मुंबई में टीबी से हर रोज़ होती हैं 18 मौतें

गैर सरकारी संगठन ‘प्रजा फाउंडेशन’ की रिपोर्ट, बीएमसी ने किया खंडन.

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प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: पीटीआई)

गैर सरकारी संगठन ‘प्रजा फाउंडेशन’ की रिपोर्ट, बीएमसी ने किया खंडन.

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: पीटीआई)
प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: पीटीआई)

देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई में प्रतिदिन 18 लोग टीबी की वजह से अपनी जान गंवा देते हैं. 12 जुलाई को मुंबई के एक गैर सरकारी संगठन ‘प्रजा फाउंडेशन’ द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के आंकड़ों के आधार पर संगठन ने यह भी दावा किया है कि शहर में टीबी का इलाज़ करवा रहे 19 फीसदी मरीज़ बीच में ही टीबी का इलाज छोड़ देते हैं.

ये साल 2016-17 का आंकड़ा है, जो 2012 में 9 प्रतिशत था. हालांकि टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार प्रजा फाउंडेशन के इन आंकड़ों का बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के अधिकारियों ने खंडन किया है.

टीबी अधिकारी डॉक्टर दक्षा शाह का कहना है कि महज़ आरटीआई से जुटाई गई जानकारी के आधार पर किसी स्वास्थ्य योजना का विश्लेषण नहीं किया जा सकता.

बीएमसी के सार्वजानिक स्वास्थ्य विभाग ने एक आरटीआई के जवाब में प्रजा फाउंडेशन से संशोधित राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के आधिकारिक आंकड़ों के अपने आंकड़ों का विश्लेषण करने को कहा है.

पर प्रजा फाउंडेशन के अधिकारी अपनी बात पर कायम हैं. फाउंडेशन से जुड़े मिलिंद म्हास्के का कहना है, ‘यक़ीनन बीएमसी के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम में कोई गड़बड़ी है. आरएनटीसीपी के इलाज के लिए आने वाले मरीज़ों की संख्या में तेज़ी से गिरावट देखी गई है. लोग इसकी अपेक्षा प्राइवेट ट्रीटमेंट ले रहे हैं. सरकारी इलाज बीच में छोड़ देने वालों की संख्या भी बढ़ रही है. 2012 में यह 9% थी, जो 2016 में 19% हो गई.

12 जुलाई को एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान म्हास्के ने यह भी बताया कि बीएमसी का स्वास्थ 2017-18 बजट 3,312 करोड़ है, जबकि मुंबई से सटे ठाणे महानगर पालिका का कुल बजट 3390 करोड़ है.

वहीं बीएमसी अधिकारियों का कहना का कहना है कि प्रजा फाउंडेशन ने अवैज्ञानिक तरीके से आंकड़ें जुटाए हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘फाउंडेशन ने बीएमसी से साल 2016 में पंजीकृत हुए नए मरीज़ों के आंकड़ें मांगे थे, हमने बता दिया कि उनकी संख्या 15,767 है. टीबी का इलाज़ 3 से 6 महीने तक होता है, जो कई मामलों में सालों तक भी चलता है.’

डॉ. शाह कहती है कि आदर्श रूप में तो फाउंडेशन को उस साल विशेष में इलाज ले रहे मरीज़ों की संख्या पूछनी चाहिए थी. उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है फाउंडेशन द्वारा जुटाए गए आंकड़ों जानकारी का दोहराव हो क्योंकि उन्होंने जो आंकड़ें जुटाए थे वो छोटे डिस्पेंसरी, अस्पताल से थे साथ ही स्वास्थ विभाग से भी जानकारी ली गई थी.

गौरतलब है कि प्रजा फाउंडेशन हर साल बीएमसी के स्वास्थ्य विभाग से आरटीआई के जरिये जानकारी लेकर हेल्थ रिपोर्ट देती है. फाउंडेशन मृत्यु प्रमाण पत्रों के आधार पर विभिन्न बीमारियों से हुई मौतों की जानकारी लेते हैं. बीएमसी ने उनके इस तरीके का विरोध करते हुए कहा है कि ये तरीका ठीक नहीं क्योंकि मृत्यु प्रमाण पत्र में मौत का सटीक वैज्ञानिक कारण नहीं लिखा होता है.

 

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