इस बहुरंगी देश को इकरंगी बनाने की क़वायदें अब गणतांत्रिक प्रतीकों व विरासतों को नष्ट करने के ऐसे अपराध में बदल गई हैं कि उन्हें इतिहास से बुरे सलूक की हमारी पुरानी आदत से जोड़कर भी दरकिनार नहीं किया जा सकता.
पूर्व सैनिकों के एक धड़े का मानना है कि 'अमर जवान ज्योति' का पुराना स्मारक प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हुए उन सैनिकों के सम्मान में था जो अंग्रेज़ों के लिए लड़ते थे, जबकि दूसरा धड़ा मानता है कि केंद्र सरकार का यह फ़ैसला 1971 के युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय सैनिकों की शहादत का अपमान है.
अमर जवान ज्योति की स्थापना उन भारतीय सैनिकों की याद में की गई थी, जो कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे. इस युद्ध में भारत की विजय हुई थी और बांग्लादेश का गठन हुआ था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को इसका उद्घाटन किया था. कांग्रेस ने कहा कि मोदी सरकार का यह क़दम सैनिकों के बलिदान के इतिहास को मिटाने की तरह है.