डासना मंदिर के पुजारी और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता यति नरसिंहानंद सरस्वती ने आरोप लगाया कि बच्चे को उन पर नज़र रखने के लिए भेजा गया था. पुलिस का कहना है कि उक्त बच्चा क्षेत्र से परिचित नहीं था और अनजाने में मंदिर में चला गया था. उसके बयान की सच्चाई जानने के बाद उसे छोड़ दिया गया.
पुस्तक समीक्षा: हुमरा क़ुरैशी की किताब ‘द इंडियन मुस्लिम्स- ग्राउंड रियालिटीज़ ऑफ लार्जेस्ट मायनॉरिटी इन इंडिया’ आजा़दी की 75वीं सालगिरह मनाने के इस दौर में ‘हिंदोस्तां के मुसलमान’ किस तरह अपने सबसे ‘स्याह दौर’ से गुजर रहे हैं, इसका ज़िक्र करते हुए यह आशंका ज़ाहिर करती है कि ‘अगर सांप्रदायिक विषवमन नियंत्रित नहीं किया गया तो आपसी विभाजन बदतर हो जाएगा.’
अगर किसी के ख़िलाफ़ शक़ और नफ़रत समाज में भर दी जाए तो उस पर हिंसा आसान हो जाती है क्योंकि उसका एक कारण पहले से तैयार कर लिया गया होता है. आज हिंसा और हत्या की इस संस्कृति को समझना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है इसके पहले कि यह देश को पूरी तरह तबाह कर दे.
असम में ज़मीन से ‘बाहरी’ लोगों की बेदख़ली मात्र प्रशासनिक नहीं, राजनीतिक अभियान है. बेदख़ली एक दोतरफा इशारा है. हिंदुओं को इशारा कि सरकार उनकी ज़मीन से बाहरी लोगों को निकाल रही है और मुसलमानों को इशारा कि वे कभी चैन से नहीं रह पाएंगे.
हिंदुत्ववादी कट्टरपंथी संगठनों को लेकर सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा बरती जाने वाली ख़ामोशी का अर्थ है कि वे इसे राष्ट्र या सरकार के लिए किसी प्रकार का ख़तरा नहीं मानते. इस तरह के रवैये से बहुसंख्यकवादी नैरेटिव को ही बढ़ावा मिलता है.
कर्नाटक के बेलगावी ज़िले का मामला. 28 सितंबर को 24 साल के अरबाज मुल्ला का क्षत-विक्षत शव ज़िले से लगभग 30 किलोमीटर दूर रेलवे ट्रैक से बरामद किया गया. मृतक की मां ने दक्षिणपंथी संगठन श्रीराम सेना के दो सदस्यों और हिंदू युवती के पिता के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई है.
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ ज़िले का मामला. परिजनों ने एफ़आईआर पर हैरानी जताते हुए कहा कि उनके लड़के कक्षा 12 में पढ़ते हैं और वे अपने दोस्तों के बीच महज़ ‘बातचीत’ कर रहे थे. इसे लेकर बेवजह किसी ने शिकायत दर्ज कराई है. शिकायत दर्ज कराने वाले भाजपा नेता ने कहा कि वीडियो के चलते लोगों में ग़ुस्सा है और इसके चलते धार्मिक विद्वेष फैल सकता है.
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार मंत्रिमंडल विस्तार में पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों के नेताओं को जगह देकर उनकी शुभचिंतक होने का डंका पीट रही है. हालांकि जानकारों का सवाल है कि यदि ऐसा ही है तो प्रदेश के यादवों, जाटवों और राजभरों पर उसकी यह कृपा क्यों नहीं बरसी?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आई ढेरों रिपोर्ट्स में एक समान बात यह है कि भारत में नरेंद्र मोदी के शासन में मानवाधिकार समूहों पर दबाव बढ़ा है, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को धमकाया गया है और मुसलमानों के प्रति घृणा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. इस तरह के अभियान की प्रेरणा जो भी हो, मानवाधिकारों के इन उल्लंघनों के बारे में कुछ करने की ज़रूरत है.
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में क़रीब पांच महीने बाकी हैं, लेकिन सियासी सरगर्मियां बढ़ चुकी हैं. मंत्रिमंडल परिवर्तन से लेकर राजनीतिक दलों के गठजोड़ देखने को मिल रहे हैं. पर राज्य की जनता क्या बदलाव चाहती है या वर्तमान व्यवस्था में उसका भरोसा बना हुआ है?
कथित ‘सबसे बड़े धर्मांतरण सिंडिकेट’ चलाने के आरोप में यूपी एटीएस ने इस्लामिक विद्वान मौलाना कलीम सिद्दीक़ी को बीते 21 सितंबर को मेरठ से गिरफ़्तार किया था. सिद्दीक़ी के वकील ने कहा है कि पुलिस साक्ष्य के रूप में उनके यूट्यूब चैनल को पेश कर रही है, जो कि पहले से ही सार्वजनिक है और उसमें कुछ भी आपराधिक या देश के ख़िलाफ़ नहीं है.
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बिशप जोसेफ कल्लारंगत की 'नारकोटिक और लव जिहाद' संबंधी टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह के बयान किसी भी परिस्थिति में नहीं दिए जाने चाहिए.
एक मुस्लिम महिला और उनके हिंदू साथी द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि वे एक दूसरे से प्रेम करते हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं. अदालत ने कहा कि दो वयस्कों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, भले ही वे किसी भी धर्म के हों. कोर्ट ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि याचिकाकर्ताओं को उनके परिवार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी तरह से परेशान न किया जाए.
वीडियो: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते दिनों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पर निशाना साधते हुए दावा किया था कि '2017 से पहले केवल 'अब्बा जान' कहने वालों को ही राशन मिलता था. आज अगर कोई गरीब लोगों के राशन को हथियाने की कोशिश करेगा, तो वह निश्चित रूप से जेल चला जाएगा.' इस बयान पर चर्चा कर रही हैं द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में कुशीनगर में कहा था कि साल 2017 से पहले सिर्फ ‘अब्बा जान’ कहने वालों को ही राशन मिलता था. आंकड़े दर्शाते हैं कि ऐसा किसी भी तरह से संभव नहीं है.