लोकतंत्र को सीधी राह पर लाने का क्या उपाय है?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: लोकतंत्र अपने आप सीधी राह पर वापस नहीं आता या आ सकता. हम ऐसे मुक़ाम पर हैं जहां नागरिक के लोकतांत्रिक विवेक की परीक्षा है. उन्हें ही निर्णय करना है कि वे लोकतंत्र पर सीधी राह पर वापस लाने की कोशिश करना चाहते हैं या नहीं.

‘आपको क्या मुफ़्त चाहिये’ – इस सवाल पर बच्चों के जवाब समाज की स्थिति बता देते हैं

भोपाल से प्रकाशित बच्चों की मासिक पत्रिका 'चकमक' हिंदी की अब तक की इकलौती 'बाल विज्ञान पत्रिका' है. इसका एक स्तंभ है- 'क्यों क्यों '. इसमें बच्चों से हर महीने एक सवाल पूछा जाता है और अगले महीने उसके जवाब प्रकाशित किए जाते हैं.

‘बाबासाहेब: माई लाइफ विद डॉ. आंबेडकर’ गंभीर छवि वाले जननेता के सबसे सौम्य रूप को दिखाती है

पुस्तक समीक्षा: डॉ. बीआर आंबेडकर की पत्नी डॉ. सविता आंबेडकर की मूल रूप से मराठी में लिखी गई आत्मकथा का अंग्रेज़ी अनुवाद 'बाबासाहेब माई लाइफ विद डॉ. आंबेडकर' के नाम से आया है. यह किताब बाबासाहेब को विशिष्ट विद्वेता या युगांतरकारी छवि से उतारकर एक सामान्य, गृहस्थ के तौर पर सामने रखती है.

साहित्य में विस्मृति का वितान फैल रहा है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी में पिछले लगभग पचास वर्षों से साहित्य को राजनीतिक-सामाजिक संदर्भों में पढ़ने-समझने की प्रथा लगभग रूढ़ हो गई है. ये संदर्भ साहित्य को समझने में सहायक होते हैं पर साहित्य को उन्हीं तक महदूद करना साहित्य की समग्रता से दूर जाना है.

जब तक हिंदू सामाजिक व्यवस्था बनी रहेगी, अस्पृश्यों के प्रति भेदभाव भी बना रहेगा: डॉ. आंबेडकर

भेदभाव का मूल हिंदुओं के हृदयों में बसे हुए उस भय में निहित है कि मुक्त समाज में अस्पृश्य अपनी निर्दिष्ट स्थिति से ऊपर उठ जाएंगे और हिंदू सामाजिक व्यवस्था के लिए ख़तरा बन जाएंगे.

भारत एक असभ्य-अभद्र-बर्बर युग में प्रवेश कर चुका है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंसा को सार्वजनिक अभिव्यक्ति का लगभग क़ानूनी माध्यम स्वीकार किया जाने लगा है. समाज उसे और उसके फैलाव को लेकर, उसके साथ जुड़े झूठों और घृणा को लेकर विचलित नहीं है. पढ़े-लिखे लोग उसे अवसर मिलते ही, उचित ठहराने लगे हैं.

राजस्थान: पानी की बाल्टी छूने पर आठ वर्षीय दलित लड़के की पिटाई

राजस्थान के अलवर ज़िले का मामला. शिकायत के अनुसार, घटना शनिवार को हुई, जब गांव के सरकारी स्कूल का कक्षा 4 का छात्र स्कूल परिसर में स्थित हैंडपंप पर पानी पीने गया, जहां पानी भर रहे कथित ऊंची जाति के एक व्यक्ति ने लड़के ने बाल्टी छूने पर उसे बेरहमी से पीटा.

हां के बेसुरे कीर्तन में नहीं की दरकार

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय नहीं कहने और करने का आशय है भारतीय सभ्यता, भारतीय परंपरा, भारतीय लोकतंत्र के अपनी प्रतिबद्धता का इसरार करना. जो इस समय नहीं कहने-करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा वह नैतिक चूक का चरित्र होगा. 

मध्य प्रदेश: महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया, मारपीट और बदसलूकी, केस दर्ज

इंदौर ज़िले के एक गांव का मामला है, जहां एक विवाद को लेकर 30 वर्षीय महिला को कथित तौर पर पीटा गया और निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया. इस मामले में पुलिस ने चार महिलाओं को गिरफ़्तार किया है. सभी महिलाएं अनुसूचित जाति से संबंधित हैं.

चंबल के डकैतों ने पानी बचाने के लिए कैसे हथियार छोड़ दिए

डाकुओं के लिए कुख्यात चंबल क्षेत्र के कई डाकुओं ने नागरिक समाज संगठन तरुण भारत संघ की मदद और प्रोत्साहन के बाद हिंसा, लूटपाट और बंदूकें छोड़कर जल संकट से जूझ रहे इस इलाके में पानी के संरक्षण का बीड़ा उठाया है. विश्व जल शांति दिवस के मौक़े पर इनमें से कइयों को सम्मानित भी किया गया.

उत्तर प्रदेश: बदायूं में दो लड़कों की हत्या, आरोपी की कथित एनकाउंटर में मौत

घटना बदायूं की है. पुलिस ने बताया कि मंगलवार शाम साजिद नाम के व्यक्ति द्वारा दो नाबालिग भाइयों की हत्या के बाद इलाके में तनाव फैल गया. बाद में पुलिस  द्वारा कथित तौर पर एनकाउंटर में आरोपी की मौत हो गई.

चुनावी बॉन्ड की असली क़ीमत कौन अदा कर रहा है?

चुनावी बॉन्ड के ज़रिये राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों में सड़क, खनन और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी बड़ी कंपनियों का शामिल होना दिखाता है कि भले चंदे की राशि राजनीतिक दलों को मिल रही है, लेकिन इनकी क़ीमत आम आदिवासी और मेहनतकश वर्ग को चुकानी पड़ रही है, जिसके संसाधनों को राजनीतिक वर्ग ने चंदे के बदले इन कंपनियों के हाथों में कर दिया.

आज की राजनीति बुद्धि-ज्ञान-संस्कृति से लगातार अविराम गति से दूर जा रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारे लोकतंत्र की एक विडंबना यह रही है कि उसके आरंभ में तो राजनीतिक नेतृत्व में बुद्धि ज्ञान और संस्कृति-बोध था जो धीरे-धीरे छीजता चला गया है. हम आज की इस दुरवस्था में पहुंच हैं कि राजनीति से नीति का लोप ही हो गया है.

शिक्षक द्वारा नाबालिग छात्रा को फूल स्वीकारने के लिए मजबूर करना यौन उत्पीड़न: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी पुरुष स्कूल शिक्षक द्वारा कक्षा में नाबालिग छात्रा को फूल देना और उसे दूसरों के सामने इसे स्वीकार करने के लिए मजबूर करना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न है और इसके लिए सख़्त दिशानिर्देश दिए गए हैं.

अगर लोक ही नहीं चाहता कि लोकतंत्र बचे और सशक्त हो, तो उसे कौन बचा सकता है?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: यह बेहद चिंता की बात है कि ज़्यादातर लोग लोकतंत्र में सत्तारूढ़ शक्तियों द्वारा हर दिन की जा रही कटौतियों या ज़्यादतियों को लेकर उद्वेलित नहीं हैं और उन्हें नहीं लगता कि लोकतंत्र दांव पर है. स्थिति यह है कि लगता है कि लोक ही लोकतंत्र को पूरी तरह से तंत्र के हवाले कर रहा है.

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