सुप्रीम कोर्ट गुजरात की एक रेप सर्वाइवर की 27 सप्ताह से अधिक के भ्रूण के गर्भपात की इजाज़त मांगने की याचिका सुन रहा था. कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट को महिला की याचिका को बारह दिन के लिए स्थगित करने के लिए फटकारते हुए कहा कि ऐसे मामलों में वक़्त ख़राब न करते हुए तत्परता बरती जानी चाहिए.
फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज, इंडिया के अध्ययन में पाया गया कि देश की केवल 68 प्रतिशत महिलाएं गर्भपात को एक महिला के स्वास्थ्य अधिकार के रूप में देखती हैं, वहीं 95.5% महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में हुए संशोधन के बारे में जानकारी नहीं है.
एक 26 वर्षीय महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट से भ्रूण में मस्तिष्क संबंधी असामान्यताएं होने के कारण गर्भपात की अनुमति मांगी थी. अदालत ने उनके पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अंतिम फैसला जन्म देने संबंधी महिला की पसंद और अजन्मे बच्चे के गरिमापूर्ण जीवन की संभावना को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता मीरा कौर पटेल की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कहा गया था कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम की धारा 4 (3) (i) में 35 वर्ष की आयु का प्रतिबंध महिलाओं के प्रजनन अधिकारों पर पाबंदी है.
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत सभी महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित व क़ानूनी रूप से गर्भपात कराने का हक़ देते हुए कहा कि उनके विवाहित होने या न होने के आधार पर कोई भी पक्षपात संवैधानिक रूप से सही नहीं है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक गर्भवती महिला को भ्रूण में अधिक विकृति रहने के चलते मेडिकल गर्भपात कराने की अनुमति दी है. याचिकाकर्ता ने गर्भपात की अनुमति के लिए याचिका दायर कर दावा किया था कि भ्रूण दिल की असामान्यताओं से पीड़ित है और उसके जीवित रहने की संभावना सीमित है.
सितंबर में केरल हाईकोर्ट में कम से कम तीन ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें से दो में मेडिकल बोर्ड ने गर्भावस्था समाप्त करने की सिफ़ारिश की थी, जिसके बाद कोर्ट ने इसकी अनुमति दे दी. तीसरे मामले में नाबालिग बलात्कार पीड़िता के आठ सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति मांगी गई है.
हाईकोर्ट ने यह आदेश नाबालिग बलात्कार पीड़िता और उनके माता-पिता की उस याचिका पर दिया है, जिसमें उन्होंने गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के लिए अस्पताल को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. अदालत ने कहा कि एक गर्भवती की गर्भावस्था जारी रखने या समाप्त करने का चयन करने की स्वतंत्रता छीनी नहीं जा सकती.
चिकित्सा गर्भपात संशोधन विधेयक, 2020 में विशेष तरह की महिलाओं के गर्भपात के लिए गर्भावस्था की सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने का प्रस्ताव है. इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य महिलाएं (दिव्यांग महिलाएं, नाबालिग) भी शामिल होंगी.
25 सप्ताह की गर्भवती महिला को गर्भपात की अनुमति देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि असामान्य भ्रूण का गर्भपात कराने से सिर्फ इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता कि गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक की है.