बजट किसानों को चकमा देने के लिए होगा, वादे लबालब और नतीजे ठनठन

आपके मुल्क में अक्टूबर से लेकर आधी जनवरी तक एक फिल्म को लेकर बहस हुई है. साढ़े तीन महीने बहस चली. नौकरी पर इतनी लंबी बहस हुई? बेहतर है आप भी सैलरी की नौकरी छोड़ हिंदू-मुस्लिम डिबेट की नौकरी कर लीजिए.

जौहर महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव वाली प्रथा नहीं बल्कि प्रतिरोध का रूप था: आरएसएस नेता

आईआईएमसी में स्त्री शक्ति पर आयोजित एक संगोष्ठी में आरएसएस नेता कृष्ण गोपाल ने कहा कि जौहर-शाखा की परंपरा का हिस्सा थी जिसमें महिलाएं विदेशी आक्रमणकारियों के हरम का हिस्सा बनने की बजाय क़ुर्बान हो जाना पसंद करती थीं.

युवाओं को सपने देखने दें, उन्हें उनका हक़ दें: प्रियंका चोपड़ा

अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने कहा कि शिक्षित होना और सशक्त होना अलग-अलग बाते हैं. सशक्त व्यक्ति ग़लत मान्यताओं और परंपराओं के ख़िलाफ़ खड़ा होना जानता है.

संस्कृति का बखान करने वाले आधी आबादी के मुद्दों पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं?

यह कैसा समाज है जहां जीवित इंसान की कोई कीमत नहीं पर मृत व्यक्ति के सम्मान की रक्षा के नाम पर लोग सड़क पर उतर आते हैं, तोड़-फोड़ करते हैं, यहां तक कि हिंसा करने से भी नहीं चूकते.

कम से कम हमारे हिंदुस्तान में तो ऐसा कुछ नहीं होता…

अफ़राज़ुल हत्याकांड: ये तीन लोगों की कहानी है. भगवान, अल्लाह, गॉड, इलाही जिसको भी आप मानते हो, वो कहता है, साउंड, कैमरा, एक्शन और एक सीन शुरू होता है.

अफ़राज़ुल की हत्या हमारे सामाजिक पतन की दास्तान है

सिर्फ ये कहना कि ये किसी पार्टी विशेष की सरकार के कारण हुआ, समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों से बचना है. सरकार की ज़िम्मेदारी है पर यह समझना भी ज़रूरी है कि हम ख़ुद अपने घरों में क्या बात कर रहे हैं.

क्या रोहिंग्याओं के लिए उम्मीद नाम का कोई कोना बचा हुआ है?

दुनिया ने रोहिंग्याओं के ख़िलाफ़ सहानुभूति में इतनी कंजूसी दिखाई है कि सहानुभूति की कोई भी अपील ईश्वर की आवाज़ की तरह सुनाई देती है.

‘औरतों की ज़िंदगी कोख के अंधेरे से क़ब्र के अंधेरे तक का सफ़र है’

'किसी समाज व शासन की सफलता इस तथ्य से समझी जानी चाहिए कि वहां नारी व प्रकृति कितनी संरक्षित व पोषित है, उन्हें वहां कितना सम्मान मिलता है.'

गोरापन और भारतीय मन

नोएडा में अफ्रीकी छात्रों पर हमले की रिपोर्टिंग के दौरान जब हम एक छात्र जेसन से मिले तो उन्होंने बताया कि पड़ोस की महिला बच्चों को डराने के लिए उनका नाम लेती हैं. वो हैरान थे कि वह किसी को डराने की चीज़ कैसे हो सकते हैं. मतलब मां-बाप ट्रेनिंग दे रहे होते हैं कि वो काला है, वो तुम्हें नुकसान पहुंचाएगा.

‘कुआं और मूर्ति दलितों से बनवाते हो, फिर उन्हें पानी पीने और मंदिर जाने से रोकते क्यों हो’

आंबेडकर पर हुए एक सेमिनार में केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने जातिवादी मानसिकता पर सवाल उठाते हुए लोगों से सोच बदलने की अपील की.

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