जब सांप्रदायिकता और पत्रकारिता में भेद मिट जाए, तब इसका विरोध कैसे करना चाहिए?

जब पत्रकारिता सांप्रदायिकता की ध्वजवाहक बन जाए तब उसका विरोध क्या राजनीतिक के अलावा कुछ और हो सकता है? और जनता के बीच ले जाए बग़ैर उस विरोध का कोई मतलब रह जाता है? इस सवाल का जवाब दिए बिना क्या यह समय बर्बाद करने जैसा नहीं है कि 'इंडिया' गठबंधन का तरीका सही है या नहीं.

विवादित ख़बर के लिए न्यूज़ चैनलों पर लगा जुर्माना उनके मुनाफ़े के अनुपात में होना चाहिए: कोर्ट

एक याचिका सुनते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि समाचार चैनलों के लिए न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स और डिजिटल एसोसिएशन का स्व-नियामक तंत्र अप्रभावी है और वे टीवी चैनलों के विनियमन के लिए दिशानिर्देश जारी करेंगे.

आईटी नियम: एडिटर्स गिल्ड ने कहा- पीआईबी को नियामक शक्तियां देना अवैध और असंवैधानिक

सरकार की अधिकृत सूचना इकाई पीआईबी को सोशल मीडिया मंचों पर फ़र्ज़ी ख़बरों की निगरानी का अधिकार दिए जाने के प्रस्ताव पर विभिन्न मीडिया संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की है. इससे पहले एडिटर्स गिल्ड ने कहा था कि फ़र्ज़ी ख़बरों का निर्धारण सिर्फ़ सरकार के हाथ में नहीं सौंपा जा सकता है, इसका नतीजा प्रेस को सेंसर करने के रूप में निकलेगा.