लांसेट के अध्ययन में पाया गया है कि सार्वजनिक से निजी में बदले जाने के बाद अस्पतालों के मुनाफ़े में बढ़ोतरी होती है, मुख्य रूप से यह वृद्धि अस्पताल के कर्मचारियों की संख्या में कटौती करके तथा चुनिंदा तरीके से मरीज़ों को भर्ती करने से होती है.
सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी बताती है कि 2018 में शुरू हुई 'आयुष्मान भारत' योजना के तहत ख़र्च किए गए कुल धन का दो-तिहाई हिस्सा निजी अस्पतालों को गया है. 15 राज्यों में निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (54 फीसदी) से अधिक रहा है.
वीडियो: राजस्थान सरकार हाल ही में 'स्वास्थ्य का अधिकार' विधेयक लेकर आई है जिसके तहत राज्य के लोग इमरजेंसी में प्राइवेट अस्पताल में भी निशुल्क इलाज करवा पाएंगे. हालांकि, राज्य के प्राइवेट अस्पताल के चिकित्सक इसका विरोध कर रहे हैं.
हरियाणा सरकार एमबीबीएस में दाख़िले के वक़्त 40 लाख रुपये का बॉन्ड भरवा रही है. इसके तहत सरकारी मेडिकल कॉलेज से पढ़ने वाले हर छात्र को कम से कम सात साल सरकारी अस्पताल में सेवा देनी होगी. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसे 40 लाख रुपये सरकार को देने होंगे. एमबीबीएस छात्र इस फैसले के विरोध में हैं.
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि अस्पताल कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं, जहां मुनाफ़ा कमाना समाज की सेवा से अधिक महत्वपूर्ण है. इसके कारण डॉक्टर और अस्पताल समान रूप से मरीजों की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं.
देश के विभिन्न निजी अस्पतालों ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित की गई नई नीति के तहत कोविड-19 रोधी टीकों की ख़रीद को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है. इसकी वजह से उनके केंद्रों पर टीकाकरण स्थगित करना पड़ा है. इन अस्पतालों ने टीकों की ख़रीद के लिए एक उचित तंत्र और एकल खिड़की प्रणाली स्थापित किए जाने की मांग की है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने निजी टीकाकरण केंद्रों के लिए कोविशील्ड की एक खुराक की अधिकतम कीमत 780 रुपये जबकि कोवैक्सीन की एक खुराक के लिए 1,410 रुपये और स्पुतनिक-वी की एक खुराक की कीमत 1,145 रुपये तय की. मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा कि ज़्यादा शुल्क वसूले जाने पर निजी टीकाकरण केंद्रों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए.
हाईकोर्ट दिल्ली सरकार की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अनुरोध किया गया है कि कोरोना के मामलों में वृद्धि के मद्देनज़र कम से कम 15 दिनों के लिए 33 निजी अस्पतालों में 80 फ़ीसदी आईसीयू बेड कोविड-19 मरीज़ों के लिए आरक्षित करने का उसे अधिकार हो.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों को एहतियात बरतने के लिए रेड अलर्ट जारी करते हुए कहा है कि वरिष्ठ और युवा डॉक्टर समान रूप से कोरोना संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन वरिष्ठों की मृत्यु दर अधिक है.
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका दायर में कहा गया था कि निजी अस्पताल कोरोना इलाज के लिए अत्यधिक शुल्क वसूल रहे हैं, जिस पर लगाम लगाने के लिए इलाज की अधिकतम लागत तय की जानी चाहिए.
इससे पहले कोरोना वायरस की रोकथाम में लगे स्वास्थ्यकर्मियों के लिए आवास और क्वारंटीन सुविधा को लेकर उच्चतम न्यायालय में दाख़िल एक अन्य याचिका के जवाब में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि संक्रमण से बचाव की अंतिम ज़िम्मेदारी स्वास्थ्यकर्मियों की है.
पंजाब क्लिनिकल प्रतिष्ठान अध्यादेश को डॉक्टर विरोधी और जन विरोधी क़रार देते हुए प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि सरकार इसके ज़रिये निजी स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र को नियंत्रित करना चाहती है.
भारत में महाराष्ट्र कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित राज्य है. अब तक कोविड-19 की जांच कराने पर 4,500 रुपये लगते थे.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में संक्रमित लोगों के लिए निजी क्वारंटीन सेंटर की सुविधा एवं अस्पतालों की संख्या बढ़ाने की भी मांग की गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से ऐसे अस्पतालों की पहचान करने को कहा है, जहां कोविड-19 मरीजों का इलाज नि:शुल्क या बेहद कम लागत में किया जा सकता है. अदालत ने केंद्र सरकार से एक सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है.