ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने पर भारतीयों को ख़ुश होने की जगह वास्तव में गंभीरता के साथ आत्ममंथन करना चाहिए कि हज़ारों सालों से हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा रही हमारी धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक बहुलता का क्या हुआ.
ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री होना ब्रिटेन के लिए अवश्य गौरव का क्षण है क्योंकि इससे यह मालूम होता है कि ‘बाहरी’ के साथ मित्रता में उसने काफ़ी तरक्की की है. इसमें हिंदू धर्म या उसके अनुयायियों का कोई ख़ास कमाल नहीं है. यह कहना कि ब्रिटेन को भी हिंदू धर्म का लोहा मानना पड़ा, हीनता ग्रंथि की अभिव्यक्ति ही है.
ब्रिटेन में मची राजनीतिक उथल-पुथल के बीच लिज़ ट्रस के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद भारतीय मूल के ऋषि सुनक को कंज़रवेटिव पार्टी का नया नेता चुना गया है. दो महीने से भी कम समय में वह ऐसे तीसरे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने ब्रिटिश राजनीतिक इतिहास के सबसे अशांत समय में से एक के दौरान पदभार ग्रहण किया है.
किसी देश की आबादी का विविधतापूर्ण होना काफ़ी नहीं है. उसकी सभ्यता की पहचान यह है कि उसके प्रतिनिधियों में भी समानुपातिक रूप से वह विविधता है या नहीं. कोई देश सिर्फ़ दूसरी आबादियों को मताधिकार देता है या उन आबादियों को देश के नेतृत्व का अधिकार देने की क्षमता और साहस भी रखता है? इससे इस देश के आत्मविश्वास का पता चलता है.