पूर्व सैनिकों के एक धड़े का मानना है कि ‘अमर जवान ज्योति’ का पुराना स्मारक प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हुए उन सैनिकों के सम्मान में था जो अंग्रेज़ों के लिए लड़ते थे, जबकि दूसरा धड़ा मानता है कि केंद्र सरकार का यह फ़ैसला 1971 के युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय सैनिकों की शहादत का अपमान है.
नई दिल्ली: पूर्व सैनिकों ने इंडिया गेट स्थित ‘अमर जवान ज्योति’ का विलय राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर जल रही लौ के साथ किए जाने के केंद्र सरकार के निर्णय पर मिली-जुली प्रतिक्रिया व्यक्ति की है.
पूर्व एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री को टैग करते हुए उनसे इस आदेश को रद्द करने की अपील की.
उन्होंने कहा, ‘श्रीमान, इंडिया गेट पर जल रही लौ भारतीय मानस का हिस्सा है. आप, मैं और हमारी पीढ़ी के लोग वहां हमारे वीर जवानों को सलामी देते हुए बड़े हुए हैं.’
बहादुर ने कहा कि एक ओर जहां राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का अपना महत्व है, वहीं दूसरी ओर अमर जवान ज्योति की स्मृतियां भी अतुल्य हैं.
Sir, the eternal flame at #IndiaGate is part of India’s psyche. You, I & r generation grew up saluting our brave jawans there. While NationalWarMemorial is great, the memories of #AmarJawanJyoti are indelible.
Request rescind decision.
RT if u agree
— Manmohan Bahadur (@BahadurManmohan) January 21, 2022
साथ ही उन्होंने लिखा, ‘कॉमनवेल्थ स्मारक आयोग प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए सैनिकों की कब्रों का दुनिया भर में रख-रखाव करता है और आगे भी करता रहेगा. यह अफ़सोस की बात है कि प्रतिष्ठित इंडिया गेट पर हमारी ‘अनंत ज्वाला’ बुझ रही है. इसके साथ एक पीढ़ी बड़ी हुई है. ओह! कितना दुखद दिन है!’
पूर्व कर्नल राजेंद्र भादुड़ी ने कहा कि अमर जवान ज्योति पवित्र है और इसे बुझाने की जरूरत नहीं है.
India Gate has names of Indian soldiers who died in wars. It is immaterial who constructed it.
The 1971 war memorial Amar Jawan Jyoti was added to it in 1972. It is sacred and it need not be extinguished even if there is a new war memorial with its own amar jyoti— Rajendra Bhaduri (@BhaduriRajendra) January 20, 2022
भादुड़ी ने ट्विटर पर लिखा, ‘इंडिया गेट पर उन भारतीय सैनिकों के नाम हैं जिन्होंने युद्ध के दौरान जान गंवाई. यह मायने नहीं रखता कि इसे किसने बनवाया. 1971 का युद्ध स्मारक अमर जवान ज्योति, 1972 में इसमें जोड़ा गया था. यह पवित्र है और इसे बुझाने की जरूरत नहीं है, फिर भले ही चाहे अमर जवान ज्योति के साथ एक नया युद्ध स्मारक बन जाए.’
हालांकि, एकीकृत रक्षा स्टाफ के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ (सेवानिवृत्त) ने केंद्र के निर्णय पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा है कि यह एक सही फैसला है. इस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए.
A needless controversey is being created.
The flame of Amar Jawan Jyoti is being merged with that of National War Memorial;it is not being extinguished.
NWM is the designated war memorial at National level to pay homage all Indias Bravehearts, past present or future.
Hear my take https://t.co/n4Zdu7VpED— Lt Gen Satish Dua🇮🇳 (@TheSatishDua) January 21, 2022
उन्होंने कहा कि बेवजह विवाद खड़ा किया जा रहा है. अमर जवान ज्योति की लौ को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में मिला दिया जा रहा है, बुझाया नहीं जा रहा है. राष्ट्रीय युद्ध स्मारक अतीत, वर्तमान और भविष्य के सभी भारतीय बहादुर जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बनाया गया युद्ध स्मारक है.
