मंडला ज़िले की घुघरी तहसील के ओढ़ारी गांव में नर्मदा नदी पर बसनिया बांध प्रस्तावित है. बांध के चलते मंडला और डिंडौरी ज़िले के लगभग 31 आदिवासी बाहुल्य गांव डूब क्षेत्र में आएंगे और 2,700 से अधिक परिवार विस्थापित होंगे.
मध्य प्रदेश सरकार बीते दिनों पेसा क़ानून लागू करने के बाद से इसे अपनी उपलब्धि बता रही है. 1996 में संसद से पारित इस क़ानून के लिए ज़रूरी नियम बनाने में राज्य सरकार ने 26 साल का समय लिया. आदिवासी नेताओं का कहना है कि शिवराज सरकार के इस क़दम के पीछे आदिवासियों की चिंता नहीं बल्कि समुदाय को अपने वोट बैंक में लाना है.
छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों के हज़ारों आदिवासी केंद्र द्वारा लाए गए वन संरक्षण नियमों के साथ ही राज्य सरकार के पेसा नियमों को वापस लेने और राज्य में 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने परसा कोयला खनन परियोजना के लिए हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंज़ूरी दे दी है, जिसके ख़िलाफ़ आदिवासी और कार्यकर्ता ‘चिपको आंदोलन’ जैसा प्रदर्शन कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि पेड़ों की कटाई और खनन से 700 से अधिक लोगों के विस्थापित होने की संभावना है. इससे आदिवासियों की स्वतंत्रता और आजीविका को ख़तरा है.
केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंज़ूरी दी. सरकार ने कहा कि यह मंज़ूरी राज्य सरकार की सिफ़ारिशों पर आधारित थी. खनन के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे संगठन छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कहा है कि यह स्पष्ट है कि सरकार की प्राथमिकता लोग नहीं, बल्कि कॉरपोरेट मुनाफ़ा है. यह क़दम आदिवासी अधिकारों और पर्यावरण पर हमला है.
सरगुजा ज़िले के अंबिकापुर में फतेहपुर से बीते तीन अक्टूबर को यह पैदल मार्च शुरू हुआ था. इसमें 30 गांवों के आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोग शामिल हैं, जो अपनी मांगों के साथ रायपुर में राज्यपाल व मुख्यमंत्री से मिलेंगे. ये ग्रामीण हसदेव अरण्य क्षेत्र में चल रही और प्रस्तावित कोयला खनन परियोजनाओं का यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि इससे राज्य के वन इकोसिस्टम को ख़तरा है.
हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने और इस रोज़ भव्य आयोजन करने की घोषणा की थी. सरकार व भाजपा संगठन का कहना है कि 15 नवंबर तक वे प्रदेश भर में जनजातियों से जुड़े विभिन्न आयोजन करेंगे. विपक्षी कांग्रेस भी प्रदेश में ‘आदिवासी अधिकार यात्रा’ निकाल रही है.
मोदी सरकार के इस क़दम से देश का कोयला क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खुल जाएगा. प्रधानमंत्री ने कहा कि नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत होना देश के कोयला क्षेत्र को ‘दशकों के लॉकडाउन’ से बाहर निकालने जैसा है. हालांकि इन कोयला खदानों के समीप रहने वाले लोगों ने कहा है कि इससे उनका अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा.
हसदेव अरण्य क्षेत्र के सरपंचों ने पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के भाषण को याद दिलाते हुए कहा कि यहां का समुदाय पूर्णतया जंगल पर आश्रित है, जिसके विनाश से यहां के लोगों का पूरा अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा.
पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरुआत होने के बाद कई ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि उन्हें 'पुलिस क्रूरता' का सामना करना पड़ा. 172 लोगों के खिलाफ अन्य मामलों के साथ राजद्रोह के कुल 19 मामले दर्ज किए गए थे. सभी मामलों को वापस लेने का फैसला किया गया है.
बीते 14 अक्टूबर से राज्य के सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा ज़िले के बीस से ज़्यादा गांवों के आदिवासी हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान खोले जाने के ख़िलाफ़ धरना दे रहे हैं. उनका आरोप है कि कोल ब्लॉक के लिए पेसा क़ानून और पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों की अनदेखी की गई है.
एक ओर कमलनाथ सरकार विधानसभा चुनावों से पहले जारी किए अपने ‘वचन-पत्र’ को ही सरकार चलाने का रोडमैप और वचनों के पूरे होने के दावे कर रही है, तो दूसरी ओर उन वचनों से सरोकार रखने वाले वर्ग अब सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने लगे हैं.
पेसा क़ानून पारित होने के दो दशक बाद भी झारखंड में यह एक सपना मात्र है. राज्य के 24 में से 13 ज़िले पूर्ण रूप से और तीन ज़िलों का कुछ भाग अनुसूचित क्षेत्र है, लेकिन अभी तक राज्य में पेसा की नियमावली तक नहीं बनाई गई है.