महात्मा गांधी मानते थे कि जब तक मुट्ठी भर धनवानों और करोड़ों भूखे रहने वालों के बीच बेहद अंतर बना रहेगा, तब तक अहिंसा की बुनियाद पर चलने वाली राज्य व्यवस्था कायम नहीं हो सकती. उन्होंने स्वराज्य को लेकर यह सपना तक देखा कि दोनों (पूंजीपति और गरीब) ही अंत में हिस्सेदार बनें, क्योंकि दोष पूंजी में नहीं, उसके दुरुपयोग में है.
पुस्तक अंश: डॉ. बी. आर. आंबेडकर ने आजादी, समानता एवं बंधुत्व को राजनीतिक एवं सामाजिक लोकतंत्र की बुनियाद बताते हुए कहा कि 'बंधुत्व का मतलब सभी भारतीयों के मध्य आपसी भाईचारा है. यही एक सिद्धांत है, जो सामाजिक जीवन में एकता और एकात्मता लाता है. संयुक्त राज्य में जातीय समस्या नहीं है. भारत में जातियां हैं. ये जातियां राष्ट्रविरोधी हैं.'
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: कृष्ण कुमार की ‘थैंक यू गांधी’ कई बार संस्मरणात्मक लगते हुए भी आज के भारत के बारे में है. उसमें कथा, कथा-इतर गद्य, स्मृतियां, आत्मवृतांत, विचार-विश्लेषण आदि सबका रसायन बन गया है और उनमें पाठक की आवाजाही सहज ढंग से होती चलती है.
जन्मदिन विशेष: अपने जीवन को ही अपना संदेश बताने वाले महात्मा गांधी ने अपने प्रति लोगों में जो भरोसा पैदा किया था, लाल बहादुर शास्त्री ने अपने जीवन को उसका संदेश बनाकर उसे पूर्ण विश्वास में बदल दिया.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पौराणिक कल्पना में रसातल सबसे नीचे है पर कितना नीचे है इसका पता नहीं. देश की राजनीति में घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदलता रहता है कि लगता है कि वह नीचता के और तल पर नीचे उतर गया. रसातल अभी इतना दूर नहीं है.
पुण्यतिथि विशेष: गांधी की रामराज्य की अवधारणा कोई धार्मिक अवधारणा नहीं, बल्कि महान नैतिक मूल्यों पर आधारित और प्राचीनता व आधुनिकता दोनों की रूढ़ियों से मुक्त वैकल्पिक सभ्यता का पर्याय थी. उनके निकट धर्म भी इन्हीं महान नैतिक मूल्यों को बरतने का दूसरा नाम था.
अगस्त 1929 में जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में हुई एक जनसभा में उस समय जेल में भूख हड़ताल कर रहे भगत सिंह और उनके साथियों के साहस का ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘इन युवाओं की क़ुर्बानियों ने हिंदुस्तान के राजनीतिक जीवन में एक नई चेतना पैदा की है... इन बहादुर युवाओं के संघर्ष की अहमियत को समझना होगा.’
भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों व छवियों के स्वार्थी अनुकूलन की क़वायदों को सम्यक चुनौती नहीं दी गई तो आने वाली पीढ़ियों की उनके सच्चे क्रांतिकारी व्यक्तित्व व कृतित्व से साक्षात्कार की राह में दुर्निवार बाधाएं और अलंघ्य दीवारें खड़ी हो जाएंगी.
भगत सिंह की पवित्र भूमि, उनका स्वर्ग भारत आज उन्हीं की परिभाषा के मुताबिक नर्क बना दिया गया है. उसे नर्क बना देने वाली ताकतें ही भारत की मालिक बन बैठी हैं. भगत के धर्म को मानने वाले क़ैद में हैं, उन्हीं की तरह. और भगत सिंह की तरह ही उनसे उनकी हंसी छीनी नहीं जा सकी है.
जिस नागरिकता क़ानून को गांधी जी और भारतीयों ने आज से 113 साल पहले विदेशी धरती पर नहीं माना, उस औपनिवेशिक सोच से निकले सीएए और एनआरसी को हम आज़ाद भारत में कैसे स्वीकार कर सकते हैं?
यह हक़ की लड़ाई है. एक तरफ नफ़रत है और एक तरफ हम. मैं यक़ीन दिलाना चाहता हूं कि हम सही हैं. नफ़रती पूरी कोशिश कर रहे हैं पर हमने भी गांधी जी का दामन थाम रखा है. मैं ये भी यक़ीन दिलाता हूं कि हम जीतेंगे क्योंकि इसके अलावा कोई चारा नहीं है.
वीडियो: भगत सिंह की जयंती पर उनके विचारों पर चर्चा कर रहे हैं प्रोफेसर अपूर्वानंद.
ऐसा लगता है कि भगत सिंह के प्रति श्रद्धा वास्तव में गांधी-नेहरू से घृणा का दूसरा नाम है. जिनके वैचारिक पूर्वज ख़ुद को बचाते हुए अपने अनुयाइयों को भगत सिंह से दूर रहने की सलाह देते हुए दिन गुज़ारते रहे, उन्होंने अपनी कायर हिंसा को उचित ठहराने के लिए आज भगत सिंह को एक ढाल बना लिया है.
वीडियो: आज़ादी के बाद भारत में ख़ूनखराबे का सिलसिला जारी था. इसके विरोध में गांधीजी ने अपना आख़िरी उपवास 13 जनवरी 1948 को शुरू किया था. इस घटना पर इतिहासकार दिलीप सिमीओन से चर्चा कर रहे हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अपूर्वानंद.
आज़ादी के बाद दिल्ली में ख़ूनखराबे का सिलसिला जारी था. इसके विरोध में गांधीजी ने 12 जनवरी 1948 को घोषणा की कि वह अगले दिन यानी 13 जनवरी से उपवास शुरू करेंगे.