केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लगभग सात महीनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं. 40 यूनियनों के प्रधान संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि सिंघू, टिकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर किसान 26 जून को ‘कृषि बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस’ के रूप में मनाएंगे.
केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते छह महीनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं. 40 यूनियनों के प्रधान संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि केंद्र सरकार प्रदर्शनकारियों को बदनाम करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रही है. हालांकि उनकी नीति इस बार भी नाकाम होगी.
केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते छह महीनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार और किसानों के बीच अब तक 11 दौर की बातचीत हुई है, लेकिन गतिरोध बना हुआ है. किसान संगठन तीनों नए कृषि क़ानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाले क़ानून की अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं.
माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भेजे एक पत्र में केंद्र की ओर से राज्यों को भेजे गए उस परामर्श के पीछे की मंशा को लेकर सवाल खड़े किए, जिसमें कहा गया है कि मनरेगा के तहत अनुसूचित जाति-जनजाति व अन्य के लिए मज़दूरी के भुगतान को अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाए.
भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी की ओर से जारी बयान में राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार के साथ बातचीत वहीं से बहाल होगी, जहां 22 जनवरी को ख़त्म हुई थी. मांग भी वहीं हैं कि तीनों काले क़ानूनों को निरस्त किया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए नया क़ानून बनाया जाए.
खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी संसद की स्थायी समिति ने सरकार से विवादित कृषि क़ानूनों में से एक आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को लागू करने के लिए कहा है. इस समिति में दोनों सदनों से भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आप, एनसीपी और शिवसेना सहित 13 दलों के सदस्य शामिल हैं.
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के सिकंदरपुर में हुई किसान-मज़दूर महापंचायत को संबोधित करते हुए कहा कि 2021 आंदोलन का वर्ष होगा. किसान पूरी ताक़त से लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार है.
ब्रिटिश सांसदों ने किसान आंदोलन- शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार संबंधी चर्चा की, भारत ने नाराज़गी जताई
भारत में तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन के बीच ब्रिटिश सांसदों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के अधिकार और प्रेस की आज़ादी को लेकर एक लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर वाली ‘ई-याचिका’ पर चर्चा की. भारत ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि इस ‘एकतरफा चर्चा में झूठे दावे’ किए गए.
साक्षात्कार: कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन को सौ दिन पूरे हो चुके हैं. 22 जनवरी को केंद्र से आख़िरी बार हुई बातचीत के बाद से जहां किसान नेता आंदोलन को देशव्यापी बनाने के प्रयास में हैं, वहीं सरकार भी अपने पक्ष में समर्थन जुटाने में लगी है. आंदोलन को लेकर भाकियू नेता राकेश टिकैत से बातचीत.
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि कृषि घाटे का सौदा हो गई है और सरकार कह रही है कि इसमें फ़ायदा है, हमें अपना नफ़ा-नुकसान पता है, इसलिए वे इस तरह का रवैया न अपनावे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को कहा कि एमएसपी है, एसएसपी था और एमएसपी रहेगा. इस पर अन्य किसान नेताओं ने कहा कि यदि सरकार दावा कर रही है कि एमएसपी जारी रहेगा तो वह क़ानूनी गारंटी क्यों नहीं देती.
दो महीने से ज्यादा समय से चल रहे किसान आंदोलन के दौरान बीते 20 जनवरी तक कम से कम पांच लोग दिल्ली के विभिन्न प्रदर्शन स्थलों पर आत्महत्या कर चुके हैं. इसी तरह किसान आंदोलन के दौरान विभिन्न कारणों से कई किसानों की जान जा चुकी है.
केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों के आह्वान पर शनिवार को देश के विभिन्न इलाकों में चक्काजाम किया गया. किसानों ने आंदोलन स्थलों के पास के क्षेत्रों में इंटरनेट पर रोक लगाए जाने, अधिकारियों द्वारा कथित रूप से उन्हें प्रताड़ित किए जाने और अन्य मुद्दों को लेकर देशव्यापी चक्काजाम की घोषणा की थी.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि देश के विभिन्न राज्यों में आंदोलनरत किसानों की मौत के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है. क्या सरकार मृतक किसानों के परिवारों को किसान कल्याण कोष से वित्तीय सहायता प्रदान करेगी? इस प्रश्न का उत्तर तोमर ने ‘नहीं’ में दिया.
दिल्ली से होकर फ़िरोज़पुर से मुंबई जाने वाली पंजाब मेल को सोमवार को दिल्ली में न रोकते हुए रेवाड़ी के रास्ते आगे भेज दिया गया. बताया गया है कि इसमें हज़ार के क़रीब किसान सवार थे, जो किसान आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए आ रहे थे. रेलवे का कहना है कि परिचालन संबंधी कारणों से ट्रेन का रास्ता बदला गया.