कोविड-19: दिल्ली के अस्पतालों में समुचित बेड उपलब्ध होने का सरकार का दावा कितना सही है?

दिल्ली में बढ़ते कोरोना मरीज़ों की संख्या के बीच अस्पतालों में बेड्स की अनुपलब्धता का मुद्दा लगातार सामने आ रहा है. दिल्ली सरकार द्वारा उपलब्ध बेड्स और वेंटिलेटर की जानकारी के लिए ऐप लॉन्च किए जाने और समुचित बेड्स होने के दावे के बीच लगातार कोविड मरीज़ और उनके परिजन अस्पताल दर अस्पताल भटकने को मजबूर हैं.

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Chennai: Health workers prepare a temporary set-up of 1450 beds for COVID-19 patients, during the ongoing nationwide lockdown, in Chennai, Saturday, May 30, 2020. Tamil Nadu Housing board quarters converted into a COVID Care Centre for quarantine. (PTI Photo/R Senthil Kumar)(PTI30-05-2020_000061B)

दिल्ली में बढ़ते कोरोना मरीज़ों की संख्या के बीच अस्पतालों में बेड्स की अनुपलब्धता का मुद्दा लगातार सामने आ रहा है. दिल्ली सरकार द्वारा उपलब्ध बेड्स और वेंटिलेटर की जानकारी के लिए ऐप लॉन्च किए जाने और समुचित बेड्स होने के दावे के बीच लगातार कोविड मरीज़ और उनके परिजन अस्पताल दर अस्पताल भटकने को मजबूर हैं.

Chennai: Health workers prepare a temporary set-up of 1450 beds for COVID-19 patients, during the ongoing nationwide lockdown, in Chennai, Saturday, May 30, 2020. Tamil Nadu Housing board quarters converted into a COVID Care Centre for quarantine. (PTI Photo/R Senthil Kumar)(PTI30-05-2020_000061B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली के अस्पतालों में बेड्स की उपलब्धता के दिल्ली सरकार के दावों के बीच लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिसमें मरीजों के परिजन बिस्तर न मिलने की शिकायत कर रहे हैं. कुछ मामलों में ऐसा भी हुआ कि अस्पताल में समय से भर्ती न होने की वजह से मरीजों की मौत के मामले भी सामने आए हैं.

4 जून को एक महिला ने आरोप लगाया था कि उनके संक्रमित पिता को समय रहते दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया, जिसके कारण उनकी मौत हो गई.

अमरप्रीत नामक महिला ने बीते चार जून को ट्वीट कर बताया था, ‘मेरे पिता को तेज बुखार है. उन्हें अस्पताल पहुंचाने की जरूरत है. मैं दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल के बाहर खड़ी हूं और वे उन्हें भर्ती करने को तैयार नहीं हैं. उन्हें कोरोना, तेज बुखार और सांस लेने में तकलीफ है. मदद के बिना वे नहीं बचेंगे. कृपया मदद करें.’

एक घंटे बाद महिला ने ट्वीट किया, ‘मेरे पिता नहीं रहे. सरकार विफल हुई.’ हालांकि कोविड-19 के लिए निर्दिष्ट एलएनजेपी अस्पताल ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि मरीज को मृत अवस्था में लाया गया था.

इससे पहले तीन जून को एक 80 वर्षीय कोरोना मरीज मोती राम गोयल की मौत हो गई थी. उन्होंने इसी दिन सुबह दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने दिल्ली और केंद्र सरकार को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि उन्हें सरकारी अस्पताल में बिस्तर और वेंटिलेटर उपलब्ध कराया जाए. हालांकि, कुछ घंटे बाद ही उनकी मौत हो गई.

ऐसी ही कहानी बाटला हाउस में रहने वाले एक व्यक्ति की है, जिनकी पत्नी की कोरोना से मौत हो गई है.

इन्होंने बीबीसी को बताया कि उनकी 58 वर्षीय पत्नी के कोरोना संक्रमित हो जाने के बाद उन्हें लेकर वे होली फैमिली, फोर्टिस, अपोलो, बत्रा और गंगाराम जैसे कई सरकारी और निजी कई अस्पतालों में गए, लेकिन अस्पतालों ने बेड की अनुपलब्धता की बात कहते हुए उन्हें भर्ती नहीं किया.

उन्होंने आगे बताया, ‘अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद किसी तरह मजीदिया अस्पताल में जगह मिली लेकिन जैसे ही उन्होंने देखा कि मरीज़ की हालत नाज़ुक है, उन्होंने किसी सरकारी अस्पताल में जाने को कहा. उन्होंने कहा कि उनके पास अभी वेंटिलेटर नहीं है. कहीं और जाते उससे पहले ही मेरी पत्नी ने दम तोड़ दिया.’

मालूम हो कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण के 26 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. कोविड से मरने वाले मरीजों की संख्या के मामले में दिल्‍ली देश में तीसरे नंबर पर है. 1 जून से 3 जून के बीच के तीन दिनों के भीतर यहां 44 कोविड संक्रमितों की मौत हुई है.

