एनआरसी के प्रकाशन को आगे बढ़ाने की मांग करते हुए एबीवीपी ने कहा कि वर्तमान सूची में बहुत से मूल निवासियों के नाम छूटे हैं और अवैध प्रवासियों के नाम जोड़े गए हैं. जब तक इसे दोबारा सत्यापित कर सौ फीसदी 'त्रुटिहीन' नहीं बनाया जाता, इसका प्रकाशन नहीं होना चाहिए.
गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में कहा गया कि अगर किसी का नाम सूची में नहीं है तो वह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में 120 दिन के अंदर अपील दायर कर सकते हैं. यह समय सीमा पहले 60 दिन की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हमारे आदेश और हमारी कार्रवाई हर क्षण बहस और आलोचना का विषय होती है. हम इससे विचलित नहीं होते. यदि हम इस पर गौर करेंगे तो हम कभी भी अपना काम पूरा नहीं कर सकेंगे.’
केंद्र और असम सरकार ने एनआरसी में गलत तरीके से शामिल किए गए और उससे बाहर रखे गए नामों का पता लगाने के लिए 20 फीसदी नमूने का फिर से सत्यापन करने की अनुमति न्यायालय से मांगी थी, जिसे उसने ठुकरा दिया.
असम में मिया कविता पर बना एक वीडियो सोशल मीडिया पर डाले जाने के बाद इस कविता के रचनाकार हाफ़िज़ अहमद समेत 10 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया. आरोप है कि इन कविता में एनआरसी और असमिया लोगों के प्रति पूर्वाग्रह झलकता है.
वीडियो: आरफ़ा का इंडिया की इस कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन विधेयक पर चर्चा कर रही हैं.
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का मसौदा 30 जुलाई, 2018 को प्रकाशित हुआ था, जिसमें 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम ही शामिल किए गए थे. इसमें 40,70,707 व्यक्तियों के नाम नहीं थे.
एक रैली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अवैध प्रवासी दीमक की तरह हैं. वे गरीबों को मिलने वाले अनाज खा रहे हैं, हमारी नौकरियां छीन रहे हैं.
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में शामिल नहीं किए गए 40.70 लाख लोगों में से अब तक 14.28 लाख व्यक्तियों ने ही प्राधिकारियों के यहां दावे और आपत्तियां दाख़िल की हैं. दावों और आपत्तियों की छानबीन की अंतिम तिथि 15 फरवरी, 2019 होगी.
इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में त्रिपुरा, मिज़ोरम, असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के प्रमुख समाचार.
साक्षात्कार: पूर्वोत्तर राज्यों पर लिखी संजय हज़ारिका की नई किताब 'स्ट्रेंजर्स नो मोर' पिछली किताब ‘स्ट्रेंजर्स ऑफ द मिस्ट’ के करीब 25 साल बाद आई है. इस बीच इस क्षेत्र ने कई बदलाव देखे, लेकिन हज़ारिका का मानना है कि यहां के मूल मुद्दे अब भी वही हैं, जो तब थे.