दुआ ने कहा, ‘राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के डिजाइन चयन और निर्माण में भूमिका निभाने वाले व्यक्ति के रूप में मेरा विचार है कि इंडिया गेट प्रथम विश्व युद्ध के शहीद नायकों का स्मारक है.’
उन्होंने कहा कि अमर जवान ज्योति को उसी जगह 1972 में स्थापित किया गया था, क्योंकि हमारे पास कोई और स्मारक नहीं था.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक देश की आजादी के बाद युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देता है और सभी श्रद्धांजलि समारोहों को पहले ही नए स्मारक में स्थानांतरित किया जा चुका है.
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 फरवरी, 2019 को राष्ट्रीय समर स्मारक का उद्घाटन किया था, जहां ग्रेनाइट के पत्थरों पर 25,942 सैनिकों के नाम सुनहरे अक्षरों में अंकित हैं.
इस बीच पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल वेद मलिक ने भी केंद्र के फैसले का समर्थन किया. उन्होंने ट्विटर पर कहा कि स्वाभाविक बात यह है कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की स्थापना हो चुकी है और शहीद सैनिकों के स्मरण और सम्मान से संबंधित सभी समारोह वहां आयोजित किए जा रहे हैं.
A natural thing to do now that the National War Memorial has been established and all ceremonials related to remembrance and honouring soldiers killed in action are being held there. https://t.co/IjgYSnhmvF
— Ved Malik (@Vedmalik1) January 21, 2022
पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल कमलजीत सिंह ने भी फैसले का समर्थन किया. उनका कहना है कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के उद्घाटन के बाद दोनों ज्योति का एक होना लाजमी है.
जबकि, पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल अनिल दुहन ने ट्विटर पर नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा है कि अगर किसी के जैसी कोई चीज नहीं बना सकते, तो उसे ही तोड़ दो. यह नए भारत के लिए भाजपा का मंत्र है. अमर जवान ज्योति इतनी पवित्र है कि उसे छुआ या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता. क्यों दोनों को बने रहने नहीं दिया जा सकता? उनका (भाजपा) काम का तरीका समझ से परे है.
“If one can’t make it then break it” is the @BJP4India mantra for new India. “Amar Jawan Jyoti” is too sacred to be touched/relocated. Why can’t they have two of them? Can’t understand their functioning. https://t.co/8x8ocfd6Xx
— Lt Col Anil Duhoon (Veteran) (@LtColAnilDuhoon) January 21, 2022
सेवानिवृत्त जनरल अशोक मेहता ने फैसले के समर्थन में इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘कांग्रेस स्पष्ट रूप से फैसले का विरोध करेगी क्योंकि अमर जवान ज्योति उनके समय में आई थी. लेकिन अब युद्ध स्मारक के साथ, सैनिकों की स्मृति में दो अलग-अलग ज्योति रखने का कोई मतलब नहीं है. दोनों का विलय करना सही फैसला है. सरकार ने इसे औपनिवेशिक ढांचा मानते हुए एक राजनीतिक फैसला लिया है, वे चाहते तो इसके आस-पास ही स्मारक बना सकते थे.’
पूर्व मेजर जनरल अमरजीत सिंह ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह ठीक है क्योंकि आपके पास दो संस्थान नहीं हो सकते. एक स्थान का होना बेहतर है. नया युद्ध स्मारक वास्तव में एक अच्छी पहल है, इसलिए मुझे लगता है कि दो अलग-अलग जगहों के बजाय इसकी बेहतर तरीके से देखभाल की जानी चाहिए. युद्ध स्मारक में सभी को जगह दी है. हालिया शहीदों के नाम भी इसमें हैं जो कि इंडिया गेट वाले स्मारक में नहीं थे. दो अलग-अलग जगहों को संभालने में बहुत मानव संसाधन लगते.’
