शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा कि महज़ शब्दों के खेल या विज्ञापनों से बढ़ती बेरोज़गारी के मुद्दे का समाधान नहीं होने वाला है, सिर्फ विज्ञापन देने से ही नौकरियां नहीं मिल जाएंगी.
आम चुनाव से ठीक पहले बेरोज़गारी से जुड़े आंकड़ों पर आधारित यह रिपोर्ट लीक हो गई थी, तब सरकार ने इस रिपोर्ट को अधूरा बताया था, लेकिन शुक्रवार को सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में इसकी पुष्टि हो गई.
श्रम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत पिछले तीन साल में केवल 1.12 करोड़ रोज़गार ही पैदा किए जा सके.
लोकसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले चुनावों पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉमर्स द्वारा हाल ही में जारी किये गये राष्ट्रीय सर्वेक्षण में यह खुलासा किया गया है.
साल 2004-05 से अब तक पांच करोड़ से अधिक ग्रामीण महिलाएं राष्ट्रीय बाजार की नौकरियां छोड़ चुकी हैं. ये आंकड़े एनएसएसओ की पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) 2017-18 की रिपोर्ट पर आधारित हैं जिन्हें जारी करने पर मोदी सरकार ने रोक लगा दी है.
एनएसएसओ द्वारा साल 2017-2018 में किए गए सर्वेक्षण से ये पता चला है कि 2011-12 से लेकर 2017-18 के बीच खेत में काम करने वाले अस्थायी मजदूरों में 40 फीसदी की गिरावट आई है. खात बात ये है कि सरकार ने इस सर्वेक्षण को जारी करने से मना कर दिया है.
एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार 1993-94 के बाद 2017-18 देश में पुरुष कामगारों की संख्या में गिरावट आई है, साथ ही 2011-12 की तुलना में रोज़गार अवसर बहुत कम हुए हैं. यह एनएसएसओ की वही रिपोर्ट है, जिसे केंद्र सरकार ने हाल ही में जारी होने से रोका था.
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आगामी लोकसभा चुनावों से पहले रोज़गार को लेकर यह तीसरी रिपोर्ट है जिसे मोदी सरकार ने दबा दिया है. इससे पहले उसने बेरोज़गारी पर एनएसएसओ की रिपोर्ट और श्रम ब्यूरो की नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी छठवीं सालाना रिपोर्ट को भी जारी होने से रोक दिया था.
भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र की मंगलवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार, इस साल फरवरी में बेरोज़गारी दर 7.2 फीसदी हो गई जो कि सितंबर 2016 के बाद सबसे अधिक है. पिछले साल फरवरी में यह आंकड़ा 5.9 फीसदी था.
नीति आयोग ने गुरुवार को श्रम मंत्रालय से सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू करने और 27 फरवरी को इसके निष्कर्षों को पेश करने को कहा ताकि इसे मार्च के पहले सप्ताह में साझा किया जा सके.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने कहा कि वास्तविक मुद्दा रोज़गार की संख्या का नहीं बल्कि रोज़गारों की गुणवत्ता और वेतन दरों का है.
वीडियो: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट में सामने आया है कि देश में बीते 45 सालों में 2017-18 में सबसे अधिक बेरोज़गारी रही है. रोज़गार की स्थिति पर द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु का नज़रिया.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय ने ये आंकड़े जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच जुटाए हैं. नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बाद देश में रोजगार की स्थिति पर आया यह पहला सर्वेक्षण है.
क्रिसिल की यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने सिर्फ 2018 में ही 1.10 करोड़ नौकरियां समाप्त होने की बात कही है.