उत्तर प्रदेश के वाराणसी के घाटों पर अत्यधिक मात्रा में शैवाल पाए जाने के बाद से एक बार फिर से बहस तेज़ हो गई है कि आखिर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करने के बाद भी गंगा स्वच्छ क्यों नहीं हो पा रही है. सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार द्वारा गंगा पुर्नरुद्धार के नाम पर बनाई गई परियोजनाएं काग़ज़ी दावे बनकर रह गई हैं.
आरएसएस के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र कुमार ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि गंगा किनारे शव मिलने की ऐसी तस्वीरें साल 2015 और 2017 में भी सामने आई थीं, लेकिन तब मीडिया ने ऐसा नहीं किया था.
एक अधिवक्ता द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि शवों के सम्मानजनक निपटारे के लिए पंचायत, राज्य व केंद्र के स्तर पर त्रिस्तरीय समिति का गठन किया जाए. उन्होंने यह भी मांग की है कि गंगा नदी के क्षेत्र को इकोलॉजिकली संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाए, जिसकी सुरक्षा और संरक्षण करने की ज़रूरत है.
उत्तर प्रदेश में बलरामपुर ज़िले के सीएमओ ने बताया कि इस संबंध में नगर कोतवाली में मामला दर्ज करा दिया गया है. इसकी जांच की जा रही है. उन्होंने कहा कि शव सिद्धार्थनगर ज़िले के शोहरतगढ़ के रहने वाले प्रेम नाथ मिश्र का है और 28 मई को इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी.
बीते दिनों बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा व इसकी सहायक नदियों में बड़ी संख्या में संदिग्ध कोरोना संक्रमितों के शव मिलने के बाद केंद्र ने दोनों राज्यों की सरकार से इस पर रोक लगाने को कहा था. जल शक्ति मंत्रालय के साथ बैठक में यूपी सरकार ने कहा है कि प्रदेश के कुछ हिस्सों में शवों को प्रवाहित करने की परंपरा रही है.
केंद्र ने कहा कि हाल ही में गंगा और इसकी सहायक नदियों में शवों, आंशिक रूप से जले और क्षत-विक्षत शव प्रवाहित करने के कई मामले सामने आए हैं. यह अनुचित और बेहद चिंताजनक है. नमामि गंगे मिशन राज्यों को इस पर रोक लगाने और शवों का सुरक्षित और सम्मानजनक निस्तारण सुनिश्चित करने का निर्देश देता है.
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 900 से अधिक शवों को नदी के किनारे दफनाया गया था. इसी तरह कन्नौज में यह संख्या 350, कानपुर में 400 और गाजीपुर में 280 है.
वित्त वर्ष 2020-21 के लिए रिवरफ्रंट के सौंदर्यीकरण का बजट घटाकर सिर्फ एक लाख रुपये कर दिया गया है. वहीं राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के बजट में करीब 30 फीसदी की कटौती की गई है.
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने 11 राज्यों को इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किया है. निर्देशों के तहत गंगा और उसकी सहायक नदियों में मूर्ति विसर्जन के अलावा पूजा सामग्री डालने पर सख़्ती से रोक लगाने को कहा है.
राजस्थान सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 33 ज़िलों को भूजल के हिसाब से कुल 295 ब्लॉक में बांटा गया है, जिनमें से 184 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आ गए हैं. इसका मतलब है कि आधे से ज़्यादा राज्य में ज़मीनी पानी कभी भी समाप्त हो सकता है.
पर्यावरण मंत्रालय ने संसद में बताया कि केंद्रीय भूजल बोर्ड ने विभिन्न राज्यों में फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट और आयरन सहित अन्य हानिकारक धातुओं की भूजल में निर्धारित मानकों से अधिक मात्रा पाए जाने की पुष्टि की है.
इस साल मई तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक विभिन्न परियोजनाओं के लिए 28,451 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी गई, लेकिन उनमें से केवल 25 फीसदी राशि ही ख़र्च की जा सकी.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हालिया आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा नदी का पानी पीने एवं नहाने योग्य नहीं है. बोर्ड द्वारा जारी एक मानचित्र में नदी में ‘कोलीफॉर्म’ जीवाणु का स्तर बहुत बढ़ा हुआ दिखाया गया है.
एनजीटी ने कहा, ‘गंगा की स्वच्छता को धन उगाही और व्यावसायिक व औद्योगिक धंधे के भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता है. कोई व्यक्ति भी यदि गंगा को प्रदूषित करता है तो उसे कानून के अधीन दंडित किया जाना चाहिए.'
साक्षात्कार: गंगा सफाई के लिए लंबे समय तक अनशन करने वाले संत गोपाल दास पांच दिसंबर 2018 को लापता हो गए थे. करीब 133 दिन बाद पास वापस लौटने पर उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के इशारे पर उन्हें प्रताड़ित किया गया और एम्स प्रशासन ने अस्पताल से निकालकर उन्हें मरने के लिए सड़क पर फेंक दिया था.