एयर मार्शल अनिल चोपड़ा भी इसके समर्थन में नजर आए और उन्होंने भी इसे एक अच्छी पहल बताया. उन्होंने कहा कि दो स्मारकों का एक में विलय कर दिया है, अमर जवान ज्योति का अनादर नहीं किया है. अब सभी शहीदों को एक ही जगह पहचाना जा सकता है. हमारे पास एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक है और वह एकमात्र जगह होनी चाहिए जहां ज्योति जलनी चाहिए.
उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ लोग कह रहे हैं कि इसे दोनों जगह रहने दिया जाता. यह हो सकता था, लेकिन एक-दूसरे के करीब ही दो जगहों के होने का कोई मतलब नहीं है. इससे लोग सिर्फ भ्रमित होंगे. मैं 40 देशों में गया हूं. दो स्मारकों के बीच की दूरी 20-30 किलोमीटर होती है.’
बांग्लादेश युद्ध के पूर्व सैनिक मेजर जनरल डॉ. जीसी द्विवेदी ने कहा कि अमर जवान ज्योति 1971 के युद्ध में शहीद सैनिकों के लिए बनी थी. उसके बाद हमने कारगिल और सियाचिन में जवानों को खोया, लेकिन हमारे पास राष्ट्रीय पहचान वाला युद्ध स्मारक नहीं था, लेकिन अब है.
उन्होंने आगे कहा, ‘बात अगर ज्योति को मिलाने और न मिलाने की है तो गैर-राजनीतिक तौर पर सोचने पर यह सही है कि हमारे पास एक ऐसा स्थान हो, जहां हम अपने सभी शहीदों को एक जगह श्रद्धांजलि दे सकें. लेकिन, दूसरी विचारधारा कहती है कि दोनों अलग-अलग बने रहते, पर यह सही नहीं होता क्योंकि फिर वहां कोई नहीं जाता. व्यक्ति केवल एक स्मारक पर जाता. राजनीति से इतर देखें तो यह एक तार्किक कदम है.’
वहीं, एक अन्य पूर्व सैनिक लेफ्टिनेंट जनरल मनोज चन्नन ने भी इस कदम को ऐतिहासिक बताया है.
वहीं, सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर केएस कहलों मानते हैं कि अमर जवान ज्योति को बुझाना एक गलत फैसला था. यह प्रथम विश्व युद्ध या अफगान युद्धों में मारे गए भारतीय सैनिकों का अपमान था. उन्होंने कहा कि भारतीय सेना इन्हीं से साहस प्राप्त करती है और यह अफसोस की बात है कि उन मूल्यों को कुचला जा रहा है.
सेवानिर्वत कर्नल डीपीके पिल्लई ने तो एक कदम आगे बढ़कर प्रथम विश्वयुद्ध के भारतीय सैनिकों को ‘भाड़े के सैनिक’ तक कह दिया.
उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि अमर जवान ज्योति प्रथम विश्वयुद्ध के भाड़े के सैनिकों का सम्मान करती थी. स्वतंत्र भारत में हुए युद्धों के लिए राष्ट्रीय युद्ध स्मारक है, जो भारतीय सैनिकों के सम्मान के लिए उपयुक्त स्थान है.
बहरहाल, पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल तेज सप्रू ने कहा कि वह दोनों ही विकल्पों से संतुष्ट थे कि अमर जवान ज्योति को जलते रहने दिया जाए या विलय कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि अगर जलने देते तो भी कोई नुकसान नहीं होता, हालांकि मुझे इससे भी कोई समस्या नहीं है कि अब नये स्मारक को शहीदों की शहादत का केंद्र माना जाएगा. हम हमेशा ही मौजूदा बुनियादी ढांचे में सुधार करके नई चीजें जोड़ते हैं, इसलिए इस पर विवाद नहीं होना चाहिए.
वहीं, पूर्व कर्नल अनिल तलवार के मुताबिक बीच का रास्ता निकाला जा सकता था. वे कहते हैं कि इंडिया गेट पर पूर्व सैनिक दिवस या युद्धविराम दिवस मनाया जा सकता था. जैसे कि तीन मूर्ति पर हाइफा स्म़ृति दिवस मनाया जाता है जो प्रथम विश्वयुद्ध से संबंधित हैं.
वहीं, भूतपूर्व सैनिक शिकायत प्रकोष्ठ के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट कर्नल एसएस सोही (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दो विश्वयुद्धों में लड़ते हुए विदेशी धरती पर शहीद हुए भारतीय सैनिकों को उन देशों द्वारा सम्मानित किया जाता है जहां वे लड़ते हुए मारे गए, लेकिन उन्हीं भारतीय सैनिकों को उनके ही देश में नीचा दिखाया जाता है. यह शर्म की बात है.
उन्होंने आगे कहा कि राजधानी में नेताओं के दर्जनों स्मारक हो सकते हैं, जिन्हें आकर्षक नाम दिए जाते हैं. लेकिन सैनिकों के लिए बगल-बगल में दो स्मारक देखकर उनके पेट में दर्द होता है. ज्योति को बुझाया जाना बेतुका फैसला था.
सेना के पूर्व अधिकारी और वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के वकील मेजर गुनीत चौधरी का कहना है कि अगर अमर जवान ज्योति को जलते रहने दिया जाता तो कोई नुकसान नहीं था. उन्होंने कहा, ‘यह हमारे इ्तिहास का हिस्सा है, जो 1971 में इसकी स्थापना से जुड़ा हुआ है.’
उन्होंने खुद से जुड़ा एक वाकया भी बताया कि 1971 के युद्ध के बाद एक महावीर चक्र विजेता की पत्नी के साथ बचपन में उन्होंने उस जगह का दौरा किया था. चौधरी के मुताबिक, शहीद की उन पत्नी को इस बात पर गर्व था कि उसके पति के बलिदान को अमर जवान ज्योति ने मान्यता दी थी. चौधरी कहके हैं कि हम इस तरह इतिहास को दरकिनार नहीं कर सकते हैं.
सरकारी सूत्रों ने कहा है कि अजीब बात है कि अमर जवान ज्योति पर 1971 व अन्य युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है, लेकिन उनमें से किसी का भी नाम वहां नहीं है.
उन्होंने कहा कि इंडिया गेट पर केवल कुछ शहीदों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध और एंग्लो-अफगान युद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ाई लड़ी थी और इस तरह यह हमारे औपनिवेशिक अतीत का प्रतीक है.
उन्होंने कहा कि 1971 और इसके पहले तथा बाद में हुए युद्ध सहित सभी युद्धों में शहीद हुए भारतीयों के नाम राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में अंकित हैं. वहां शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करना एक सच्ची श्रद्धांजलि है.
अमर जवान ज्योति को लेकर आरोप-प्रत्यारोप शुरू
इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की मशाल को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्योति की मशाल के साथ मिलाए जाने को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को दुख जताते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा.
वहीं, दूसरी ओर केंद्रीय मंत्रियों से लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तक के नेताओं ने उन पर पलटवार किया और कहा कि जिन्होंने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित नहीं की, वह आज राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं.
राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘बहुत दुख की बात है कि हमारे वीर जवानों के लिए जो अमर ज्योति जलती थी, उसे आज बुझा दिया जाएगा. कुछ लोग देशप्रेम और बलिदान नहीं समझ सकते- कोई बात नहीं… हम अपने सैनिकों के लिए अमर जवान ज्योति एक बार फिर जलाएंगे!’
इस ट्वीट के कुछ ही घंटों बाद इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति का राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की लौ के साथ विलय कर दिया गया.
