सु्प्रीम कोर्ट: वकील को अवमानना की धमकी देने के मामले में जस्टिस अरुण मिश्रा ने माफी मांगी

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा ने भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में दलीलें पेश कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन को अवमानना कार्यवाही की धमकी दी थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने जस्टिस अरुण मिश्रा से अनुरोध किया कि वकीलों के साथ बात करते समय वह थोड़ा संयम बरतें.

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जस्टिस अरुण मिश्रा. (फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा ने भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में दलीलें पेश कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन को अवमानना कार्यवाही की धमकी दी थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने जस्टिस अरुण मिश्रा से अनुरोध किया कि वकीलों के साथ बात करते समय वह थोड़ा संयम बरतें.

जस्टिस अरुण मिश्रा. (फोटो: पीटीआई)
जस्टिस अरुण मिश्रा. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में दलीलें पेश कर रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता को अवमानना कार्यवाही की धमकी देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने बृहस्पतिवार को जस्टिस अरुण मिश्रा से अनुरोध किया कि वकीलों के साथ बात करते समय वह थोड़ा संयम बरतें.

बता दें कि, जस्टिस मिश्रा ने मंगलवार को भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में दलीलें पेश कर रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता को अवमानना कार्यवाही की धमकी दी थी.

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के समक्ष अधिवक्ताओं- कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार खन्ना ने इस मुद्दे का उल्लेख किया.

उल्लेखनीय है जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन अपनी दलीलें पेश कर रहे थे. इसी दौरान जस्टिस मिश्रा ने उन्हें अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी थी.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस मिश्रा ने कहा था, आपने एक और शब्द कहा तो मैं आपके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करूंगा और यह सुनिश्चित करूंगा कि आप दोषी ठहराए जाएं.

इस दौरान उन्होंने गोपाल शंकर नारायणन को उनकी दलील खत्म करने के लिए एक भी और शब्द नहीं बोलने दिया था. जस्टिस मिश्रा ने कहा था, ‘आप पलटकर जवाब दे रहे हैं? आपकी हिम्मत कैसे हुई?’

इसके बाद अपनी दलील पूरी किए बिना और लंच के लिए कोर्ट के उठने से पहले ही गोपाल शंकर नारायणन अपनी फाइल बंद करके वहां से चले गए. उन्होंने कहा था, ‘मैं वहां से चला गया क्योंकि मैं अदालत के सम्मान को कम नहीं करना चाहता था. मैं और कुछ नहीं कहना चाहता था.’

इन अधिवक्ताओं द्वारा इस मामले का उल्लेख किए जाने पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि वह किसी भी अन्य न्यायाधीश के मुकाबले बार का ज्यादा सम्मान करते हैं और यदि कोई पीड़ित महसूस कर रहा है तो वह इसके लिए क्षमा चाहते हैं.

जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘यदि किसी भी अवसर पर किसी को भी असुविधा महसूस हुई है तो मैं हाथ जोड़कर इसके लिए क्षमा मांगता हूं.’

सिब्बल ने जस्टिस मिश्रा से कहा कि बार और बेंच दोनों का ही यह कर्तव्य है कि वे न्यायालय की गरिमा बनाए रखें और दोनों को परस्पर एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए.

सिंघवी ने कहा कि न्यायालय में परस्पर सद्भाव का माहौल बनाए रखना चाहिए और बार तथा बेंच को परस्पर सम्मान करना चाहिए.

जस्टिस शाह ने अधिवक्ताओं से कहा कि सम्मान परस्पर होना चाहिए और जब मंगलवार को पीठ ने शंकर नारायणन को बहस जारी रखने के लिए कहा तो उन्होंने ‘एकदम इंकार कर’ दिया.

रोहतगी ने कहा कि युवा वकील इस न्यायालय में आने से भयभीत हो रहे हैं और यह बार के युवा सदस्यों को प्रभावित कर रहा है.

जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘मैं बार से अधिक जुड़ा हुआ हूं. मैं यही कहना चाहूंगा कि बार तो पीठ की जननी है. मैं किसी भी अन्य चीज की तरह ही बार का सम्मान करता हूं. मैं अपने दिल से यह कह रहा हूं और कृपया इस तरह की कोई धारणा अपने दिमाग में मत रखिए.’

उन्होंने कहा कि उन्हें किसी के प्रति भी कोई शिकायत नहीं है और उन्होंने न्यायाधीश के रूप में अपने करीब 20 साल के कार्यकाल के दौरान किसी भी वकील के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही नहीं चलाई है. हालांकि उन्होंने कहा कि अहंकार ‘इस महान संस्था को नष्ट कर रहा’ है और बार का यह कर्तव्य है कि वह इसकी रक्षा करे.

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि आजकल न्यायालय को उचित ढंग से संबोधित नहीं किया जाता. यहां तक कि उस पर हमला बोला जाता है. यह सही नहीं है और इससे बचने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि मामले में बहस के दौरान वकील को किसी के भी बारे में व्यक्तिगत टिप्पणियां करने से बचना चाहिए.

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि पूरे करियर के दौरान उनकी आलोचना की गई और उन्होंने हमेशा बार का समर्थन किया.

खन्ना ने पीठ से कहा कि न्यायपालिका और बार की स्वतंत्रता बहुत ही जरूरी है और इसलिए बार तथा बेंच के बीच सद्भावपूर्ण संबंध बनाए रखना जरूरी है.

जस्टिस मिश्रा ने एकदम अंत में एससीबीए के अध्यक्ष से कहा कि वह नारायणन को उनसे मिलने के लिए कहें. उन्होंने कहा कि वह बहुत बुद्धिमान और प्रतिभाशाली वकील हैं तथा वह उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स- ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएसशन (एससीएओआरए) ने बुधवार को इस घटना पर चिंता जताते हुए अनुरोध किया था कि न्यायाधीश वकीलों से बात करते वक्त अधिक संयम बरतें. एससीएओआरए की कार्यकारी परिषद ने जस्टिस अरुण मिश्रा के गोपाल शंकर नारायणन को अवमानना कार्यवाही चलाने और सजा देने की धमकी पर गहरी चिंता जताई, जो अपनी पेशेवर जिम्मेदारी निभा रहे थे.

एससीएओआरए की ओर से पारित प्रस्ताव में कहा गया, ‘बार के कई सदस्यों ने जस्टिस मिश्रा की ओर से लगातार गैर जरूरी व्यवहार और निजी टिप्पणी करने की शिकायत की है.’ साथ ही कहा कि अदालत की गरिमा और शिष्टाचार बनाए रखने की जिम्मेदारी वकीलों और न्यायाधीशों दोनों की है.

वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह ने खन्ना को लिखी चिट्ठी में इस घटना की निंदा करने के लिए तत्काल बैठक बुलाने की मांग की.इस घटना पर दुख व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि वकील और न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के कामकाज के लिए बराबर के हिस्सेदार हैं और उनके रिश्ते एक-दूसरे के सम्मान पर अधारित होने चाहिए.

सिंह ने पत्र में लिखा कि वकीलों को अवमानना से भयभीत करने और उन्हें जिरह नहीं करने देने से न्याय प्रणाली का मूल ढांचा भी कमजोर होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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