गौतम नवलखा को 14 अप्रैल, 2020 को गिरफ़्तार किया गया था. शुरुआती वर्षों में वह जेल में रहे, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें 10 नवंबर, 2022 से नवी मुंबई के घर में नज़रबंद रखा गया था.
एल्गार परिषद मामले में आरोपी 70 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बीते 18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए नज़रबंद करने का आदेश दिया था.
2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के लिए एल्गार परिषद के आयोजन को ज़िम्मेदार ठहराते हुए इसके कुछ प्रतिभागियों समेत कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया था. मामले की जांच कर रहे न्यायिक आयोग के सामने एक पुलिस अधिकारी ने अपने हलफ़नामे में हिंसा में आयोजन की कोई भूमिका होने से इनकार किया है.
एल्गार परिषद मामले की जांच कर रही एनआईए ने बॉम्बे हाईकोर्ट से सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े को बॉम्बे हाईकोर्ट से मिली ज़मानत के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने एनआईए से कहा कि वे हाईकोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.
एनआईए ने सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के माओवादियों के साथ संबंधों का हवाला देते हुए उन्हें जेल के बजाय घर में नज़रबंद करने के सुप्रीम कोर्ट के 10 नवंबर के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था. 70 वर्षीय नवलखा एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में अप्रैल 2020 से जेल में बंद हैं और अनेक रोगों से जूझ रहे हैं.
एल्गार परिषद मामले की जांच कर रही एनआईए ने बॉम्बे हाईकोर्ट से अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े को ज़मानत दिए जाने के फैसले पर एक सप्ताह की रोक लगाए जाने का आग्रह किया, ताकि वह इस फैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सके. पीठ ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और अपने आदेश पर एक सप्ताह की रोक लगा दी.
एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ़्तार 34 वर्षीय ज्योति जगताप द्वारा दायर अपील को बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि एनआईए का मामला प्रथमदृष्टया सच है. अपील में विशेष एनआईए अदालत के फरवरी 2022 में जारी एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें जगताप समेत मामले के तीन आरोपियों को ज़मानत देने से इनकार किया गया था.
छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले में बुरकापाल गांव के क़रीब 24 अप्रैल 2017 को नक्सलियों ने केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के एक दल पर घात लगाकर हमला किया था, जिसमें 25 जवानों की मौत हो गई थी. आदिवासियों की वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया ने सवाल उठाया कि उन्होंने जो अपराध नहीं किया, उसके लिए उन्हें इतने साल जेल में क्यों बिताने पड़े. इसकी भरपाई कौन करेगा.
आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता जीएन साईबाबा की कविताओं और पत्रों का संकलन के विमोचन के अवसर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा ने जीएन साईबाबा की तत्काल रिहाई की मांग दोहराई. उन्होंने कहा कि आज की सरकार सोचती है कि कुछ लोगों को ‘अर्बन नक्सल’, ‘देशद्रोही’, ‘आतंकवादी’ क़रार देकर या उन्हें जेल में डालकर वह सफल हो सकती है.