नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में बीते साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा होने के आरोप में महिला संगठन पिंजड़ा तोड़ की नताशा नरवाल और देवांगना कलीता की गिरफ़्तारी के एक साल पूरे हो चुके हैं. इसे लेकर हुए कार्यक्रम में कहा गया कि यह उन आवाज़ों को दबाने का तरीका है, जो सरकार को पसंद नहीं है.
दिल्ली पुलिस ने स्थानीय अदालत में दायर याचिका में कहा था कि दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में गिरफ़्तार उमर ख़ालिद और ख़ालिद सैफ़ी को हथकड़ी लगाकर पेश करने की अनुमति दी जाए क्योंकि ये दोनों अत्यधिक जोखिम वाले क़ैदी हैं. अदालत ने इससे इनकार करते हुए कहा कि याचिका तकनीकी आधार पर उचित नहीं है.
इंसान की आज़ादी सबसे ऊपर है. जो ज़मानत एक टीवी कार्यक्रम करने वाले का अधिकार है, वह अधिकार गौतम नवलखा या फादर स्टेन का क्यों नहीं, यह समझ के बाहर है. अदालत कहेगी हम क्या करें, आरोप यूएपीए क़ानून के तहत हैं. ज़मानत कैसे दें! लेकिन ख़ुद पर यह बंदिश भी खुद सर्वोच्च अदालत ने ही लगाई है.
दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं मिला है, जिससे पता चले के घटना के दिन उमर ख़ालिद वारदात स्थल पर मौजूद थे. हालांकि जेएनयू के पूर्व छात्र ख़ालिद को अभी जेल में ही रहना पड़ेगा. उनके ख़िलाफ़ यूएपीए के तहत आपराधिक साज़िश का मुक़दमा भी दर्ज किया गया है.
भगत सिंह की पवित्र भूमि, उनका स्वर्ग भारत आज उन्हीं की परिभाषा के मुताबिक नर्क बना दिया गया है. उसे नर्क बना देने वाली ताकतें ही भारत की मालिक बन बैठी हैं. भगत के धर्म को मानने वाले क़ैद में हैं, उन्हीं की तरह. और भगत सिंह की तरह ही उनसे उनकी हंसी छीनी नहीं जा सकी है.
2016 के जेएनयू राजद्रोह मामले में दिल्ली सरकार द्वारा पुलिस को आरोपियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे की मंज़ूरी देने के क़रीब साल भर बाद मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने आरोपपत्र का संज्ञान लिया है. कन्हैया कुमार के अलावा मामले में उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य पर देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है.
यह कार्यक्रम शुरुआत में 31 दिसंबर 2020 को होना था, लेकिन पुलिस द्वारा मंजूरी नहीं दिए जाने के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था. 2017 में भीमा-कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरे होने के मौके पर एल्गार परिषद कार्यक्रम का आयोजन 31 दिसंबर को पुणे के शनिवारवाड़ा में किया गया था. इसके अगले दिन यहां हिंसा भड़क उठी थी.
जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद आरोप लगाया है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में उनके ख़िलाफ़ विद्वेषपूर्ण मीडिया अभियान चलाया गया. याचिका में दावा किया गया है कि मीडिया रिपोर्टों में उनके एक कथित बयान से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि उन्होंने दंगों में अपनी संलिप्तता कबूल कर ली है. यह निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार के प्रति पूर्वाग्रह है.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा मामलों में गैर क़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) क़ानून के तहत मुकदमे का सामना कर रहे कई आरोपियों ने दावा किया कि आदेश के बावजूद जेल में उन्हें आरोप-पत्र तक पहुंच नहीं दी गई. कुछ आरोपियों ने दावा किया कि इसे पढ़ने के लिए उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया गया.
यह युवा दिवस किनके नाम है? महेश राउत के, जिन्होंने महाराष्ट्र के आदिवासियों के लिए अपनी युवता समर्पित की और आज दो साल से जेल में हैं या अन्य जेलों में बंद नताशा, देवांगना, इशरत, मीरान, आसिफ़, शरजील, ख़ालिद, उमर जैसों के नाम, जिन्होंने समानता के उसूल के लिए अपनी जवानी गर्क करने से गुरेज़ नहीं किया?
चाहे शाहीन बाग़ हो या दिल्ली की विभिन्न सीमाओं की सड़कें, भारतीय नागरिक अपनी अस्मिता और अधिकारों के लिए खड़े हो रहे हैं.
आरोप है कि शरजील इमाम ने उत्तर-पूर्व को भारत से काट देने का उकसावा देते हुए भाषण दिए थे. उन्होंने इतना ही किया था कि सरकार पर दबाव डालने के लिए रास्ता जाम करने की बात कही थी. किसान अभी चारों तरफ़ से दिल्ली का रास्ता बंद करने की बात कह रहे हैं, जिससे सरकार पर दबाव बढ़े और वह अपना अड़ियलपन छोड़े. क्या इसे आतंकवादी कार्रवाई कहा जाएगा?
दिल्ली पुलिस ने लिखा है कि उमर ख़ालिद सेकुलरिज्म का चोला ओढ़कर चरमपंथ को बढ़ावा देता है. आपको भी यही लगता है तो कम से कम यह मांग तो कर ही सकते हैं कि दिल्ली पुलिस के अफसरों को फिल्म निर्देशक बन जाना चाहिए क्योंकि वे लोगों के अंदर छिपे अभिनेता को पहचान लेते हैं.
दिल्ली दंगों में आरोपी एक व्यक्ति ने अपने पड़ोसियों द्वारा उनके घर पर हमला करने का आरोप लगाया था. पुलिस ने ऐसा कोई अपराध होने से इनकार करते हुए दावा किया था कि ख़ुद को बचाने के लिए आरोपी ये आरोप लगा रहा है.
पुलिस ने दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद को 14 सितंबर और छात्र शरजील इमाम को 25 अगस्त को यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया था.