दिल्ली के अस्पतालों में बेड और वेंटिलेटर न मिलने की बढ़ती शिकायतों के बीच बीते सोमवार को दिल्ली सरकार ने दिल्ली कोरोना नाम से एक ऐप लॉन्च किया था.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस ऐप को लॉन्च करते हुए बताया था कि यह सरकारी और निजी सभी अस्पतालों के बारे में बताएगा कि इस समय किस अस्पताल में कितने बेड खाली हैं और कितने भरे हुए हैं.

हालांकि ऐप से भी कोई खास फायदा होता नजर नहीं आया. ऐप लॉन्च होने के बाद दैनिक भास्कर ने कम से कम सात अस्पतालों में फोन किया था और कोविड मरीजों के लिए उपलब्ध बेड्स की जानकारी मांगी.

चार अस्पतालों ने कोविड मरीजों को भर्ती न करने की बात कही और बाकी तीन ने एक से दूसरे विभाग में कॉल ट्रांसफर करने के बाद बताया कि बेड उपलब्ध नहीं हैं.

आरके पुरम में रहने वाली एक महिला ने इस अख़बार को बताया कि वे कोरोना संक्रमित हैं और ऐप लॉन्च होने के बाद उन्होंने चाणक्यपुरी के प्राइमस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल को फोन किया, जहां ऐप में 24 बेड उपलब्ध होने की जानकारी दी गई थी, पर अस्पताल से जवाब मिला कि बेड नहीं है.

फिर उन्होंने एक मेडिक्योर अस्पताल को फोन किया, जिसने कहा कि बेड तो उपलब्ध है, लेकिन इलाज की सुविधा 10 जून के बाद शुरू होगी. इसके बाद जब उन्होंने मूलचंद अस्पताल में बात की तो उनसे कहा गया कि वे 1,200 रुपये फीस भरकर एक डॉक्टर से ऑनलाइन बात कर सकती हैं.

लोगों की शिकायतें बदस्तूर आती रहीं, जिसके बाद शुक्रवार को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंदर जैन ने इस बारे में स्पष्टीकरण दिया.

उन्होंने कहा, ‘कुछ भ्रामक रिपोर्टें हैं कि दिल्ली में कोविड-19 रोगियों के लिए बिस्तरों की कमी है क्योंकि कुछ निजी अस्पताल प्रवेश से इनकार कर रहे हैं. सच यह है कि दिल्ली में इस समय बेड की बिल्कुल कमी नहीं है. हमारे पास अब भी 5,000 बेड हैं. जल्द ही इनका डेटा साझा किया जाएगा.’

उनका यह भी कहना था कि कुछ अस्पताल समय पर दिल्ली कोरोना ऐप पर डेटा अपडेट नहीं कर रहे हैं या मरीजों को कॉल करने पर वास्तविक डेटा को गलत तरीके से पेश नहीं कर रहे हैं. मरीजों को अस्पतालों पर डेटा नहीं मिल रहा था, जिसे दिल्ली कोरोना ऐप की मदद से ठीक करने की कोशिश की जा रही है.

इसके बाद शनिवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कुछ अस्पताल बेड्स की कालाबाजारी कर रहे हैं. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘कुछ अस्पताल कोविड मरीजों को भर्ती करने से मना कर रहे हैं. मैं उन लोगों को चेतावनी देता हूं जो सोच रहे हैं कि वे दूसरी पार्टियों के प्रभावशाली संरक्षकों का इस्तेमाल करके बेड की कालाबाजारी कर लेंगे. आप लोगों को बख्शा नहीं जाएगा.’

उन्होंने कहा कि दिल्ली में मौजूद 8,645 बेड में से 4,038 भर गए हैं जबकि 4,607 बेड खाली हैं.

बता दें कि शुक्रवार तक दिल्ली में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़कर 26,334 हो गई है. पिछले 24 घंटों में हुई मौतों के साथ राजधानी में कुल मौतों की संख्या 708 पहुंच गई है. 417 लोगों के सही होने के साथ ही कोरोना से सही वाले मरीजों की संख्या 10.315 हो गई है. दिल्ली में फिलहाल 15,311 मामले सक्रिय हैं.

कोविड टेस्टिंग पर नए दिशानिर्देश जारी 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बढ़ते कोरोना मरीजों और अस्पतालों में घटते बिस्तरों के बीच दिल्ली सरकार ने कोविड-19 टेस्टिंग पर नकेल कस दिया है और एक नया दिशानिर्देश जारी कर कोरोना मरीजों के सीधे संपर्क में आने वाले केवल ऐसे लोगों की टेस्टिंग का आदेश दिया है जिनमें लक्षण हों.

आदेश में कहा गया है कि पिछले 14 दिनों में अंतरराष्ट्रीय यात्रा करने वाले जिन लोगों में लक्षण हैं, प्रयोगशाला की जांच में संक्रमित मामलों के संपर्क में आने वाले जिन लोगों में लक्षण हैं, कोविड-19 के निषिद्ध क्षेत्रों में काम करने वाले अग्रिम मोर्चे के लक्षण वाले स्वास्थ्यकर्मी और श्वसन रोग की बीमारी से ग्रस्त रोगियों की जांच की जाएगी.

