केंद्र सरकार के बजट में सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व शिक्षा को न केवल दरकिनार किया गया है बल्कि मनरेगा सरीखी कई ज़रूरी योजनाओं के आवंटन में भारी कटौती की गई है. ऐसे में झारखंड जैसा राज्य जो कुपोषण, ग़रीबी व ग्रामीण बेरोज़गारी से जूझ रहा है, वहां आने वाले राज्य बजट के पहले पिछले बजटों में की गई घोषणाओं के आकलन की ज़रूरत है.
आईएलओ और यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, विश्वभर में बाल मज़दूरों की संख्या 16 करोड़ हो गई है. यह चेतावनी भी दी गई है कि कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप 2022 के अंत तक वैश्विक स्तर पर 90 लाख और बच्चों को बाल श्रम में धकेल दिए जाने का ख़तरा है.
श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की है कि ग्रेच्युटी की सुविधा को सभी प्रकार के कर्मचारियों तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें ठेका मज़दूर और दैनिक या मासिक वेतन कर्मचारी शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट के जज डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इन लोगों ने पिछले 70 सालों से इंतज़ार किया है. अब इन्हें और इंतज़ार करने के लिए नहीं कहा जा सकता है. हाशिये पर पड़े लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक अधिकार सुनिश्चित करने की ज़रूरत है.
नरेंद्र मोदी सरकार की पिछली कई योजनाओं की तरह यह नई योजना भी दिखाती है कि लुटियन दिल्ली असली भारत की सच्चाई से कितनी दूर है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए सरकार से पूछा था कि ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि लोग इसलिए भीख नहीं मांगते कि ऐसा करना उनकी इच्छा है, बल्कि इसलिए मांगते हैं क्योंकि ये उनकी ज़रूरत है. भीख मांगना जीने के लिए उनका अंतिम उपाय है, उनके पास जीवित रहने का कोई अन्य साधन नहीं है.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को औद्योगिक घरानों या राज्य सरकारों के भरोसे छोड़ दिया है.