गोमती नगर के सन हॉस्पिटल ने तीन मई को एक नोटिस में रोगियों के परिजनों से ऑक्सीजन की कमी के चलते उनके मरीज़ को अस्पताल से शिफ्ट करने की बात कही थी. इसके बाद लखनऊ प्रशासन ने अस्पताल पर ऑक्सीजन की कमी को लेकर 'झूठी ख़बर' फैलाने के आरोप में मामला दर्ज करवाया है. अस्पताल ने कहा है कि वे इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट जाएंगे.
योगी सरकार का यह आदेश ऐसे समय में आया है जब भारत के अधिकांश राज्यों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश भी कोविड-19 संक्रमितों की बढ़ती संख्या और चिकित्सा आपूर्ति की कमी से पीड़ित है और राज्य की चिकित्सा सुविधा पर सवाल उठ रहे हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहीं उन ख़बरों पर दिया, जिनके मुताबिक ऑक्सीजन की कमी के कारण लखनऊ और मेरठ ज़िले में कोविड-19 मरीज़ों की जान गई थी. अदालत ने कहा कि हमें लगता है कि ये समाचार राज्य सरकार के उस दावे के बिल्कुल विपरीत तस्वीर दिखाते हैं कि प्रदेश में ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति है.
30 अप्रैल को गोरखपुर के राजघाट अंत्येष्टि स्थल के पास एक पुल की जालियों को फ्लैक्स से ढकते हुए नगर निगम ने आदेश दिया कि अंत्येष्टि की फोटो और वीडियो लेना क़ानूनन ठीक नहीं है और ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई होगी. मुखर विरोध के बाद अगले दिन ये फ्लैक्स फटे हुए मिले और नगर निगम की ओर से इस बारे में कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया.
वीडियो: उत्तर प्रदेश के अमेठी शहर के एक युवा द्वारा अपने नाना के लिए ऑक्सीजन की मांग की गई तो उसके ख़िलाफ़ केस दर्ज करा दिया है. इस घटना ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े किए हैं.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा कि प्रदेश के किसी भी कोविड अस्पताल में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है. समस्या कालाबाज़ारी और जमाखोरी की है, जिससे सख़्ती से निपटा जाएगा. मुख्यमंत्री ने दावा किया कि राज्य सरकार की कोविड प्रबंधन की तैयारी पहले से बेहतर है.
उत्तर प्रदेश के निजी कोविड-19 अस्पतालों में मरीज़ों की भर्ती उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर हो सकेगी, जिसके बाद अस्पताल को इसकी सूचना फ़ौरन सरकार के पोर्टल को देनी होगी. हालांकि सरकारी अस्पतालों में भर्ती के लिए इंटीग्रेटेड कोविड कमांड सेंटर द्वारा रेफर किए जाने का नियम लागू रहेगा.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि राजधानी लखनऊ चीन का वुहान बन चुका है. यहां के अधिकांश मोहल्ले मौत के मातम में डूबे हुए हैं. सरकार की अक्षमता ने जनता को घोर संकट में डाल दिया है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने सरकार ने उत्तर प्रदेश को गिद्धों के हवाले कर दिया है.
कोविड-19 के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को पांच बड़े शहरों इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर नगर और गोरखपुर में 26 अप्रैल तक एक हफ़्ते के लिए लॉकडाउन लागू करने का निर्देश दिया था.
इलाहबाद हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार को प्रदेश के सर्वाधिक प्रभावित पांच शहरों- इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर नगर और गोरखपुर में 26 अप्रैल, 2021 तक के लिए लॉकडाउन लगाने का निर्देश दिया था. सरकार ने ऐसा करने से इनकार करते हुए कहा है कि इस बारे में सख़्त कदम उठाए जा रहे हैं.
कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है. कोरोना संक्रमित लोगों को अस्पतालों में बिस्तर नहीं मिल पा रहे है. ऑक्सीजन की कमी की भी ख़बरें आ रही हैं. साथ ही कोरोना वायरस से जुड़े आंकड़ों में हेरफेर करने के आरोप भी योगी सरकार पर लग रहे हैं.
फैक्ट चेक: अप्रैल के पहले हफ़्ते में मीडिया द्वारा एक अध्ययन के हवाले से दावा किया गया कि हार्वर्ड स्टडी ने अन्य राज्यों की तुलना में प्रवासी संकट को अधिक प्रभावी ढंग से संभालने के लिए यूपी सरकार की सराहना की है. पड़ताल बताती है कि हार्वर्ड ने ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया.
उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी ग्रामीण और शहरी इलाकों में प्रत्येक रविवार को साप्ताहिक लॉकडाउन लगाने का फैसला किया है. इस दौरान केवल स्वच्छता संबंधी और आपातकालीन सेवाएं ही संचालित होंगी. निर्देश के अनुसार, अगर किसी को पहली बार बिना मास्क पहने पकड़ा जाए तो उस पर एक हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया जाए और अगर वह व्यक्ति दूसरी बार पकड़ा जाए तो दस गुना अधिक जुर्माना लगाया जाए.
फैक्ट चेक: विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में यूपी सरकार के कोविड-19 प्रबंधन को अग्रणी बताने का दावा किया गया. यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने इसका खंडन करते हुए कहा कि ये कोई तुलनात्मक अध्ययन नहीं था बल्कि यूपी सरकार के अफसरों के साथ मिलकर राज्य की कोविड-19 की तैयारी और इसे संभालने संबंधी व्यवस्थाओं पर तैयार की गई रिपोर्ट थी.
यूपी सरकार द्वारा बीते तीन सालों में दर्ज राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के 120 मामलों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है, जिसमें आधे से अधिक गोहत्या और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े थे. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार कोर्ट ने सांप्रदायिक घटनाओं से जुड़ी सभी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को सुनते हुए एनएसए के आदेश को रद्द कर दिया.