साल 2020 के दिल्ली दंगा मामले में जेल में बंद जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम ने अपने आवेदन में आरोप लगाया गया है कि सहायक जेल अधीक्षक ने हाल ही में तलाशी की आड़ में आठ-दस लोगों के साथ उसके सेल में प्रवेश किया, उससे मारपीट की और ‘आतंकवादी’ तथा ‘राष्ट्र-विरोधी’ कहकर संबोधित किया.
फरवरी 2020 में हुए दंगों के कथित साज़िश से संबंधित मामले में यूएपीए के आरोपी मोहम्मद सलीम ख़ान ने इस आधार पर ज़मानत मांगी है कि उन्हें हिरासत में दो साल पूरे हो चुके हैं और इस मामले में उनकी भूमिका बहुत सीमित और वीडियो फुटेज पर आधारित है. साथ ही उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें एक अन्य मामले में ज़मानत मिल चुकी है, जो उसी वीडियो फुटेज पर आधारित है.
इस साल जनवरी में दिल्ली की एक अदालत ने साल 2019 में सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने के मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम के ख़िलाफ़ राजद्रोह का अभियोग तय किया था. इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून पर विचार होने तक इससे संबंधित सभी कार्यवाहियों पर रोक लगाने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम एनआरसी की अंतिम सूची अगस्त 2019 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों के नाम शामिल नहीं थे. इस सूची के प्रकाशन के बाद से ही राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा और राज्य की भाजपा सरकार इस पर सवाल उठाते रहे हैं.
असम में 'विदेशियों' की पहचान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई एनआरसी की अंतिम सूची अगस्त 2019 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 3.3 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख से अधिक लोग को इस सूची जगह नहीं मिली थी. फाइनल सूची आने के बाद से ही राज्य की भाजपा सरकार इस पर सवाल उठाती रही है.
उमर ख़ालिद की ज़मानत ख़ारिज करने के फ़ैसले में अदालत यह कबूल कर रही है कि बचाव पक्ष के वकील पुलिस के बयान में जो असंगतियां या विसंगतियां दिखा रहे हैं, वह ठीक है. लेकिन फिर वह कहती है कि भले ही असंगति हो, उस पर वह अभी विचार नहीं करेगी. यानी अभियुक्त बिना सज़ा के सज़ा काटने को अभिशप्त है!
जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को सितंबर 2020 में दिल्ली पुलिस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा की साज़िश रचने के आरोप में ग़ैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया था. फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में सीएए और एनआरसी के समर्थन और विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी.
असम के कछार ज़िले में उधारबंद के थालीग्राम गांव में रहने वाले श्यामा चरण दास के ख़िलाफ़ 2015 में मामला दर्ज किया गया था, लेकिन मई 2016 में उसकी मृत्यु हो गई थी. परिवार ने इस संबंध में मृत्यु प्रमाण पत्र जमा किया था और उसी साल सितंबर में इसी अधिकरण के सदस्य ने दास का मामला बंद कर दिया था.
जेएनयू के छात्र शरजील इमाम ने 24 जनवरी के निचली अदालत के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें उसके ख़िलाफ़ राजद्रोह के तहत आरोप तय किए गए थे. आरोप है कि उन्होंने 13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया और 16 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए भाषणों में कथित तौर पर असम और बाकी पूर्वोत्तर को भारत से अलग करने की धमकी दी थी.
यूएपीए के तहत अक्टूबर 2020 में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को गिरफ़्तार किया था. यूएपीए के साथ ही इस मामले में उनके ख़िलाफ़ दंगा करने और आपराधिक साजिश रचने के भी आरोप लगाए गए हैं. जून 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस संबंध में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार जेएनयू की छात्रा नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और इक़बाल आसिफ़ तन्हा को ज़मानत दे दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2019 में सीएए के विरोध में आंदोलन कर रहे लोगों को वसूली के नोटिस भेजे जाने पर उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि यह कार्यवाही उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित क़ानून के विरुद्ध है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती.
असम के मोरीगांव ज़िले का मामला. 60 वर्षीय माणिक दास दिसंबर 2019 से विदेशी न्यायाधिकरण में नागरिकता साबित करने की क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे थे, जबकि उनका नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में शामिल था. उनके परिवार ने कहा कि मुक़दमे उन्हें मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी, जिससे उन्होंने आत्महत्या कर ली.
19 सितंबर 2017 को फॉरेन ट्रिब्यूनल-6 ने असम में कछार ज़िले के सोनाई के मोहनखल गांव की 23 वर्षीय सेफाली रानी दास को सुनवाई के दौरान पेश नहीं होने के बाद विदेशी घोषित कर दिया था. महिला के हाईकोर्ट का रुख़ करने के बाद उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का एक और मौका दिया गया था.
शरजील इमाम पर आरोप है कि सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के संदर्भ में उन्होंने 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया और 16 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए गए भाषणों में असम और बाकी पूर्वोत्तर को भारत से अलग करने की धमकी दी थी.
पिछले विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दल से चुनाव लड़ने वाले अधिकार कार्यकर्ता प्रणब डोले की नागरिकता को पुलिस ने पासपोर्ट रिन्यूअल प्रक्रिया के तहत अपनी सत्यापन रिपोर्ट में ‘संदिग्ध’ क़रार दिया है. डोले ने दावा किया कि यह उन्हें चुप कराने का हथकंडा है क्योंकि वे अक्सर भाजपा नीत सरकार के ख़िलाफ़ बोलते हैं.