एहतियातन हिरासत व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गंभीर हमला: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी त्रिपुरा सरकार द्वारा 12 नवंबर, 2021 को पारित एहतियातन हिरासत के आदेश को रद्द करते हुए की. कोर्ट ने कहा कि एहतियातन हिरासत के उद्देश्य के परिप्रेक्ष्य में हिरासत लेने वाले अधिकारियों के साथ-साथ इसकी तामील करने वाले अधिकारियों का सतर्क रहना बहुत ज़रूरी है.

एहतियातन हिरासत के नाम पर आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बलि नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी दिलाने के नाम पर सैकड़ों लोगों को ठगने के आरोपी की हिरासत के तेलंगाना सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान सभा में इस पर व्यापक चर्चा हुई थी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हिरासत में रखने की शक्तियां प्रशासन के लिए मनमानी न हो जाएं.

दिल्ली दंगा: हाईकोर्ट ने कहा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य

2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े हत्या के एक मामले में छह आरोपियों को ज़मानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ज़मानत नियम है और जेल अपवाद. यह सुनिश्चित करना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है कि सरकार द्वारा अतिरिक्त शक्तियों का इस्तेमाल किए जाने की स्थिति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता से किसी को मनमाने तरीके से वंचित नहीं किया जाए.

बच्चे को जन्म देने का चुनाव व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आयाम है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक गर्भवती महिला को भ्रूण में अधिक विकृति रहने के चलते मेडिकल गर्भपात कराने की अनुमति दी है. याचिकाकर्ता ने गर्भपात की अनुमति के लिए याचिका दायर कर दावा किया था कि भ्रूण दिल की असामान्यताओं से पीड़ित है और उसके जीवित रहने की संभावना सीमित है.

डिफॉल्ट ज़मानत का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अपरिहार्य हिस्सा है: दिल्ली हाईकोर्ट

अदालत ने दहेज हत्या के एक आरोपी को ज़मानत देते हुए कहा कि यदि निर्धारित अवधि में चार्जशीट दायर नहीं की जाती, तो विचाराधीन क़ैदी को ज़मानत पर रिहा किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी के स्वतंत्र होने के अधिकार को जांच जारी रखने और आरोपपत्र दायर करने के राज्य के अधिकार पर प्राथमिकता दी जाती है.

व्यक्तिगत स्वतंत्रता संवैधानिक जनादेश का महत्वपूर्ण पहलू: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने एक मामले में अग्रिम ज़मानत का अनुरोध करने वाली याचिका ख़ारिज कर दी थी. इस मामले में सात साल पहले प्राथमिकी दर्ज की गई थी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर नियमित तौर पर गिरफ़्तारी की जाती है तो यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान को ‘बेहिसाब नुकसान’ पहुंचा सकती है.