नए दिशानिर्देश में स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक ने रोगियों की जांच के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईसीएमआर) की रणनीति में एक बदलाव किया है. यह कहता है कि निजी और सरकारी टेस्टिंग लैब एक संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने वाले और उच्च खतरे की आशंका वाले व्यक्ति (डायबिटीज, कैंसर मरीज और वरिष्ठ नागरिक) की संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के पांच से 10 दिन के भीतर एक बार जांच करेंगे.

हालांकि, बीते 18 मई को संशोधित किए गए आईसीएमआर दिशानिर्देश में कहा गया था कि एक संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने वाले और उच्च खतरे की आशंका वाले बिना लक्षण वाले व्यक्ति की संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के पांच से 10 दिन के भीतर एक बार जांच होनी चाहिए.

इस तरह दिल्ली सरकार ने बिना लक्षण वाले लोगों का टेस्ट करने से इनकार कर दिया है.

नए दिशानिर्देश मंगलवार को निजी टेस्ट केंद्रों के साथ एक बैठक के बाद लाया गया जहां दिल्ली सरकार ने उन्हें नियमों का पालन करने और बिना लक्षण वाले रोगियों का परीक्षण नहीं करने के लिए कहा था.

बैठक में शामिल लोगों ने बताया कि अधिकारियों ने इस पर जोर दिया कि बड़ी संख्या में बिना लक्षणों वाले मरीज संक्रमण की पुष्टि होने के बाद निजी अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं. इससे जरूरतमंद अस्पताल में भर्ती नहीं हो पा रहे और सिस्टम पर दबाव बढ़ रहा है.

एक निजी अस्पताल के प्रतिनिधि ने कहा कि बिना लक्षण वाले मरीजों के टेस्ट का उद्देश्य कोविड और गैर कोविड मरीजों को अलग-अलग करना है.

शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘दिल्ली में कुछ लोग अफवाह फैला रहे हैं की टेस्टिंग को रोक दिया गया है, ये गलत है. 42 में से सिर्फ 6 लैब्स के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई है क्योंकि वो लैब्स आईसीएमआर के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहे थे. दिल्ली देश में सबसे ज़्यादा टेस्टिंग कर रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘हम चाहे जितनी टेस्टिंग क्षमता बढ़ा दें, अगर बिना लक्षण के मरीज टेस्ट करवाने पहुंच जाएंगे तो किसी न किसी गंभीर लक्षण वाले मरीज का टेस्ट उस दिन रुक जाएगा. इस बात को सभी को समझना बहुत जरूरी है. सिर्फ लक्षणों वाले मरीजों को ही टेस्ट करवाना चाहिए.’

दिल्ली में बढ़ते कोरोना के मामलों और बिना लक्षण वाले मरीजों की जांच करने का नतीजा दिल्ली सरकार और विभिन्न अस्पतालों के बीच तनातनी के रूप में भी सामने आ रहा है. 3 जून के एक आदेश में आईसीएमआर के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के आरोप में दिल्ली सरकार ने सर गंगाराम अस्पताल को कोरोना मरीजों का टेस्ट करने से रोक दिया.

डॉ. अंबरीश सात्विक ने एक ट्वीट कर आरोप लगाया कि बिना लक्षण वाले मामलों की जांच करने के कारण इस महामारी के बीच में अस्पतालों और लैब्स की जांच की जा रही है और उन्हें टेस्टिंग करने से रोका जा रहा है.

इससे पहले आम आदमी पार्टी ने बीते बुधवार को दावा किया था कि केंद्र सरकार द्वारा संचालित आरएमएल अस्पताल कोविड-19 जांच के ‘गलत’ नतीजे दे रहा है और 48 घंटे के अंदर उन्हें जमा कराने के सरकारी नियम का उल्लंघन कर रहा है. उन्होंने दिल्ली सरकार से अनुरोध किया था कि सरकारी नियम का उल्लंघन करने के लिए आरएमएल अस्पताल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए.

हालांकि, आरएमएल अस्पताल ने एक बयान में कहा कि नमूनों की तारीख अलग थी और जब दोबारा जांच हुई तो उसमें सात से 14 दिनों का अंतराल था. उसने कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा गुणवत्ता जांच की जा रही है तथा परिणाम सुसंगत हैं.

वहीं, राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 संक्रमण और उससे मृत्यु के बढ़ते मामलों के मद्देनजर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बीते बृहस्पतिवार को जांच बढ़ाने, सघन निगरानी रखने, संपर्कों का पता लगाने तथा निषिद्ध क्षेत्रों में कड़ाई से नियमों का पालन करने पर जोर दिया था.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने संक्रमण के तेजी से बढ़ते मामलों को देखते हुए बिस्तरों की उपलब्धता बढ़ाने पर भी जोर दिया था. उन्होंने कहा था कि रोगियों को भर्ती करने में अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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