'मैं अयोध्या आ गया हूं. लेकिन लग रहा है वनवास अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है. जब वन में रहता था, पावस ऋतु में कुटिया की छत टपकती थी और अब इस तथाकथित भव्य मंदिर में भी भीग रहा हूं.'
आईआईटी, बॉम्बे ने एक कला कार्यक्रम के दौरान रामायण की कथा से प्रेरित नाटक करने को लेकर छात्रों पर जुर्माना लगाया है और छात्रावास से निलंबित कर दिया है. संस्थान के एक समूह ने आरोप लगाया था कि नाटक में भगवान राम और सीता का अपमान किया गया.
कुंवर नारायण की कविता राम को सकुशल सपत्नीक वन में लौट जाने की सलाह देती है. लेकिन हमारे काव्यों ने तो उन्हें वहां से निकालकर युद्धक्षेत्र में भेज दिया था! आज फिर एक युद्ध चल रहा है और राम एक पक्ष के हथियार बना दिए गए हैं. कविता में जनतंत्र स्तंभ की तेरहवीं क़िस्त.
अयोध्या में मीडिया के एक हिस्से द्वारा ‘नकारात्मक’ ख़बरों को नकारने का सिलसिला राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के अगले दिन ही शुरू हो गया था. तभी, जब रामलला के दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ की धक्का-मुक्की में कुछ घायल हो गए और इनमें से एक की मौत हो गई तो मीडिया ने इसे प्रसारित करने से परहेज़ किया था.
जब भी अपने भक्तों के अहंकार की परीक्षा लेनी होती है, रामलला ऐसी नरलीला करते ही करते हैं. कभी भक्त समझ जाते हैं और कभी नहीं समझ पाते. नहीं समझ पाते तो अपना अहंकार बढ़ाते जाते हैं. फिर एक दिन अचानक रामलला उसे तोड़ देते हैं तो वे पछताते हैं. अहंकार दरअसल, रामलला का आहार है.
राम राज्य अपने आप नहीं आएगा, इसके लिए बड़े पैमाने पर सामाजिक प्रयास करने होंगे. सभी के लिए न्याय चाहिए होगा. लिंग, जाति, समुदायों के बीच समता लानी होगी. सभी के लिए उचित कमाई वाले रोज़गार, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं और माहौल चाहिए होगा. लेकिन सिर्फ राम का आह्वान करने से ये नहीं होगा.
संघ परिवार के ‘विशेषज्ञों’ के अलावा भक्त मीडिया के कई स्वयंभू विश्लेषक मंदिर मुद्दे पर भाजपा की दिग्विजय पक्की बताते हुए दावा कर रहे हैं कि देश के विभिन्न अंचलों के श्रद्धालुओं को ‘भव्य’ राम मंदिर व ‘दिव्य’ अयोध्या का दर्शन कराकर पार्टी लोकसभा चुनाव तक उन्हें अपना मुरीद बना लेगी. लेकिन यह पूरा सच नहीं है.
राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण हिंदुत्व की राजनीति करने वाले व्यक्ति का संबोधन था. वो, जिसने धर्म की भावुकता और राजसत्ता की बेईमानी से एक ऐसा मिश्रण किया है जिसके ज़रिये वह आम आस्थावान जनता को छल सके.
क्या हुआ जब राम स्वप्न में आए?
तमिल फिल्म अन्नपूर्णी, जिसे नेटफ्लिक्स ने हटा दिया है, को लेकर उपजा विवाद हुआ ही नहीं होता, अगर फिल्म के दृश्य से आहत होने वाले कथित धार्मिकों ने वाल्मीकि रामायण पढ़ ली होती.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: राम की महिमा है कि उनकी स्तुति में शामिल होकर हत्यारे-लुटेरे-जघन्य अपराधी अपने पाप धो लेंगे और राम-धवल होकर अपना अपराधिक जीवन जारी रखेंगे. राम की महिमा है कि उन्होंने इतना लंबा वनवास सहा, अनेक कष्ट उठाए जो यह तमाशा, अमर्यादित आचरण भी झेल लेंगे.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: बहुत ज़रूरी है कि कबीर को एक कवि के रूप में देखा-समझा जाए जो अपने विचार से कविता की स्वायत्तता को अतिक्रमित नहीं बल्कि पुष्ट करता है.
बीएचयू के धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग ने ‘भारतीय समाज में मनुस्मृति की प्रयोज्यता’ पर शोध का प्रस्ताव दिया है. 21वीं सदी की तीसरी दहाई में जब दुनियाभर में शोषित उत्पीड़ितों में एक नई रैडिकल चेतना का संचार हुआ है, 'ब्लैक लाइव्ज़ मैटर' जैसे आंदोलनों ने विकसित मुल्कों के सामाजिक ताने-बाने में नई सरगर्मी पैदा की है, तब अतीत के स्याह दौर की याद दिलाती इस किताब की प्रयोज्यता की बात करना दुनिया में भारत की क्या छवि बनाएगा?
मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम ज़िले के चौकीपुरा गांव का मामला. पुलिस ने बताया कि इस संबंध में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है. उपद्रवियों की पहचान करने और उन्हें पकड़ने के लिए टीमें गठित की गई हैं.
बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा रामचरितमानस की आलोचना को लेकर अगर कुछ नया है तो वह है इस पर हुआ हंगामा. श्रमण संस्कृति के पैरोकार विद्वान व सामाजिक कार्यकर्ता, तुलसीदास व रामचरितमानस की आलोचना में न सिर्फ इससे कहीं ज़्यादा कडे़ शब्द इस्तेमाल कर चुके हैं. एक दौर में तुलसीदास को ‘हिंदू समाज का पथभ्रष्टक’ तक क़रार दिया जा चुका है.