नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि यह संविधान के मूल ढांचे के विपरीत है और इसका उद्देश्य मुसलमानों से स्पष्ट रूप से भेदभाव करना है, क्योंकि अधिनियम ने केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को लाभ दिया है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भाजपा नीत केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मदरसों को कथित रूप से निशाना बनाए जाने पर चिंता व्यक्त की है. संगठन ने आरोप लगाया कि आरएसएस से प्रभावित भाजपा की केंद्र और कुछ राज्यों की सरकारें अल्पसंख्यकों, ख़ासकर मुस्लिम समुदाय के प्रति नकारात्मक रुख़ अपना रही हैं.
भारत और यहां रहने वाले सभी जातियों, समुदायों के नागरिकों का भविष्य अब संविधान के इसके वर्तमान स्वरूप में बचे रहने पर निर्भर करता है.
आज की तारीख़ में संघियों और नेताओं के बेतुके बयानों को हंसी में नहीं उड़ाया जा सकता क्योंकि किसी भी दिन ये सरकारी नीति की शक्ल में सामने आ सकते हैं.
पश्चिम बंगाल के भाजपा विधायक और राज्य के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद भवन में एक बैठक के दौरान उन्हें आश्वासन दिया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के संबंध में नियम कोविड-19 रोधी टीके की एहतियाती खुराक़ देने की क़वायद पूरी होने के बाद तैयार किए जाएंगे.
सेवानिवृत्त नौकरशाह, कलाकार और शिक्षाविदों के एक समूह ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को लिखे पत्र में कहा है कि हाल में मुस्लिम, ईसाई और दलित समुदायों पर विभिन्न प्रकार के हमलों ने राज्य के समावेशी स्वभाव पर गर्व करने वालों को झकझोर कर रख दिया है. समूह ने कहा कि इससे प्रगति में बाधा उत्पन्न होगी, उद्यमियों और निवेशकों का विश्वास कम होगा तथा नागरिकों में असुरक्षा, संदेह, भय और आक्रोश बढ़ेगा.
विभिन्न शहरों में दो समुदायों के बीच हालिया हिंसक झड़पों पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख इकबाल सिंह लालपुरा ने कहा कि कोई राजनीतिक दल नहीं, बल्कि कुछ लोग देश में शांति भंग करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे लोगों की पहचान की जानी चाहिए और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए. हालांकि उन्होंने पंजाब के पटियाला में बीते दिनों हुई हिंसक झड़प पर कहा कि राज्य सरकार इसे रोक सकती थी.
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के पंद्रह साल बाद के 'नए भारत' में अल्पसंख्यक समुदायों विशेषकर मुस्लिमों की समस्याओं या हक़ों की बात करने को बहुसंख्यकों के हितों पर 'आघात' माना जाता है. ख़ुद मुस्लिमों के लिए भी अब सबसे बड़ा मुद्दा जान-माल की हिफाज़त बन गया है.
देश के 28 वरिष्ठ पत्रकारों और मीडियाकर्मियों ने राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और विभिन्न उच्च न्यायालयों, भारत के निर्वाचन आयोग और अन्य वैधानिक निकायों से देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों पर हो रहे हमलों को रोकने का आह्वान किया है.
वीडियो: भारत का संविधान बनाते समय यहां के अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संबंध में क्या निर्णय लिए गए थे? संविधान के अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यकों के क्या अधिकार हैं, हमारा संविधान की इस कड़ी में बता रही हैं अधिवक्ता अवनि बंसल.
हरिद्वार और दिल्ली में आयोजित ‘धर्म संसद’ कार्यक्रमों में नफ़रती भाषणों के ख़िलाफ़ दायर याचिका का विरोध करते हुए दो दो दक्षिणपंथी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी याचिकाएं दायर की है. दोनों ने शीर्ष अदालत से उन्हें इस मामले में पक्षकार बनाने की अपील की है. एक हिंदू संगठन ने पूर्व में मुस्लिम नेताओं द्वारा हिंदुओं के ख़िलाफ़ दिए गए ऐसे ही भाषण के लिए हिंदुओं को समान सुरक्षा दिए जाने की मांग की है.
उत्तराखंड के विभिन्न ज़िलों में भीड़ हिंसा और नफ़रत की राजनीति के विरोध में लोगों ने प्रदर्शन करते हुए राज्य में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बढ़ रहे अपराधों पर चिंता जताई है. कोरोना की पहली लहर में सरकार ने ताली-थाली बजवाई थी, उसी तर्ज पर इस दौरान कनस्तर बजाकर नारे लगाए गए और हिंसा ख़त्म करने की अपील की गई. साथ में नारे लिखे पोस्टर दिखाकर सरकार के प्रति अपना रोष व्यक्त किया गया.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता सलमान ख़ुर्शीद की हालिया किताब की बिक्री और प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र व दिल्ली सरकार को निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने से मना करते हुए कहा कि यह 'एक मौक़ापरस्त याचिकाकर्ता' हैं जिन्होंने प्रचार के लिए याचिका दायर की.
कोई नहीं कह सकता कि नेता के तौर पर मनीष तिवारी या सलमान ख़ुर्शीद की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है या उसे पूरा करने के लिए वे किताब लिखने समेत जो करते हैं, उसे लेकर आलोचना नहीं की जानी चाहिए. लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के नेताओं के रूप में उन्हें अपने विचारों को रखने की इतनी भी आज़ादी नहीं है कि वे लेखक के बतौर पार्टी लाइन के ज़रा-सा भी पार जा सकें?
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान ख़ुर्शीद की किताब पर रोक लगाने की याचिका ख़ारिज करते हुए की थी. फ़ैसले के विस्तृत आदेश में कोर्ट ने कहा कि असहमति का अधिकार जीवंत लोकतंत्र का सार है. संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर सिर्फ किसी के लिए अप्रिय होने की आशंका के आधार पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती.