पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां किसान आंदोलन का असर दिखा था, वहां के 19 विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा सिर्फ़ छह सीटें हासिल कर पाई है. अगर इस चुनावी नतीजे से किसी एक निष्कर्ष पर पहुंचा जाए तो वह यह है कि जनता के मुद्दों पर चला सच्चा जन आंदोलन ही ध्रुवीकरण के रुझानों को पलट सकता है और आगे चलकर यही भाजपा को पराजित कर सकता है.
क्या किसी सत्ता दल को मतदाताओं की नाराज़गी के आईने में अपनी शक्ल तभी देखनी चाहिए, जब वह उसे सत्तापक्ष से विपक्ष में ला पटके?
निर्वाचन अयोग के आंकड़ों के मुताबिक कुंडा, मल्हनी और रसड़ा सीट के भाजपा उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई. ज़मानत बचाने के लिए एक उम्मीदवार को अपनी सीट पर हुए कुल मतदान के 16.66 प्रतिशत या 1/6 हिस्से के बराबर मत प्राप्त करना जरूरी है.
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर हाल ही में हुए चुनाव में बसपा का केवल एक उम्मीदवार विजयी हुआ है. यह सीट बलिया ज़िले की रसड़ा विधानसभा है. यहां से बसपा के मौजूदा विधायक और विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सीटों के लिहाज़ से भले ही पिछड़ी हो, लेकिन मत प्रतिशत के मामले में उसने लंबी छलांग लगाई है. अपने चुनावी इतिहास में पहली बार उसे 30 फीसदी से अधिक मत मिले हैं.
यूपी की 403 सीटों पर उतरी बसपा के खाते में महज़ एक सीट आई है. साल 1989 में पार्टी के गठन के बाद से यह उसका सबसे ख़राब प्रदर्शन है. उसे 12.88 फीसदी मत मिले हैं. इससे कम मत आख़िरी बार उसे तीन दशक पहले मिले थे, लेकिन सीट संख्या तब दहाई अंकों मे थी.
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में आरोपी रहे संगीत सोम, मंत्री सुरेश राणा, उमेश मलिक और पूर्व सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह अपनी सीट नहीं बचा सके. चुनाव प्रचार के दौरान मुस्लिम-विरोधी बयानबाज़ी करने वाले डुमरियागंज विधायक और हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश प्रभारी राघवेंद्र सिंह भी हारे हैं. साथ ही, योगी सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य समेत 11 मंत्रियों को भी जनता ने नहीं स्वीकारा.
भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों को ही छह-छह सीटें एक हज़ार से भी कम मतों के अंतर से गंवानी पड़ी हैं. कुल डेढ़ दर्जन सीटों पर जीत-हार के बीच का अंतर हज़ार से भी कम रहा, जबकि ग्यारह सीटों पर जीत-हार के बीच 500 से भी कम वोटों का अंतर रहा.
असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के अधिकतर उम्मीदवार 5,000 मतों के आंकड़े को भी पार नहीं कर सके. ओवैसी ने जनादेश स्वीकारते हुए कहा कि पार्टियां ईवीएम को दोष दे रहे हैं. ख़राबी ईवीएम में नहीं है, जो चिप लोगों के दिमाग में लगाई गई है, वह बड़ी भूमिका निभा रही है.
उत्तर प्रदेश में बलिया ज़िले के दुबहर थाने के प्रभारी राज कुमार सिंह द्वारा बलिया सदर सीट से भाजपा उम्मीदवार दयाशंकर सिंह को शुभकामना देने का वीडियो सोशल मीडिया पर सार्वजनिक होने के मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं. दयाशंकर सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री स्वाति सिंह के पति हैं.
उत्तर प्रदेश के पिछले तीन दशकों से अधिक के विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर गौर करते हैं तो कुछ रोचक नतीजे निकलकर सामने आते हैं, जिनके अनुसार इस बार सपा अगर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब होती है तो यह यूपी की राजनीति के लिहाज़ से एक दुर्लभ घटना होगी.
वीडियो: उत्तर प्रदेश में ‘4PM’ अख़बार के एडिटर इन चीफ संजय शर्मा ने प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले और अपने अख़बार के यूट्यूट चैनल को बंद किए जाने के संबंध में द वायर से बातचीत की.
वीडियो: उत्तर प्रदेश चुनाव की कवरेज के दौरान द वायर की टीम राजधानी लखनऊ के एक कैफे में पहुंची, जहां एसिड अटैक सर्वाइवर्स काम करती हैं. इस कैफे का नाम ‘शीरोज़ हैंगआउट कैफे’ है. इसे छाया फाउंडेशन के तहत शुरू किया गया था, जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स को पुनर्वास का अवसर प्रदान करता है.
इलाहाबाद ज़िले के हंडिया विधानसभा क्षेत्र का मामला है. पुलिस ने बताया कि झंडे आदि के आधार पर वीडियो से प्रथमदृष्टया यह समाजवादी पार्टी की सभा प्रतीत होता है. हालांकि हंडिया सीट से सपा के उम्मीदवार हाकिम लाल बिंद ने इसका खंडन करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा के लोगों द्वारा वीडियो को एडिट करके जारी किया गया है, जिसका मक़सद इस चुनाव को ‘हिंदू बनाम मुस्लिम’ करना था.
यूपी में बीते कुछ चुनावों से सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला ही राजनीतिक दलों की सफलता का आधार बना है. वर्तमान चुनाव में समाजवादी पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग चर्चा में है. हालांकि जानकारों के अनुसार, पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों के दो अलग-अलग सपा गठबंधनों की विफलता के चलते इस बार के गठबंधन की कामयाबी को लेकर कोई सटीक दावा नहीं किया जा सकता.