बीते 5 मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को ‘आतंकवाद’ के आरोपों से बरी कर दिया था. महाराष्ट्र सरकार ने अदालत के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को गुरुवार को नागपुर केंद्रीय कारागार से रिहा कर दिया गया. साल 2014 से क़ैद में रहे साईबाबा ने सरकार से मुआवज़े की मांग के बारे में पूछने पर कहा कि उन्होंने इस बारे में विचार नहीं किया है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा, जो 90 फीसदी से अधिक शारीरिक अक्षमता का शिकार हैं और ह्वीलचेयर पर रहते हैं, पर यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए थे. साल 2014 में गिरफ़्तार किए गए साईबाबा के अब रिहा होने की संभावना है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने शनिवार को कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले की विस्तारपूर्वक समीक्षा की ज़रूरत है, क्योंकि अदालत ने दोषियों के ख़िलाफ़ लगे आरोप की गंभीरता समेत मामले के गुण-दोष पर ग़ौर नहीं किया. कोर्ट ने साईबाबा का उन्हें जेल से रिहा कर घर में नज़रबंद करने का अनुरोध भी अस्वीकार कर दिया.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जीएन साईबाबा को माओवादियों से कथित संबंध से जुड़े मामले में बरी करते हुए कहा कि उनके ख़िलाफ़ यूएपीए के सख़्त प्रावधानों के तहत मुक़दमा चलाने का मंज़ूरी आदेश क़ानून की दृष्टि से ग़लत और अमान्य था. महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया था.
माओवादी संबंध मामले में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा ने 21 मई से भूख हड़ताल शुरू की थी. उनकी मांग थी कि उनकी जेल कोठरी के सामने लगा सीसीटीवी कैमरा हटाया जाए. इसे लेकर उनके परिजनों ने निजता के हनन का हवाला देते हुए महाराष्ट्र के गृहमंत्री को पत्र भी लिखा है.
आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता जीएन साईबाबा की कविताओं और पत्रों का संकलन के विमोचन के अवसर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा ने जीएन साईबाबा की तत्काल रिहाई की मांग दोहराई. उन्होंने कहा कि आज की सरकार सोचती है कि कुछ लोगों को ‘अर्बन नक्सल’, ‘देशद्रोही’, ‘आतंकवादी’ क़रार देकर या उन्हें जेल में डालकर वह सफल हो सकती है.