मोदी सरकार सोचती है कि यह कृषि उत्पादों के वैश्विक व्यापार को मनमर्ज़ी ढंग से नियंत्रित कर सकती है और किसानों और व्यापारियों को नुकसान पहुंचाए बगैर अपने फ़ैसलों को रातोंरात बदल सकती है.
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में गोरखपुर से लेकर कुशीनगर, देवरिया, बस्ती का इलाका गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है. गोरखपुर और बस्ती मंडल के कुल सात ज़िलों में कभी 28 चीनी मिलें हुआ करती थीं, लेकिन आज 16 मिलें बंद हैं. लोगों को उम्मीद थी कि डबल इंजन की सरकार पूर्वांचल की बंद चीनी मिलों को शुरू कर इलाके में खुशहाली लाएगी, लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है.
ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वी यूपी के गन्ना किसानों को उन्नत क़िस्म की प्रजाति मुहैया कराने, सूखा, जलभराव व ऊसर क्षेत्रों में उपयोगी प्रजातियों को विकसित करने जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए 1939 में गोरखपुर के कूड़ाघाट में गन्ना शोध केंद्र की स्थापना की गई. 2017 में केंद्र की ज़मीन एम्स बनाने के लिए देते हुए इसे पिपराइच स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन आज तक वहां शोध केंद्र की एक ईंट भी नहीं रखी गई है.
वीडियो: बीते दिनों केंद्र ने गन्ने का दाम बढ़ाया है. गन्ना किसानों के बकाया, अर्थव्यवस्था और ग्रामीण भारत पर इसके प्रभावों के मुद्दों पर इंद्र शेखर सिंह आईआईएम-अहमदाबाद के प्रोफेसर सुखपाल सिंह से चर्चा कर रहे हैं. साथ ही आगामी यूपी चुनाव के मद्देनज़र राज्य में गन्ने की राजनीति को लेकर भाकियू नेता राकेश टिकैत और युद्धवीर सिंह से बातचीत.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर बकाया राशि का तत्काल भुगतान करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि गन्ना किसानों को भुगतान में देरी और आज की आवश्यकताओं के अनुसार इसके मूल्य में संशोधन न करना किसानों के दुखों और कष्टों को बढ़ा रहा है और महामारी के बाद से उनके लिए स्थिति और ख़राब हो गई है.
शुगरकेन कंट्रोल ऑर्डर 1966 कहता है कि चीनी मिलें किसान को गन्ना आपूर्ति के 14 दिन के अंदर भुगतान करेंगी, यदि वे ऐसा न करें तो उन्हें बकाया गन्ना मूल्य पर 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना होगा. यूपी सरकार इस नियम का पालन न तो निजी चीनी मिलों से करवा पा रही है न उसकी अपनी चीनी मिलें इसे मान रही हैं.
पिछले साल भी गन्ने की पेराई शुरू होने से पहले चीनी मिलों पर गन्ना किसानों के बकाया थे लेकिन वह रकम इतनी अधिक नहीं थी. साल 2018-19 में राज्य मिलों पर गन्ना किसानों का 4,941 करोड़ रुपये बकाया था.
यूपी के बड़े गन्ना उत्पादक ज़िलों में से एक कुशीनगर और आसपास के क्षेत्रों में भारी बारिश से हुए जलजमाव के चलते गन्ने की फसल सूखने की ख़बरें आ रही हैं. सरकारी सर्वेक्षण भी बड़े पैमाने पर फसल के नुक़सान की तस्दीक कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने अब तक किसानों को किसी तरह की मदद देने की बात नहीं कही है.
मामला मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के सिलौली का है, जहां एक पचास वर्षीय किसान का शव खेत में लटका मिला. उनके परिजनों ने बताया कि वह लॉकडाउन के कारण गन्ने की फसल न बेच पाने की वजह से अवसाद में थे.
भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में वादा किया था कि फसल बेचने के 14 दिन के भीतर गन्ना किसानों का भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा और सरकार बनने के 120 दिनों के भीतर गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने के बाद भी ये वादे काग़ज़ों से बाहर नहीं निकल सके हैं.
इतिहास यही रहा है कि सरकारें जब भी चीनी उद्योग के लिए राहत पैकेज जारी करती हैं तो उसमें किसानों के हित गौण हो जाते हैं और लाभ मिलों को पहुंचता है.
सूत्रों के मुताबिक, खाद्य मंत्रालय ने 30 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक बनाने का प्रस्ताव दिया है. चीनी स्टॉक को बनाए रखने की लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी.
गन्ने की खेती का मसला राजनीतिक दलों के लिए ही नहीं आश्चर्यजनक रूप से खुद किसानों के लिए भी चुनावी मुद्दा नहीं है.