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी पर हमला करते हुए ट्वीट किया, ‘जिन्होंने…जवानों द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक का प्रमाण मांगा, शहीदों को समर्पित प्रथम राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि नहीं दी, सुना है वह आज राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं.’
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राहुल गांधी पर भ्रांति फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि उनका इस मामले में कोई जवाब नहीं है.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘अमर जवान ज्योति की शाश्वत ज्योति को बुझाया नहीं जा रहा है राहुल जी. उसका राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जल रही ज्योति में विलय किया जा रहा है. वही राष्ट्रीय युद्ध स्मारक जिसका कांग्रेस नेताओं ने विरोध किया था. राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करने और सेना के शौर्य पर सवाल उठाने वाले आज देश प्रेम और बलिदान की बातें कर रहे हैं. देश के सैन्य मनोबल को कमजोर करते हुए राजनीति चमकाने की हड़बड़ी में कांग्रेस के युवराज से हमेशा गड़बड़ी हो ही जाती है.’
भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राहुल गांधी पर अनावश्यक विवाद पैदा करने का आरोप लगाया और कहा कि उन्हें इतिहास की बुनियादी सच्चाई का ज्ञान नहीं है.
उन्होंने कहा कि इंडिया गेट पहले विश्व युद्ध में कुर्बानी देने वाले भारतीय सैनिकों का स्मारक है, जबकि अमर जवान ज्योति 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत की विजय में शहीद होने वाले सैनिकों की याद में बनाया है क्योंकि उस वक्त कोई युद्ध स्मारक नहीं था.
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट किया, ‘अमर जवान ज्योति के संदर्भ में कई तरह की गलत सूचनाएं प्रसारित की जा रही हैं. सही बात यह है कि अमर जवान ज्योति की लौ को बुझाया नहीं जा रहा है. इसे राष्ट्रीय समर स्मारक की लौ के साथ मिलाया जा रहा है.’
पश्चिम बंगाल के गैर-भाजपा दलों ने केंद्र के कदम की आलोचना की
पश्चिम बंगाल के तृणमूल कांग्रेस समेत गैर-भाजपा दलों के नेताओं ने कहा है कि यह 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के अनादर के समान है जिन्होंने बांग्लादेश को आजाद कराने में मदद की.
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने फैसले की आलोचना करते हुए संवाददाताओं से कहा कि यह फैसला भारत के इतिहास और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में देश के सैनिकों की शहादत का अपमान है.
घोष ने दावा किया, ‘जिन लोगों का भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान नहीं है, जिन्हें हमारे स्वतंत्रता संग्राम और सैनिकों की वीरता के लिए कोई सम्मान नहीं है, वे अमर जवान ज्योति को इंडिया गेट में अपने मूल स्थान से स्थानांतरित कर सकते हैं, गणतंत्र दिवस परेड से राज्य से नेताजी की झांकी को हटा सकते हैं.’
पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि मोदी नेतृत्व वाली सरकार अरबों भारतीयों की भावनाओं पर विचार किए बिना मनमाने तरीके से निर्णय ले रही है.
माकपा प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्रा ने कहा, ‘मोदी सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा द्वारा निर्देशित है, जिसकी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं थी. हम बार-बार कह रहे थे कि भाजपा ने भारत के इतिहास का मजाक बनाया है. गणतंत्र दिवस से पहले उनका यह कृत्य इस तथ्य की ओर इशारा करता है.’
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने हालांकि निर्णय का समर्थन करते हुए कहा, ‘युद्ध स्मारक हमारे सैनिकों के प्रति सम्मान दिखाने के लिए सही जगह है. यह पहले की जगह के बहुत करीब है और विपक्षी दल मोदी सरकार की हमारे नायकों का सम्मान करने के लिए की गई पहल का राजनीतिकरण कर रहे हैं.’
घोष ने कहा, ‘यह भाजपा सरकार है जो सत्ता में आने के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के गौरवशाली इतिहास को लोगों के सामने पेश कर रही है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)