी व्यक्ति उन पर हमला नहीं करता क्योंकि वह उनकी विचारधारा का समर्थन करती हैं.'
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हिंदुओं पर रोज़ा थोपने की बात झूठी है, लेकिन यह झूठ ही चैनल के करोड़ों दर्शकों के लिए असली सच है. एएमयू के हिंदू छात्र लाख खंडन करते फिरें, संदेश यही जाएगा कि वे किसी दबाव में ऐसा कर रहे हैं.
हम अक्सर किसी टिप्पणी या दलील को महज़ इसलिए स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि वे हमारी परंपरागत मान्यताओं के अनुरूप होती हैं. ऐसा करते वक़्त हम न तो इनके पीछे के तर्कों की परवाह करते हैं, न दावों की प्रामाणिकता जांचने की ज़हमत उठाते हैं.
पर्दे और पन्नों पर बार-बार उभरता रहा है- जंगलराज! लेकिन उत्तर प्रदेश में सरकार क्या बदली, मीडिया का वह ‘जंगलराज’ ग़ायब हो गया!
परेश रावल और उनके समर्थकों का कहना था कि उनका गुस्सा अरुंधति रॉय की कश्मीर पर की गई हालिया टिप्पणी पर था. पर असलियत ये है कि अरुंधति ने ये टिप्पणी कभी की ही नहीं थी.
लंदन में रहने वाले भारतीय मूल के फोटो पत्रकार सौविद दत्ता द्वारा सेक्स वर्कर की ज़िंदगी पर खींची गई एक तस्वीर की चोरी करने का मामला सामने आया है.
कश्मीर के मामले में मोदी सरकार ने न तो पहले की सरकारों की विफलताओं से कोई सबक लिया और न ही कामयाबियों से.
पश्चिमोत्तर दिल्ली के पार्क में टहलने गईं महिला पत्रकार पर अज्ञात लोगों ने हमला किया है. उनके सिर पर गंभीर चोटें आई हैं. एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है. उनकी हालत गंभीर बनी हुई है.
बॉम्बे हाई कोर्ट में क़ानूनी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों ने इस सवाल से नाराज़ होकर कोर्ट से वॉक आउट कर दिया.
राज्यसभा में चुनाव सुधार पर केंद्रित लंबी चर्चा के दौरान विपक्षी नेताओं ने भारत में मीडिया की अंदरूनी संरचना और उसकी भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए.
राज्यसभा सांसद शरद यादव ने यह भाषण 22 मार्च 2017 को राज्यसभा में दिया. सदन में चर्चा के दौरान अपनी बात रखते हुए शरद यादव ने देश में पत्रकारिता की दशा और दिशा पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. पढ़ें पूरा भाषण...