ममता बनर्जी ने कहा कि पद संभालने के बाद उनकी पहली प्राथमिकता कोविड-19 स्थिति से निपटने की होगी. उन्होंने चुनाव परिणामों के बाद प्रदेश में जारी हिंसा के मद्देनज़र लोगों शांति बरतने की भी अपील की. देश में आज के समय में बनर्जी एकमात्र महिला मुख्यमंत्री हैं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम के निर्वाचन अधिकारी द्वारा सीईओ कार्यालय को भेजे एक कथित एसएमएस को सार्वजनिक करते हुए दावा किया कि अधिकारी को अपने जीवन का ख़तरा था इसलिए उन्होंने फिर से मतगणना के आदेश नहीं दिए.
नव गठित रायजोर दल के संस्थापक अखिल गोगोई दिसंबर 2019 से राजद्रोह के आरोप में जेल में बंद हैं. निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़े गोगोई को 57,219 वोट मिले, जो 46.06 प्रतिशत मत हैं. राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने राज्य में हिंसक सीएए विरोधी प्रदर्शनों में कथित संलिप्तता के मामले में 2019 में उन्हें गिरफ़्तार किया था.
बंगाल के समाज के सामूहिक विवेक ने भी उस ख़तरे को पहचाना, जिसका नाम भाजपा है. तृणमूल कांग्रेस की यह जीत इसलिए बंगाल में छिछोरेपन, लफंगेपन, गुंडागर्दी, उग्र और हिंसक बहुसंख्यकवाद की हार भी है.
तमिलनाडु में एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक ने 10 साल बाद सत्ता में वापसी की है. द्रमुक को राज्य की 234 विधानसभा सीटों में से जहां 133 सीटों पर जीत मिली तो सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक सिर्फ़ 76 सीटें जीतने में सफल हो सकी. अन्नाद्रमुक की सहयोगी भाजपा को सिर्फ चार सीटों से संतोष करना पड़ा.
नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र के आधिकारिक नतीजे आने से पहले घंटों तक भ्रम की स्थिति रही, क्योंकि मीडिया के एक धड़े में अधिकारी पर ममता की जीत की ख़बर चलने लगी थी. तृणमूल कांग्रेस ने इसके मद्देनज़र मुख्य निर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखकर दोबारा मतदान कराने की मांग की. हालांकि आयोग ने पार्टी के इस अनुरोध को ख़ारिज कर दिया.
पुदुचेरी की 30 विधानसभा सीटों में से एनआर कांग्रेस की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 16 सीटों पर जीत हासिल की है. इस केंद्रशासित प्रदेश में सरकार बनाने के लिए विधानसभा में 16 विधायकों का समर्थन चाहिए. पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख एन. रंगासामी के नेतृत्व में एनआर कांग्रेस को 10 सीटों पर जीत मिली है.
पश्चिम बंगाल की 294, असम की 126, तमिलनाडु की 234, केरल की 140 और पुदुचेरी की 30 सीटों के लिए बीते 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच मतदान हुए थे. केरल में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व में माकपा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रटिक फ्रंट ने फ़िर से विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है. तमिलनाडु में बीते 10 साल से सत्ता से बाहर रही द्रमुक की वापसी हुई है और केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी में एनआर कांग्रेस के नेतृत्व
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि यह समय जीवन में कुछ और करने का है. उन्होंने कहा कि इस तरह का पक्षपाती निर्वाचन आयोग नहीं देखा, उसने भाजपा की मदद के लिए तमाम क़दम उठाए. भाजपा को धर्म का इस्तेमाल करने दिया, उसके मुताबिक चुनावी कार्यक्रम बनाए गए और नियमों से खिलवाड़ किया गया.
निर्वाचन आयोग ने रविवार को कहा कि उसने कई जगहों पर जीत का जश्न मनाने के लिए लोगों के जमा होने को लेकर कड़ा रुख़ अपनाया है और संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा कि ऐसी स्थिति में प्राथमिकी दर्ज की जाए तथा थाना प्रभारी को निलंबित किया जाए.
पश्चिम बंगाल की 294, असम की 126, तमिलनाडु की 234, केरल की 140 और पुदुचेरी की 30 सीटों पर आज विधानसभा चुनाव परिणाम आएंगे. अधिकारियों ने बताया कि वोटों की गिनती निर्वाचन आयोग के सख्त दिशानिर्देशों के मुताबिक होगी, ताकि कोरोना वायरस के प्रसार को रोका जा सके. इसमें एजेंट के लिए आरटी-पीसीआर की जांच भी शामिल है.
संकट पैदा करने वाली यह मशीन, जिसे हम अपनी सरकार कहते हैं, हमें इस तबाही से निकाल पाने के क़ाबिल नहीं है. ख़ाससकर इसलिए कि इस सरकार में एक आदमी अकेले फ़ैसले करता है, जो ख़तरनाक है- और बहुत समझदार नहीं है. स्थितियां बेशक संभलेंगी, लेकिन हम नहीं जानते कि उसे देखने के लिए हममें से कौन बचा रहेगा.
केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 'राज्य की सुरक्षा' के ख़िलाफ़ संदिग्ध गतिविधियों वाले सरकारी कर्मचारियों के मामलों की जांच के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया है. संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के अंतर्गत पारित इस आदेश के तहत सरकार को हक़ है कि वो बिना जांच समिति का गठन किए किसी भी कर्मचारी को बर्ख़ास्त कर दे.
विधानसभा चुनाव राउंड-अप: पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस की दूसरी लहर आने के बाद दो निवर्तमान विधायकों समेत चुनाव मैदान में उतरे विभिन्न दलों के तीन प्रत्याशियों की मौत हो चुकी है. तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग के हाथ कोविड-19 मरीज़ों के खून से सने हैं, क्योंकि इसके ख़तरे को उन्होंने नज़रअंदाज़ किया.
अमूमन कुंभ मेला हर बारह साल पर लगता है, लेकिन इस बार हरिद्वार में हुआ कुंभ पिछली बार हुए आयोजन के ग्यारह साल बाद हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने से कहीं अधिक ज़रूरी ज्योतिषियों को ख़ुश रखना था.